प्रधानमंत्री जी! दिल्ली और देश का यह प्रयोग आपके ऊपर भारी पड़ने जा रहा है

कभी-कभी अनजाने में ही सही बात निकल जाती है। कल दिल्ली में यही हुआ जब पीएम मोदी ने कड़कड़दूमा की सभा में कहा कि शाहीन बाग, जामिया और सीलमपुर में एक प्रयोग हो रहा है। हालांकि वह सौहार्द बिगाड़ने वाले अपने निष्कर्षों में सही नहीं थे। लेकिन एक बात बिल्कुल सच है कि यह एक प्रयोग है। समाज के सबसे आखिरी पायदान पर रहने वाली महिलाएं न केवल उसके केंद्र में हैं बल्कि हर तरीके से उसकी अगुआई कर रही हैं। अभी तक मुस्लिम समाज में वर्चस्वकारी भूमिका निभाने वाले मुल्ला और मौलवियों को सचेतन तरीके से इससे अलग रखा गया है। और पूरा आंदोलन गांधी, अंबेडकर, नेहरू और मौलाना आजाद के बताए रास्ते पर चल रहा है। यह आंदोलन न तो किसी अलगाववादी भावना से ग्रस्त है न ही किसी समुदाय के वर्चस्व को स्थापित करने की इसमें बात हो रही है। यह उस संविधान रूपी द्रौपदी को बचाने की लड़ाई है जिसे भरी संसद में तार-तार कर दिया गया और उसकी रक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली न्यायपालिका सरीखी दूसरी संस्थाएं भीष्म पितामह बनी रहीं। प्रधानमंत्री जी आपने बात सही कही लेकिन वह अर्धसत्य है। आंदोलन केवल शाहीन बाग, जामिया और सीलमपुर तक ही सीमित नहीं है।

इसी दिल्ली के भीतर जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय और उसमें भी सबसे एलीट समझे जाने वाले सेंट स्टीफेंस के छात्र उठ खड़े हुए हैं। आईटीओ से लेकर जंतर-मंतर और संसद मार्ग पर  हुए अनगिनत प्रदर्शन इसके गवाह हैं। ये सब उसी प्रयोग के हिस्से हैं। इन प्रदर्शनों में सबसे ज्यादा भागादारी नौजवानों और उसमें भी छात्राओं की रही है। सिविल सोसाइटी के साथ मिलकर चलने वाले इन आंदोलनों की तासीर बहुत गहरी है। यह संविधानवाद को एक नये मुकाम पर ले जाने का संकल्प है। लिहाजा इसका लक्ष्य बहुत बड़ा है। सच्चाई यह है कि जो सेकुलरिज्म अभी तक संविधान के पन्नों तक सीमित था वह जमीन पर उतर रहा है। नारे तक महदूद रहने वाला स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व अब लोगों की जेहन का हिस्सा बन रहा है।

आजादी की लड़ाई के जो मूल्य थे उन्हें संविधान, संसद, न्यायपालिका समेत सरकारों के जरिये निचले स्तर पर उतरना चाहिए था। लेकिन पिछले 70 सालों में वह एक वर्ग तक सीमित होकर रह गया। उसको आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उन राजनीतिक व्यवस्थापकों की थी जो पिछले 70 सालों से इसकी अगुआई कर रहे थे। लेकिन वे न केवल अपने कर्तव्यों में नाकाम रहे बल्कि इन 70 सालों का जो हासिल था वह भी अब दांव पर है। ऐसे में उसको महफूज रखने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब खुद जनता ने अपने हाथ में ले ली है। यह महज शाहीन बाग तक सीमित नहीं है। देश भर में जगह-जगह आया उबाल इस बात को बता रहा है कि यह प्रयोग बहुत आगे तक बढ़ेगा। क्योंकि इसके केंद्र में एक तरफ महिलाएं हैं तो दूसरी तरफ नौजवान जिसकी आबादी इस समय 65 फीसदी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी समाज उसी तरफ बढ़ता है जिस दिशा में उसकी युवा पीढ़ी देखती है। दूसरे शब्दों में कहें तो युवाओं का रास्ता ही देश का रास्ता होता है। और अब देश के पढ़ने-लिखने वाले इन युवाओं ने संविधान को बचाने का संकल्प ले लिया है।

लोग कह रहे हैं कि इस आंदोलन का कोई नेता नहीं है। किसी भी आंदोलन का यही सबसे बड़ा सच होता है कि वह अपना नेता खुद पैदा कर लेता है। कन्हैया, जिग्नेश, चंद्रशेखर आजाद और कविता कृष्णन से लेकर गिनाने के लिए एक लंबी फेहरिस्त है जो इस आंदोलन की अगुआई कर रही है। प्रधानमंत्री जी आप राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। और आप जानते हैं कि यह आंदोलन आपकी सरकार और आपके संघी सपनों पर कितना भारी पड़ रहा है। बीजेपी के भीतर की रिपोर्टें बता रही हैं कि नेतृत्व इसका सही आकलन नहीं कर पाया। अब जबकि मामला आगे बढ़ गया है तब आप समेत अमित शाह और पूरी बीजेपी उसे हिंदू-मुस्लिम करने में जुट गयी है। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी आप अपने मंसूबों में सफल नहीं हो पा रहे हैं। प्रधानमंत्री जी आप इसे प्रयोग की संज्ञा दे रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि एक प्रयोग तो आप भी कर रहे हैं।

