वाराणसी: ‘पीएम दौरे करते हैं और गरीब उजड़ते हैं’

वाराणसी। यूपी का विधानसभा चुनाव अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुका है। जहां सातवें व आखिरी चरण में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में सात मार्च को मत डाला जाएगा। हर पार्टी अपने-अपने स्तर पर जनता को रिझाने की कोशिश कर रही है। भाजपा यहां की आठ सीटों से अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है। इतना ही नहीं दिसंबर के महीने में पीएम ने स्वयं 10 दिन में दो रैलियां की थी। ताकि वह वाराणसी का विकास लोगों तक पहुंचा पाएं। लेकिन क्या सच में ऐसा विकास हुआ है। जिस वाराणसी के विकास की बात पीएम मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चीख-चीखकर कर रहे हैं।

क्या सच में वाराणसी का वही विकास है जिसे बार-बार दिखाया या बताया जा रहा? वाराणसी एक धार्मिक नगरी के साथ-साथ शैक्षणिक नगरी भी है। जहां केंद्रीय विश्वविद्यालय बीएचयू से लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसी ऐतिहासिक शिक्षण संस्था है। यहां के युवाओं का शैक्षणिक स्तर बहुत ऊंचा है। वो हर मुद्दे पर अपनी बात को रखते हैं। क्या सोचते हैं युवा इस सरकार के बारे में यह जानना बहुत जरूरी है। क्योंकि सत्ता में आसीन होने से पहले इस सरकार ने अपने आप को युवाओं के लिए समर्पित सरकार कहा था। जहां अच्छी शिक्षा व्यवस्था से लेकर रोजगार तक की बात कही गई थी। क्या सच में उस सरकार के कार्य से युवा पीढ़ी खुश है।

रत्नेश यादव बीएचयू के शोधार्थी हैं। वह कोरोना के दिनों को याद करते हुए थोड़ा सहम जाते हैं। इसका सीधा कारण है कि उन्होंने दूसरी लहर के दौरान मां को खो दिया। वह बताते हैं कि यूपी के जिला अस्पतालों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। मेरी मां को किसी तरह अंतिम समय में ऑक्सीजन मिल भी गया तो बेड की कोई व्यवस्था नहीं थी। उस दिन को याद करते हुए वह बताते हैं कि पूर्वांचल का सबसे बड़ा अस्पताल बीएचयू ट्रॉमा सेंटर है। यहां हमने एक दिन तीस-चालीस लाशें एक साथ देखी है। अगर किसी को ऑक्सीजन मिल जा रहा था तो बाकी की सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं। इसी व्यवस्था ने हमारे एक साथी को भी हमसे छीन लिया है और सरकार कहती है कि ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी की मौत नहीं हुई है। यह बात किसी बेशर्मी से कम नहीं है। रत्नेश आगे बताते हैं कि सरकार ने कभी भी इन बेसिक मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया है और आगे भी शायद न दे। क्योंकि इनके चुनावी एजेंडों में ये सारी चीजें होती ही नहीं हैं।

ये तो थी रत्नेश की वह दास्तां जिससे भारत के कई परिवार गुजरे होंगे। इसके बाद मेरी बात राजनीति शास्त्र के शोधार्थी आनंद कुमार मौर्या से हुई जिनका कहना है कि मोदी जी का कहना कि उन्होंने बहुत विकास किया है। लेकिन यह विकास गरीबों के लिए नहीं है। जब भी पीएम वाराणसी का दौरा करते हैं तो लगभग 20 किलोमीटर के रास्ते में आने से कुछ दिन पहले ही छोटी-छोटी दुकानों और गुमटी वालों को वहां से उठा दिया जाता है। यह कैसा विकास है जहां पीएम खुद कहते हैं कि मैं चाय बेचकर यहां तक पहुंचा हूं और दूसरी तरफ एक चाय वाले की ही दुकान बंद कर दी जाती है।

रत्नेश, आनंद कुमार मौर्य और राहुल यादव

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह मुझसे ही सवाल करते हैं कि क्या विकास का हकदार सिर्फ वाराणसी ही है इसी जिले से सटा है चंदौली और सोनभद्र जो आज भी विकास को तरस रहा है। जबकि दोनों ही जिले खनिज संपदा के भंडार हैं। चंदौली पूरी तरह से जंगल से घिरा हुआ है और सोनभद्र में कोयला है। जबकि यह दोनों ही जिले अति पिछड़े की श्रेणी में आते हैं। क्या इन जिलों का विकास नहीं होना चाहिए?  क्या वहां की जनता सरकार को वोट नहीं करती है। अगर हम इन्हें वोट करते हैं तो वहां की जनता उपेक्षा की शिकार क्यों है।

आपको बता दें कि बीएचयू में लगभग साढ़े आठ हजार और काशी विद्यापीठ में लगभग साढ़े तीन हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। जिनमें से कुछ सरकार के विकास के दावों को सही मानते हैं और कुछ इस बात को कोरा झूठ कहते हैं तो कई इस मामले में बहुत मझा हुआ जवाब देते हैं। इनमें से एक हैं राहुल यादव। राहुल समाज शास्त्र के शोधार्थी हैं। वह लगभग सात-आठ सालों से बीएचयू से जुड़े हैं। वह कहते हैं कि वाराणसी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। लेकिन इस क्षेत्र का विकास उस हिसाब से नहीं हुआ जिस हिसाब से होना चाहिए था। शुरुआती दिनों में कहा गया था कि इसे क्योटो बनाया जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। गंगा की सफाई के लिए जितना पैसा खर्च किया गया वैसा काम हुआ नहीं है। बस बनारस स्टेशन और बनारस कैंट स्टेशन को बनाया गया है।

