त्रिपुरा हिंसा पर राज्य सरकार तर्क-कुतर्क का रवैया अपना रही है:प्रशांत भूषण

एक ओर वकीलों की रिपोर्ट के मुताबिक अक्तूबर में त्रिपुरा में हुई हिंसा में 12 मस्जिद, 9 दुकानों सहित तीन मकानों हमला किया गया और दूसरी ओर भाजपा शासित त्रिपुरा की बिप्लब सरकार ने पिछले साल राज्य में हुई कथित सांप्रदायिक हिंसा पर वकीलों और मानवाधिकार संगठनों के एक समूह द्वारा एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट को प्रायोजित करार दिया है। उच्चतम न्यायालय में सोमवार को त्रिपुरा राज्य सरकार पर तर्क-कुतर्क का रवैया अपनाने का आरोप लगाया गया और कहा गया कि यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य सरकार ने अपने जवाब में यह दलील दी है कि स्वतंत्र जांच के लिए जनहित याचिका दायर करने वाले जनहितैषी नागरिकों ने पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों में इस तरह की हिंसा की घटनाओं पर क्यों चुप्पी लगा रखी थी।

भूषण ने कहा कि यह पूरी तरह से अनुचित है कि राज्य सरकार तर्क-कुतर्क का रवैया अपना रही है। उन्होंने न्यायालय से कहा कि राज्य सरकार ने अपने जवाब में यह दलील दी है कि स्वतंत्र जांच के लिए जनहित याचिका दायर करने वाले जनहितैषी नागरिकों ने पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों में इस तरह की हिंसा की घटनाओं पर क्यों चुप्पी लगा रखी थी।

उन्होंने कहा कि यह विश्वास करने लायक नहीं है कि राज्य सरकार इतने गंभीर मामले में यह सब कर रही है। उन्होंने कहा कि कुछ सी-ग्रेड समाचार चैनल अगर यह सब कर रहे होते तो समझा जा सकता था। उन्होंने राज्य सरकार के जवाब पर प्रत्युत्तर (रिज्वाइंडर) हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा जिसके बाद पीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 31 जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

इसके पहले त्रिपुरा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे में कहा है कि कुछ महीने पहले पश्चिम बंगाल में चुनाव पूर्व और चुनाव बाद सांप्रदायिक घटनाएं हुईं। याचिकाकर्ताओं की तथाकथित जनभावना इतने बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर नहीं हिली लेकिन अचानक त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में कुछ घटनाओं की वजह से यह जनभावना हिलोरे मार रही है। राज्य सरकार ने कहा कि वह यह बात याचिकाकर्ताओं के ‘चुनिंदा आक्रोश’ के बचाव के रूप में नहीं बल्कि जनहित के लिए अदालत को संतुष्ट करने के लिए उजागर कर रही है। सरकार ने राज्य में हुई हिंसा की घटनाओं की स्वतंत्र जांच की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने वाले याचिकाकर्ताओं के ‘चुनिंदा आक्रोश’ पर भी सवाल उठाया है।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि जनहित याचिका का दुरुपयोग किया जा रहा है। अदालत ने सिर्फ अखबार की रिपोर्टों के आधार पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना बंद कर दिया है तो अब एक नया तरीका अपनाया गया है जिसमें या तो कुछ टेबलॉयड पर पूर्वनियोजित लेख प्रकाशित किए जाते हैं जो जनहित याचिका का आधार बन जाते हैं। इस तरह के लोकहितैषी लोग अपने ही हित में रिपोर्ट तैयार करने के लिए अपनी टीमों को भेजते हैं, जिनके आधार पर कार्रवाई होती है और उनकी रिपोर्ट के कंटेंट के आधार पर याचिकाएं दायर की जाती हैं।

त्रिपुरा सरकार ने उच्चतम न्यायालय से वकील एहतेशाम हाशमी द्वारा दायर याचिका को खारिज करने का आग्रह किया। हाशमी उस टीम के सदस्यों में से एक थे, जिसने “त्रिपुरा में मानवता के तहत हमले – #मुस्लिम लाइव्स मैटर” शीर्षक से फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की थी।

हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के इस तरह के एक चयनित आक्रोश को इस अदालत के सामने बचाव के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है, लेकिन कोर्ट को संतुष्ट करने के लिए सार्वजनिक हित की आड़ में, इस अदालत के अगस्त मंच का उपयोग स्पष्ट रूप से अपने उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। हलफनामे में यही भी कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह जो पेशेवर रूप से सार्वजनिक-उत्साही व्यक्तियों / समूहों के रूप में कार्य कर रहा है, कुछ स्पष्ट लेकिन अज्ञात उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कोर्ट के असाधारण अधिकार क्षेत्र का चयन नहीं कर सकता है।

हलफनामे में कहा गया है कि त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने घटनाओं का स्वत: संज्ञान लिया था और मामला उसके समक्ष लंबित था। राज्य ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पश्चिम बंगाल नगरपालिका चुनावों के दौरान हिंसा की जांच के लिए हस्तक्षेप की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था और याचिकाकर्ताओं को कोलकाता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का भी निर्देश दिया था।

दरअसल अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में त्रिपुरा में हिंसा हुई थी, जिसमें मुसलमानों के घरों और पूजा स्थलों को निशाना बनाया गया था। आरोप है कि हिंसा का बहाना बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले थे, जिसके साथ राज्य की सीमा लगती है।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और त्रिपुरा सरकार को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा था कि इस मामले में राज्य सरकार की ओर से कदम उठाए नहीं जा रहे हैं। याचिकाकर्ता वकील एहतेशाम हाशमी ने याचिका दाखिल कर त्रिपुरा में मुस्लिमों पर हमले की एसआईटी स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच की मांग की है। हाशमी त्रिपुरा हिंसा के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी में थे, जिन पर पुलिस ने यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था।

दरअसल त्रिपुरा में हुई हिंसा की घटना को लेकर वकीलों की एक टीम ने हाल ही में त्रिपुरा राज्य का दौरा किया और वहां से फैक्ट एकत्रित कर देश के सामने रखे हैं। ये टीम वकीलों के एक संयुक्त मंच लॉयर्स फॉर डेमोक्रेसी के नेतृत्व में गई ये टीम वकीलों के एक संयुक्त मंच लॉयर्स फॉर डेमोक्रेसी के नेतृत्व में गई थी। इन्होने अपनी फैक्ट फाइंडिग रिपोर्ट में पीड़ितों से बात की और प्रशासन की कार्रवाई को लेकर अपनी राय और माँगें भी रखी हैं।

मध्य अक्टूबर को बांग्लादेश में कई दुर्गा पूजा पंडालों और मंदिरों में तोड़फोड़ की गई थी क्योंकि जब सोशल मीडिया पोस्ट में एक मूर्ति के चरणों में रखी गई कुरान की एक प्रति वायरल हुई थी। इसके बाद के हफ्तों में, देश के विभिन्न हिस्सों में अधिक सांप्रदायिक हिंसा और हिंदू अल्पसंख्यक के सदस्यों पर हमलों की सूचना मिली। इन घटनाओं के विरोध में, त्रिपुरा में कथित तौर पर विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जागरण मंच और बजरंगदल द्वारा रैलियां निकाली गईं, जिनमें  अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के घरों, दुकानों और मस्जिदों में तोड़फोड़ में हुईं। सोशल मीडिया पर एक कथित ईशनिंदा पोस्ट को लेकर अक्टूबर के मध्य में दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान बांग्लादेश में भीड़ के हमलों में हिंदू मंदिरों और घरों को निशाना बनाया गया था।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
Published by
जेपी सिंह