भुखमरी से लड़ने के लिए बने कानून को मटियामेट करने की तैयारी

मोदी सरकार द्वारा कल रविवार को राज्यसभा में पास करवाए गए किसान विधेयकों के एक साल बाद इस देश में कोविड-19 वैश्विक महामारी आती तो क्या होता। शायद तब कोरोना से ज़्यादा संख्या भुखमरी से मरने वालों की होती।

इस कोरोना काल में कृषि क्षेत्र ने देश की करोड़ों की आबादी को भुखमरी से बचा लिया। कुछ लोग जो भुखमरी के शिकार भी हुए वो सरकार की नाकामी की वजह से हुए। बावजूद इसके पिछले कई दशकों से लगातार सत्ता की उपेक्षा झेल रहे लाखों किसानों की खुदकुशी के बाद भी कृषि क्षेत्र ने संकटग्रस्त आवाम को ज़िंदगी दी। केंद्र की मोदी सरकार कृषि क्षेत्र को कंपनियों का हवाले करने वाले तीन कानूनों को पास कराने में कामयाब  हो गई है।

ये तीन कानून हैं
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल, 2020

पहले कानून यानी आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 पर बात करते हैं। सबसे पहली बात ये कि ये जिस कानून में संशोधन किया जा रहा है वो क़ानून क्या था और किन परिस्थितियों में बनाया गया था और ये कानून किसके किन हितों की रक्षा करता था।

देश की आज़ादी के ठीक बाद भारत में अकाल के हालात थे। एक ओर जनता भुखमरी से जूझ रही थी दूसरी ओर जमाखोर पूंजीपति वर्ग अकाल को आपदा में अवसर मानकर मोटा मुनाफ़ा कमा रहे थे। तब पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रतिनिधित्व वाली कांग्रेस सरकार ने साल 1955 में एक कानून बनाया ‘आवश्यक वस्तु विधेयक-1955’। ये कानून जनता के लिए ज़रूरी सामानों की जमाखोरी, मुनाफ़ाखोरी आदि पर लगाम लगाता था। साथ ही आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति और कीमतों को सरकारी नियंत्रण में रखने का काम करता था।

आवश्यक वस्तुओं की सूची में समय के साथ कई चीज़ें जोड़ी गईं, कई हटाई गईं। जैसे फेस मास्क और सैनिटाइज़र को कोविड-19 वैश्विक महामारी के भारत आगमन के बाद इसी मोदी सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं में जोड़ा गया था। जून 2020 में ‘आवश्यक वस्तु संसोधन विधेयक’ अध्यादेश लागू होने तक आवश्यक वस्तुओं में ये चीज़ें आती थीं- दवाइयां, कृत्रिम उर्वरक (फर्टिलाइजर्स), तिलहन, सूत, पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद, जूट और जूट के कपड़े, खाद्यान्न, फल और सब्ज़ियों के बीज, जानवरों का चारा, जूट के बीच, रुई के बीज, मास्क और हैंड सैनिटाइज़र आदि।

किसी सामान को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में जोड़ने का आशय है कि सरकार उस वस्तु की कीमत, उसका उत्पादन, उसकी आपूर्ति को सरकार नियंत्रित कर सकती है। इसके साथ ही उस वस्तु के भंडारण की सीमा तय कर सकती है। जैसा कि पिछले कुछ वर्षों से अक्सर हम प्याज और दालों के दाम बढ़ने पर देखते-सुनते आ रहे हैं। प्याज के बेलगाम दाम (100-150 रुपये किलो) के चलते 1998 में दिल्ली की भाजपा की सरकार ऐसे गई कि एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी दिल्ली की सत्ता नहीं मिली।

नए कानून में आवश्यक वस्तुओं के क्या प्रावधान हैं?
नए ‘आवश्यक वस्तु संशोधन कानून-2020’ के मुताबिक, सरकार के पास ये अधिकार होगा कि वो ज़रूरत के हिसाब से चीज़ों को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटा सकती है या उसमें शामिल कर सकती है, लेकिन ये ज़रूरत कब होगी। और जब होगी तब क्या शामिल करने भर से स्थितियां संभल जाएंगी?

