प्लांटेड खबरों की सुनारियों पर पवार के मास्टर स्ट्रोक की लुहारी

महाराष्ट्र में शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली है और उद्धव राज की शुरुआत हो चुकी है । तीनों दलों के इस गठबंधन से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तिलमिला गयी है। उसे यह गठबंधन रास नहीं आ रहा है। नतीजतन जहां उद्धव ठाकरे और शिवसेना पर हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता को लेकर तंज कसे जा रहे हैं वहीं मीडिया के माध्यम से प्लांटेड ख़बरें छपवाकर एनसीपी नेता शरद पवार की छवि धूमिल की जा रही है। शरद पवार भी कोई कच्चे खिलाडी नहीं हैं ,उनहोंने भी जवाब देने में देरी नहीं की और उलटे भाजपा नेतृत्व को यह कहकर कटघरे में खड़ा कर दिया कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी चाहते थे साथ मिलकर काम करें, मैंने प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

भाजपा सांसद गिरिराज सिंह ने ट्विटर पर लिखा, ‘शिवसेना ने बाला साहब की आत्मा को सोनिया गांधी के हाथों गिरवी रख दिया। अब शिवसैनिक को प्रभु राम और अयोध्या का नाम लेने के लिए भी 10 जनपथ पर नाक रगड़नी पड़ेगी। शिवसेना को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे मुगलों ने हिन्दुस्तान में अपना पांव पसारा होगा?’इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ट्वीट कर कहा था, ‘महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने पर गोडसे भक्त उद्धव ठाकरे को बधाई. आप और आपके विधायकों ने अपनी वफादारी सल्तनत के आगे गिरवी रख दी। यह पूरा आत्मसमर्पण सामना को सोनियानामा करार देता है। वे तीसरे दर्जे के आपके अखबार के संपादकीय को बर्दाश्त नहीं करेंगे।’

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने बड़ा दावा करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘साथ मिलकर काम’ करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन उन्होंने प्रस्ताव को ठुकरा दिया। मैंने उनसे कहा कि हमारे निजी संबंध बहुत अच्छे हैं और वे हमेशा रहेंगे लेकिन मेरे लिए साथ मिलकर काम करना संभव नहीं है।पवार ने ऐसी खबरों को खारिज कर दिया कि मोदी सरकार ने उन्हें देश का राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव दिया।पवार ने सोमवार को एक मराठी टीवी चैनल को साक्षात्कार में यह दावा किया।

पवार ने कहा कि मोदी नेतृत्व वाली कैबिनेट में सुप्रिया सुले को मंत्री बनाने का एक प्रस्ताव जरूर मिला था। सुप्रिया सुले, पवार की बेटी हैं और पुणे जिला में बारामती से लोकसभा सदस्य हैं। महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर चल रहे घटनाक्रम के बीच पवार ने पिछले महीने मोदी से मुलाकात की थी। मोदी कई मौके पर पवार की तारीफ कर चुके हैं। पिछले दिनों मोदी ने कहा था कि संसदीय नियमों का पालन कैसे किया जाता है, इस बारे में सभी दलों को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से सीखना चाहिए।

शरद पवार ने यह भी कहा कि उद्धव की अगुवाई वाली सरकार में अजीत को शपथ नहीं दिलाना एक ‘सोचा-समझा फैसला’ था। अजीत ने इससे पहले अचानक से बीजेपी को सपॉर्ट कर देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री बनवा दिया और खुद उपमुख्यमंत्री बन गए थे। हालांकि इसके तीन दिनों के बाद ही अजीत ने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद फडनवीस को भी छोड़ना पड़ा। इसके बाद राज्य में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के सपॉर्ट से सरकार बना लिया।

