माफ करिये निर्मला जी! हमारा राष्ट्रहित आपके राष्ट्रहित से मेल नहीं खाता

मेरा का नेटवर्क आज काम नहीं कर रहा है. किसी तरह 2 जी पर अब काम कर रहा है। इसका मतलब क्या हो सकता है? क्या आईडिया का आईडिया गुल होने वाला है? निर्मला सीतारमण शायद इस पर भी कह दें, कि अधिक मत बोलो। देश का अहित हो सकता है।

लेकिन जिस जिसके पेट पर आपकी सरकार लात मार रही है, वह सिर्फ जिओ और जिओ के मालिक के पेट की खातिर कितने दिन चुप रहकर बर्दाश्त कर सकता है? मैडम, हमें पहले दिन से पता है कि आप और आपके मित्र देश नहीं चला रहे हैं। सिर्फ अभिनय कर रहे हैं।

देश को तो कोई और कब से चला रहा है, आप सिर्फ गालियों की तोहमत अपने सर पर लेने के लिए बने हैं। बदले में मंत्री पद, रुआब और छोटे मोटे काम भी झटक ही रहे होंगे। इस पर भी कोई न बोले?

माना कि कन्हैया कुमार, उमर खालिद, सुधा भरद्वाज, गौरी लंकेश जैसे लोग जो छात्रों, आदिवासियों और आम नागरिकों के सवाल उठा उठाकर आपकी सरकार को बदनाम करने का काम करते रहे हैं, जिसके बदले में आपने अपनी भक्त सेना को ठेका दे दिया।

जिसमें कुछ ने उन्हें बदनाम किया, कुछ अदालत परिसर में ही निपटाने का काम करने तक पहुंच गए और कुछ खास तैयार किये हुए लोग तो नाथू राम गोडसे की तरह उसी पिस्तौल का सहारा लेकर बंगलुरू भी काम तमाम कर आये गौरी लंकेश का, जिसे वे अभिनव संस्था के अभिनव प्रयोग कहते हैं।

बाकी बुद्धिजीवियों, समाज सेवियों को आपने कांग्रेस द्वारा अंग्रेजों से उधार ली हुई धाराओं के तहत राजद्रोह और न जाने क्या-क्या अभियोगों में फंसा कर जेलों में सड़ाने का पुराना तरीका ही विस्तारित रूप से किया है, जो काफी कारगर साबित हुआ है आपके लिए।

उसी तरह JNU जैसे संस्थानों में आपने अपने लगुओ भगुओं को उप कुलपति बनाकर उनकी एक-एक कर तुड़ाई का जो क्रम जारी किया हुआ है, वह अपने आप में 70 साल में जो भी आधा अधूरा बना था, उसे तोड़ने और बिखेरने में कुछ भी कोर-कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन यह तो हद ही हो गई है।

आपने जहां एक तरफ राहुल बजाज को इशारे-इशारे में चुप हो जाने के लिए धमकाया है, और बताया है कि जो हम कर रहे हैं, उससे ना-नुकुर न करें। वरना हम अपनी वही धौंस पट्टी दिखायेंगे, जिससे हमने कई फ़िल्मी सितारों, लेखकों, और खुद को तीस मार खां समझने वाले हार्वर्ड वर्कर को हार्ड वर्कर साबित कर, मुंह से गूं-गूं निकालने पर विवश कर दिया है, उसी तरह आपका हाल भी देशभक्ति के नाम पर कर दिया जाएगा, तो इससे पूरा देश सकते में है।

उसे समझ में नहीं आ रहा कि यहां प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चे तक को रोटी में कभी नमक तो कभी 1 लीटर दूध में बाल्टी भर पानी मिलाकर 80 बच्चों को एक-एक गिलास भरपेट पानी पिलाने वाले राम-राज्य पर हंसें या रोयें। वहां पर ‘हमारा बजाज’ वाले घर-घर में एक समय रहे मशहूर ब्राण्ड बजाज को भी आज कहने पर मजबूर कर दिया गया है कि सब कुछ ठीक नहीं है, बल्कि बहुत कुछ कहना था। लेकिन एक नागरिक के रूप में कई उद्योगपति अपनी बात नहीं कह पा रहे।

छात्र, मजदूर, पब्लिक सेक्टर के कर्मचारी, विद्युत और कोयला क्षेत्र के कर्मचारी जो अपने भविष्य निधि के पैसों पर डाका डाले जाने से हैरान परेशान हैं, या सहकारी बैंकों में पाई-पाई जोड़कर एक दिन खबर मिलती है कि उनका पैसा लेकर कोई आपका ही मित्र फुर्र हो चुका है आदि आदि..। ये सब देश हित में बात नहीं कर रहे। इन्हें ये सब नहीं करना चाहिए।

क्योंकि आपने कश्मीर मामले में बहुत बड़ा तीर मार दिया है। पाकिस्तान घायल पड़ा है। अमेरिका की फूंक सरक गई है ब्ला ब्ला….

हुजूरे आला,

अब तो कोई भी नहीं बचा मेरी समझ में सिवाय अम्बानी बंधुओं और अडानी मित्र के जो आपकी राय से इत्तेफाक रखता हो कि सब चंगा सी।

यह तो सिर्फ अम्बानी जी की इस तिमाही की बैलेंस शीट और अडानी साहब के पिछले साल के 10वें स्थान से छलांग मारकर दूसरे स्थान पर काबिज हो चुके हैं।

अगर आपकी निगाह में इनका विकास और बीजेपी का विकास ही राष्ट्रहित है तो हुजूरे आला, माफ़ कीजिये हम आपके राष्ट्र हित को लात मारते हैं। हमारा राष्ट्रहित आपके राष्ट्रहित से मेल नहीं खाता, बल्कि यह कहें कि हमारा (गरीब किसान, मजदूर,छात्र, महिला, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासियों और मध्य वर्ग सहित इस देश के आम नागरिकों का समुच्चय में हित ही वास्तविक अर्थों में राष्ट्रहित है, और जिसे आप आगे कर रही हैं, वह राष्ट्रहित नहीं बल्कि लुटेरों, साम्राज्यवादी शक्तियों से साठ-गांठ करने वाले गिरोहों और इस देश के बैंकों और तमाम संस्थाओं को खोखला करने वाले भगोड़ों का हित साधन करने की चीख और धमकी है, जिसे कोई भी देशवासी गले से नीचे नहीं उतार सकता। अच्छी बात है कि आख़िरकार बजाज ने चुप्पी तोड़ी है। कई और उद्योगपति यदि उनके अंदर भी थोड़ी बहुत भारतीयता बची होगी, तो वे भी जल्द सामने आते होंगे।

आपका नकाब फट चुका है, और उसके चीथड़ों में आपके असली मालिकों के भयानक चेहरे आम जन को दिखने शुरू भी हो चुके हैं।

(रविंद्र सिंह पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

रविंद्र पटवाल
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