याद कीजिए मार्च-अप्रैल में जब कोरोना देश में फैल रहा था, तब मेडिकल उपकरणों को लेकर देश में हाय-तौबा के हालात थे। केंद्र सरकार पर कोरोना की आड़ में कालाबाजारी को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जा रहा था। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने अपने ट्वीट में लिखा, प्रधानमंत्री जी, यह एक माफ नहीं करने लायक अपराध और षड़यंत्र है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि वेंटिलेटर, सर्जिकल/फेस मास्क और मास्क/गाउन बनाने वाले सामान का भंडारण हो। बावजूद इसके 19 मार्च तक 10 गुना कीमत पर सरकार इनके निर्यात करने की इजाजत देती रही, जबकि एम्स समेत तमाम प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में ये सभी सामान उपलब्ध नहीं थे। कोरोना काल में डॉक्टर और नर्स लगातार बिना पीपीई किट के काम करते हुए संक्रमित हुए। इसे लेकर लगातार स्वास्थ्यकर्मियों ने सरकार से मांग की, आंदोलन किया, कइयों को नौकरी तक से हाथ धोना पड़ा।

नए संशोधन कानून में प्रावधान किया गया है कि अनाज, दलहन, आलू, प्याज़, तिलहन और तेल की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही सरकार नियंत्रण लगाएगी। सरकार के लिए वो अति असाधारण परिस्थितियों युद्ध, अकाल, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा होगी। तो पहली बात ये है कि इस देश में सरकार द्वारा अकाल को अकाल, आपदा को आपदा और बाढ़ को बाढ़ घोषित करने में ही दो महीने लग जाते हैं। हर साल हम देखते सुनते आ रहे हैं जब राज्य सरकार को केंद्र से मिन्नत करनी पड़ती है कि वो बाढ़ को बाढ़ और अकाल को अकाल घोषित करे। केंद्र सरकार कई बार इस चालाकी में घोषित नहीं करती, क्योंकि घोषित करने पर उसे उस राज्य को राहत पैकेज देना पड़ेगा। विशेष कर यदि राज्य में केंद्र की विरोधी पार्टी की सरकार है तो।

केरल में साल 2018 में आई बाढ़ में केरलवासी इसी राजनीतिक परिस्थिति से गुज़रे थे। कितनी भी बाढ़ या अकाल आए जब सरकार घोषित ही नहीं करेगी तो वो अति असाधारण परस्थितियां आएंगी ही नहीं. लेकिन जब ये आ ही जाएंगी तो सरकार इनको सूची में सम्मिलित करके क्या तीर मार लेगी।

कानून में कहा गया है कि जब सब्ज़ियों और फलों की कीमत में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, या फिर जब खराब न होने वाले खाद्यान्नों की कीमत में 50 प्रतिशत तक का इज़ाफा होगा तब सरकार इन चीज़ों और किसी भी कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कीमतों के आधार पर ही एक्शन लेगी। यानी अगर फल और सब्जियों में 90 से 99 प्रतिशत कीमत में बढ़ोत्तरी होती है तो जनता को उसे मोदी सरकार का उपहार समझकर झेलना पड़ेगा।

इस आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020 से सरकार ने तमाम जनोपयोगी वस्तुओं पर नियंत्रण से अपना हाथ समेट लिया है। सब कुछ अब बाज़ार के हवाले है। हर दूसरे-डतीसरे साल जो हालत अभी प्याज की उपलब्धता, अनुपलब्धता और कीमत को लेकर दिखता आया है, कमोबेस हर वस्तु के संदर्भ में अब देखने को मिलने जा रहा है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

सुशील मानव
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