शरद पवार ने कहा कि जब मुझे पता चला कि अजीत पवार, फडनवीस का समर्थन कर रहे हैं तो सबसे पहले मैंने उद्धव ठाकरे से सम्पर्क किया था। मैंने ठाकरे को आश्वस्त किया कि जो भी हुआ सही नहीं हुआ और अजीत की बगावत को कुचल दूंगा। जब एनसीपी विधायकों को पता चला कि अजीत के इस ऐक्शन के पीछे मेरा हाथ नहीं है तो जो भी 5-10 विधायक उनके साथ थे, वे दबाव में आ गए।पवार ने बताया कि अजीत के अचानक से बीजेपी को सपॉर्ट करने के फैसले से परिवार का कोई भी सदस्य सहमत नहीं था। सभी को लगता था कि उन्होंने गलत किया है। मैंने भी अजीत को बताया कि उनके इस कदम को माफ नहीं किया जा सकता है। कोई भी ऐसा करता तो नतीजा भुगतना पड़ता और वह भी कोई अपवाद नहीं हैं।

इसके पहले मीडिया में यह खबर प्लांट की गयी थी कि भाजपा को समर्थन देने के लिए पवार ने दो शर्तें रखी थीं। पहली शर्त थी कि केंद्र की राजनीति में बेटी सुप्रिया सुले के लिए कृषि मंत्रालय और दूसरी देवेंद्र फडनवीस की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाना। जब यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने आयी तो वह सरकार बनाने के लिए इन शर्तों को मानने को तैयार नहीं हुए।

प्लांटेड ख़बरों में यह भी कहा गया कि भाजपा नेतृत्व को लगा कि अगर महाराष्ट्र में समर्थन हासिल करने के लिए राकांपा को कृषि मंत्रालय दे दिया गया, तो फिर बिहार में पुराना सहयोगी जदयू रेल मंत्रालय के लिए दावा ठोक कर धर्मसंकट पैदा कर सकता है। ऐसे में प्रचंड बहुमत के बावजूद दो बड़े मंत्रालय भाजपा के हाथ से निकल सकते थे। पवार की दूसरी शर्त के बारे में बताया गया कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में देवेंद्र फडनवीस पांच साल तक बेदाग सत्ता चलाने में सफल रहे और विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा। इसके बाद फडणवीस की जगह किसी दूसरे को सीएम बनाने की शर्त मानना भी भाजपा के लिए नामुमकिन था।जबकि हकीकत है कि देवेंद्र फडणवीस सीधे संघ के नॉमिनी हैं और संघ जबतक न चाहे मोदी शाह या कोई अन्य उन्हें हटा ही नहीं सकता।  

प्लांटेड खबरों में यह भी दावा किया गया कि मांगों पर भाजपा की तरफ से सकारात्मक रुख न मिलने पर 20 अक्तूबर को जब संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शरद पवार मिले तो करीब 45-50 मिनट लंबी बातचीत चली। हालांकि इस मुलाकात में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शरद पवार की दोनों मांगों पर राजी नहीं हुए और न ही उन्होंने खुलकर कुछ कहा। अब पवार ने इन प्लांटेड खबरों की हवा निकाल दी हैऔर प्रधानमन्त्री के पीला में गेंद फेंक दी है यानि अब मोदी जी बताएं कि पवार सही कह रहे हैं अथवा नहीं ।  

एक और शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस महाराष्ट्र में सरकार बनाने की रुपरेखा तय कर रहे थे तो दूसरी और “फंस गयी शिवसेना”,”न घर की रही न घाट की शिवसेना” जैसी सुर्ख़ियों से अविश्वास का माहौल बनाने में मीडिया लगी रही।यहाँ तक कहा गया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मुलाक़ात के बाद शरद पवार के तेवर बदले-बदले नज़र आ रहे हैं। पवार ने कहा कि शिवसेना के साथ सरकार गठन को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष से कोई बातचीत ही नहीं हुई। मीडिया को पवार का ये बयान चौंकाने वाला लगा क्योंकि अब तक शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस गठबंधन द्वारा मिल कर सरकार बनाने की बातें मीडिया में चलाई जा रही थीं। अंततः यह सारे कयास गलत निकले और महाराष्ट्र में नये गठबंधन की सरकार बन गयी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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