आपने पूरे देश को सांप्रदायिकता की भट्ठी पर चढ़ा दिया है। सौहार्द शाहीन बाग नहीं, नागरिक और नागिरक के बीच भेद पैदा कर आप बिगाड़ रहे हैं। और एनआरसी तथा एनपीआर के जरिये इसे सड़न की हद तक ले जाने का आपके पास रोडमैप है। और इन प्रयोगों से निकला सड़ा हिंदू राष्ट्र न केवल धार्मिक आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करेगा बल्कि हिंदू धर्म के भीतर भी जातियों से लेकर महिलाओं के बीच हर तरह के ऊंच-नीच, छुआछूत और भेदभाव को बढ़ावा देने का काम करेगा। लिहाजा आप अपना प्रयोग कर रहे हैं और देश की जनता अपना। इस लड़ाई में कौन सफल होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन एक बात तय है कि एक तरफ जब आपका पितृ संगठन आरएसएस महिलाओं को घर की चारदावारी में कैद कर देना चाहता है तब समाज की महिलाएं और बच्चियां सड़क पर आकर खुदमुख्तारी का झंडा पकड़ ली हैं। चूंकि यह समाज का सबसे हाशिये का तबका होता है और पारिवारिक इकाई के केंद्र में होता है इसिलए यह न केवल खुद को बल्कि परिवार और समाज दोनों को मुक्त करेगा। और शायद इसी बात का आपको भय है। क्योंकि पुरुष वर्चस्व के टूटने का मतलब है हर तरह की गैरबराबरी का खत्म होना।

प्रधानमंत्री जी यह एक तरह का नवजागरण है। समाज में पूरा मंथन चल रहा है। हर सही और गलत का इसमें परीक्षण होगा। बहस-मुबाहिसा और तर्क-वितर्क इसके बुनियादी हथियार बन रहे हैं। भक्ति और कठमुल्लापन की जगह तार्किकता उसका स्थान ले रही है। सोशल मीडिया से लेकर गांव के नुक्कड़-चौराहों पर चलने वाली बहसें समाज को एक नई दिशा देने का काम कर रही हैं। अच्छी बात यह है कि इसकी कमान युवाओं के हाथ में है जो न केवल पढ़ा-लिखा है बल्कि सबसे ज्यादा ऊर्जाशील भी है। लिहाजा वह मंजिल पाने से पहले कत्तई थकने नहीं जा रहा है।

और हां एक चीज आखिर में आपके लिए। ऐसा नहीं कि लोग हिंदू-मुस्लिम करने के पीछे आपके असली खेल को नहीं समझ रहे हैं। अर्थव्यवस्था की जो आपने ऐसी-तैसी की है वह अब किसी से छुपी नहीं है। यहां तक कि आपके लोग भी इस बात को अब मानने लगे हैं। आप भले ही भूल गए हों लेकिन पूरी अवाम को याद है कि आपने देश नहीं बिकने दूंगा का नारा दिया था। लेकिन सच्चाई यह है कि पिछले 70 सालों में जनता की गाढ़ी कमाई से खड़े हुए एक-एक विशालकाय संस्थान और उपक्रम को आप बारी-बारी से बेच रहे हैं। वह रेलवे हो कि बैंक या फिर एयर इंडिया हो कि एनटीपीसी सब की आप ने बोली लगा दी है।

और इस बजट में एलआईसी को बेचने का ऐलान करके आपने जनता की इस संचित तिजोरी में भी कारपोरेट को सेंध लगाने का मौका दे दिया। आपको नहीं भूलना चाहिए कि एलआईसी के मद में जमा 26 लाख करोड़ रुपये के महज आप कस्टोडियन हैं मालिक नहीं। लिहाजा उस पर फैसला लेने से पहले आपको जनता से पूछना चाहिए था। आपको बता दें कि यह रकम देश के सालाना बजट से भी ज्यादा है। लिहाजा जनता के इस इकट्ठा पैसे पर कॉरपोरेट की काली निगाह लग गयी है। और मोदी सरकार उसे उन्हें सौंप देना चाहती है। आप हिंदू-मुस्लिम इसलिए कर रहे हैं जिससे किसी को भी एलआईसी और रेवले तथा औने-पौने दामों पर एयर इंडिया को बेचने के आपके इन फैसलों पर सवाल उठाने का मौका न मिले। लेकिन इस देश के मजदूर और कर्मचारी समझ गए हैं आम अवाम जान गयी है लिहाजा सभी ने आप के इन मंसूबों के खिलाफ लड़ने का वीड़ा उठा लिया है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।)  

महेंद्र मिश्र
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