दो मुख्यमंत्रियों की करनी के बीच उत्तराखंड की जनता

उत्तराखंड में पिछले चार साल त्रिवेन्द्र रावत बतौर मुख्यमंत्री फैसले ले रहे थे । एक से एक ऐतिहासिक । भक्त जन अथवा आईटी सेल के चारण अथवा बेचारे कार्यकर्ता उन फैसलों के बारे में ऐसे ऐसे तर्क गढ़ते थे कि उनकी बुद्धि का लोहा मानना पड़ता ।

समस्त उत्तराखंड के जिलों में 2017 से जिला विकास प्राधिकरण गठित कर दिए गए । लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में अथवा छोटे नगरों में मकान बनाने में दिक्कतें आने लगीं । लोग इस पर कुछ कहते भक्त इसके फायदे गिनाने लगते ।

बद्रीनाथ केदार नाथ मन्दिर समिति को एक दिन अचानक श्राइन बोर्ड अथवा देवस्थानम बोर्ड बना दिया गया । लोगों ने विरोध में आंदोलन किया प्रतिरोध किया । भक्तजन व्हाट्सएप पर इसके फायदे गिनवा रहे थे ।

नन्दप्रयाग घाट में लोग सड़क को डेढ़ लेन करने के लिए आंदोलन कर रहे थे । उनकी जब महीनों सुनवाई नहीं हुई उन्होंने विधानसभा गैरसैंण कूच किया ।उन पर लाठियां चलीं । भक्त जन इन लाठियों का भी समर्थन करते रहे । एक विधायक ने तो बाकायदा यहां तक कहा कि आंदोलन के पैसे मिले आंदोलनकारियों को। उनके बैंक खातों की जांच होनी चाहिए। पूरे सोशल मीडिया में आंदोलन को बदनाम करने के लिए अभियान ही चला । भक्त जन इसमें प्रमुख थे ।

कोरोना काल में पूरा देश अचानक बंद कर दिया गया । पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्र भी इससे प्रभावित हुए । दूर दराज शहरों से लोग घर लौटने को मजबूर हुए । ऐसे नाजुक समय में जब लोग रोजी – रोटी से लेकर जीवन की तमाम जरूरतों को लेकर परेशान थे, तब उन्हीं वक़्त के मारे लोगों पर लॉक डाउन उल्लंघन के मुकदमें किये गए । पहले तो जो माहौल था, उसमें यह सम्भव ही न था पर, फिर भी कहीं जब लोग इसकी शिकायत करते , भक्त लोग उन्हीं को दोषी ठहराते । कइयों को धार्मिक वजहों से जाने क्या क्या झेलना पड़ा । पूरा भक्त समुदाय उनके खिलाफ अभियान चलाए रहा । कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करवाना सरकार का कम आईटी सेल व भक्तों का ज्यादा लग रहा था ।

अब नए मुख्यमंत्री ने आते ही उन्हीं ‘ऐतिहासिक फैसलों’ को एक एक कर पलटना शुरू किया है, तो भक्त समुदाय के सम्मुख धर्म संकट है । इन्हें ऐतिहासिक बताएं तो लोग पलटकर पूछेंगे तब क्या था ।

प्राधिकरण के सवाल पर लोगों ने तभी सवाल उठाया था । जगह जगह आंदोलन भी हुए । महानगरों के लिए बने नियम कानून जो मैदानी क्षेत्रों में तो किसी तरह लागू किये जा सकते थे, किन्तु पहाड़ी क्षेत्रों में पूरी तरह अव्यवहारिक थे । बहुत हल्ला होने पर त्रिवेन्द्र रावत ने कहा जरूर कि समीक्षा करेंगे वापस लेंगे । मगर बयान देने से आगे नहीं बढ़े । अब मुख्यमंत्री ने जिस अंदाज में इसके वापसी की बात कही है कि, यह तो अधिकारियों के पैसे खाने का जरिया था, उसी के लिए बना था , तो यह और भी गम्भीर हो जाता है । यदि मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि इसको बनाने का उद्देश्य ही भ्रष्ट था और इसमें पूरी तरह भ्रष्टाचार हो रहा था, तो यह आरोप तो पूर्व मुख्यमंत्री पर ही लगता है । यदि उद्देश्य ही भ्रष्ट हो तो उन पर कार्यवाही होनी चाहिए जांच हो और दोषियों को सजा हो । तभी मुख्यमंत्री के बयान की सार्थकता है ।

एक ही पार्टी की सरकारों में यह हो तो बेचारे भक्त कहें तो कहें क्या । जाएं तो जाएं कहाँ ?