यह एक सकरात्मक कदम था। राहुल बीएचयू के विकास की बात करते हुए कहते हैं कि लंबे समय तो ऑनलाइन क्लासेज चली रही थीं। अब ऑफलाइन सब कुछ शुरू हो रहा है। वह कहते हैं जिस बीएचयू में बच्चों का पढ़ना सपना होता है। वहां सेंट्रल लाइब्रेरी में स्टूडेट्स बैठने की जगह नहीं पा रहे हैं। वहां न तो कुर्सियां पूरी हैं न ही कंप्यूटर की पूरी व्यवस्था है। ऐसे में कैसे कह दें कि यूनिवर्सिटी का विकास हुआ है। प्रोफेसर क्वार्टर की मरम्मत करा देने से यूनिवर्सिटी का विकास नहीं होगा। इसलिए यहां स्टूडेट्स के लिए पूरी व्यवस्था होनी चाहिए।

कोरोना एक ऐसा दौर रहा है जिससे हर व्यक्ति प्रभावित हुआ है। कोई आर्थिक तौर पर तो कोई मानसिक तौर पर। लॉकडाउन के उस दौर को याद करते हुए शोधार्थी हंसराज ओझा जो कि बिहार से ताल्लकु रखते हैं। कहते हैं कि अनप्लॉन्ड लॉकडाउन से छोटे व्यापारियों को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। वह कहते हैं कि पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी से भारत के छोटे व्यापारियों को खत्म कर दिया है।

ओझा

राहुल बताते हैं कि इस यूनिवर्सिटी से एक चाय बेचने वाले परिवार से लेकर स्टूडेट्स को ट्यूशन पढ़ाने वाले तक सबका पेट भरता है। लेकिन सरकार की एक नाकामी के कारण सबका धंधा ठप हो गया। हमारी यूनिवर्सिटी से कई लोगों का घर चलता है। एक व्यक्ति चाय बेचता, किसी की छोटी मोटी दुकान है, जिरोक्स वाले लोगों का धंधा तो पूरी तरह से स्टूडेंट्स पर ही आश्रित था। वह पूरी तरह से नष्ट हो गया। हमारे कुछ जूनियर जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। लेकिन वह पढ़ना चाहते थे। वह आस पास के घरों में ट्यूशन पढ़ाते थे। उनका वह छूट गया जिसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा है। अब ऐसी स्थिति में कैसे कह दें कि विकास हुआ है। जहां लोग अपने रोजी रोजगार से हाथ धोकर बैठ गए हैं।

साल 2017 में बीएचयू की छात्राओं ने सेक्सुएल हैरेसमेंट के मामले में प्रशासन के खिलाफ लंका गेट के पास धरना-प्रदर्शन किया था। एक लड़की हर किसी के जहन में आज भी है। जिसने प्रशासन के रवैय्ये का विरोध करते हुए अपना सिर मुंडवा लिया था। उस समय का जिक्र करते हुए आकांक्षा कहती हैं कि योगी सरकार पूरी तरह से महिला विरोधी है।

उस समय को याद करते हुए वह कहती हैं कि साल 2017 में इसी सरकार ने सेक्सुएल हैरेसमेंट के मामले में छात्राओं पर लाठियां चलाई थी। उस वक्त राज्य में भाजपा की ही सरकार थी और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री थे। पूरे राज्य में महिलाओं की स्थिति पर बात करते हुए वह कहती हैं कि इसी राज्य में उन्नाव हाथरस जैसी घटनाएं होती हैं। लेकिन सरकार बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगाकर महिला सुरक्षा का दावा कर रही है। मुझे कोई बताए कहां महिलाएं सुरक्षित हैं। जिस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाया गया है। उसकी हकीकत इन सबसे अलग है।

सरकार के दावों का जिक्र करते हुए विकास कुमार पांडेय कहते हैं कि सिर्फ सड़कों का निर्माण कर देने से विकास नहीं होता है। अगर सड़क का निर्माण किया जा रहा तो अस्पताल का भी निर्माण किया जाना चाहिए था। ताकि लोग इलाज के अभाव में जान न गंवा सकें। कोरोना की भयावह स्थिति किसी से नहीं छिपी है। आज के युवा वर्ग का जिक्र करते हुए विकास कहते हैं कि आज के युवा किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने के बजाए उसे सरकार बनाम विरोधी कर देते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन देखा जाए तो ऐसी स्थिति को पैदा किया गया है। हम भले ही किसी विचारधारा की पार्टी से ताल्लुक ऱखते हों हमें उससे ऊपर उठकर अपने निजी विचारों पर भी ध्यान देने की जरुरत है। तभी सारी चीजें सही होंगी।

(बनारस से पत्रकार पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

पूनम मसीह
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