श्राइन बोर्ड अथवा देवस्थानम बोर्ड , 1939 के बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के एक्ट के स्थान पर लाया गया । त्रिवेन्द्र ने हक हकूकधारियों से व अन्य स्टेक होल्डर से राय मशविरे की जरूरत महसूस नहीं की । जिसका फल हुआ कि इसके खिलाफ पूरे प्रदेश में आंदोलन हुआ । विधानसभा घेराव हुआ । भाजपा के ही सांसद सुब्रमण्यम स्वामी इसके खिलाफ हाईकोर्ट चले गए । पर मुख्यमंत्री जी पर कोई फर्क नहीं पड़ा । उनके समर्थक भक्त जन भी हक़ हकूकधारियों का मजाक बनाते रहे । अब नए मुख्यमंत्री के आदेश हैं कि इस बार यात्रा पूर्ववत चलेगी । पहले के कायदों के हिसाब से कार्य होगा । श्राइन बोर्ड पर राय मशविरा पुनर्विचार होगा। त्रिवेन्द्र अब क्या कहेंगे , उनके समर्थक और भाजपा के लोग क्या कहेंगे ?पहले सही हुआ था या अब ? यदि अब ठीक हो रहा है तो इसका आशय पहले गलत हुआ था । चार साल लोगों के साथ गलत किया गया । और जनता को चार साल धोखा दिया गया अन्याय किया गया ।

नन्दप्रयाग घाट में सड़क के डेढ़ लेन करने की घोषणा दो दो मुख्यमंत्री कर चुके थे । कार्य शुरू होना था । जो नहीं हुआ । एक बेकार से नियम की आड़ लेकर । जिसे कभी भी बदला जा सकता था । पूर्व मुख्यमंत्री की जिद के चलते आंदोलन लम्बा खिंचा, विधानसभा घेराव तक पहुंचा , वहां मुख्यमंत्री की जिद अडियलपने के चलते महिलाओं बुजुर्गों तक पर लाठीचार्ज हुआ ।आंदोलन कारियों पर मुकदमें हुए । भक्त समुदाय उसका बचाव करते रहे । आज के मुख्यमंत्री ने सड़क पर काम शुरू करने को कहा है । मुकदमे वापस लेने की बात कही है । इसकी हम सब मांग कर ही रहे थे । इससे भी यही सिद्ध हुआ कि पूर्व की सरकार का निर्णय गलत था । इसका यह भी मतलब हुआ कि लाठीचार्ज की कार्यवाही भी गलत थी । तो उनपर कार्यवाही भी सुनिश्चित होनी चाहिए । जिनने आदेश दिया ।

यही कोरोना के समय दर्ज सैकड़ों मुकदमों के मामले में है । तभी यह कहा गया कि यह अति हो रही है । लोग पहले ही परेशान हैं ऊपर से उनपर मुकदमें किये जा रहे हैं । मास्क के नाम पर वसूली हो रही थी । पहाड़ में जहां कोरोना सिर्फ हौवा था वहां भी उतनी ही सख्ती थी मुकदमें थे । आज के नए मुख्यमंत्री जी ने वे मुकदमे वापस कर यह साबित किया कि तब लोगों पर ज्यादती की गई । ज्यादती करने वाली सरकार भी इसी पार्टी की थी । यही विधायक थे जो कह कह कर, फेसबुक में लिख लिख कर , मुकदमें करवा रहे थे । वे अब क्या कहेंगे ?

एक ही सरकार के दो मुखियाओं के अलग अलग नहीं बल्कि एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत फैसले क्या साबित करते हैं ? यही कि, जनता के साथ तमाशा खिलवाड़ किया जा रहा था पिछले चार साल ? अब अगर फैसले पलटे हैं तो, चार साल हमने जो ये फैसले झेले हैं ,जिसका हमने खामियाजा भुगता, नुकसान उठाया उसकी जिम्मेदारी भी तो तय होगी । भक्त जन तो कल परसों इन फैसलों के लिए भी तर्क ले आएंगे , इन फैसलों को भी अपनी उपलब्धि बता नए व्हाट्सएप फारवर्ड पर जुट जाएंगे । परन्तु असल सवाल तो रहेगा कि पिछले चार साल को बर्बाद करने का जिम्मेदार जो है उसपर कार्यवाही होगी या नहीं ? उसको सजा होगी या नहीं ? उस एक व्यक्ति के अहंकार का शिकार राज्य हुआ उसके लिए उस पर जिम्मेदारी आयद होगी या नहीं ? यदि यह नहीं होता तो क्या पता कल तीरथ सिंह जाएं वही फिर आ जाएं या उन्हीं जैसा कोई और , और फिर वही फैसले थोप दिए जाएं तब ?

(वाम राजनीतिक कार्यकर्ता अतुल सती का लेख। यह लेख उनके फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)

अतुल सती
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अतुल सती