त्वरित टिप्पणीः ट्रंप का भारत आगमन और मौजपुर, दिल्ली में सीएए विरोध प्रदर्शन के खिलाफ सीएए समर्थकों के उग्र प्रदर्शन के मायने

दिल्ली में हिंसा हो गई है। एक पुलिसकर्मी के इस हिंसा की चपेट में मौत होने की खबर अभी अभी एनडीटीवी के सूत्रों से आ रही है। दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में बिगड़ते कानून व्यवस्था पर गृहमंत्री से अनुरोध किया है कि वे इस पर ध्यान दें। और शांति बहाली की व्यवस्था को देखें।

ट्रंप अपनी ओर से जुमलेबाजी में कोई कमी नहीं होने दे रहे हैं। भारतीय दर्शकों का आज से कल तक भरपूर मनोरंजन होना तय है। शोले, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे से लेकर कड़क चाय शब्द अगर आप अमरीकी राष्ट्रपति के मुंह से सुनेंगे, तो एक बार आपके फंसने की भी पूरी पूरी संभावना है।

बहरहाल दिल्ली के पूर्वी इलाके में इस समय माहौल बेहद अशांत चल रहा है। कल जो सीएए विरोध प्रदर्शन की घटना के खिलाफ सीएए समर्थक दलों ने हंगामा खड़ा किया था, और दोनों के बीच पत्थरबाजी हुई थी, वह आज फिर से भड़क उठी है। जैसा कि मालूम है कि तीन दिन पहले जाफराबाद, मौजपुर के इलाके में भी नागरिकता कानून के खिलाफ धरना-प्रदर्शन की शुरुआत हुई थी, जो आम तौर पर गरीब इलाका माना जाता है।

सड़कों पर गिरे ईंट, अद्धे और उग्र भीड़ के आगे-आगे पुलिस की ओर तमंचा लहराते युवक की तस्वीर वायरल हो रही है। बेख़ौफ़ वह पुलिस की ओर बढ़ा आ रहा है और पलटकर गोली चलाता है।केजरीवाल जो इस मुद्दे पर चुनाव के दौरान लगातार चुप्पी साधे हुए थे, उन्हें मजबूर होना पड़ा है कहने के लिए। उन्होंने गृह मंत्री को इस बाबत निवेदन किया है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में “कानून व्यवस्था” की स्थिति बिगड़ती जा रही है, कृपया इस पर ध्यान दें। 

अब इसकी पृष्ठभूमि को देखते हैं तो पाते हैं कि आप से निष्काषित नेता कपिल मिश्र की इस सारे मामले में अहम भूमिका नजर आती है। सीलमपुर, जाफराबाद, मौजपुर और बाबरपुर के इलाकों में घरों पर लोगों ने हिंदुत्व के गुंडों से खुद को बचाने के लिए एहतियातन भगवा झंडे लगा रखे हैं।

उत्तर पूर्वी इलाके के डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या के अनुसार, “हमने दोनों पक्षों से बात कर ली है, अब स्थिति सामान्य हो चुकी है। हम लगातार लोगों से बातचीत कर रहे हैं, और अब स्थिति पर नियंत्रण पाया जा चुका है।”

यह स्थिति कैसे बनी और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, इस पर आज नहीं सोचा गया। याद करें रविवार को बीजेपी के हारे हुए प्रत्याशी कपिल मिश्रा का वह वीडियो, जिसमें वह एक सभा में कल खुलेआम धमकी देते दिख रहे हैं, नागरिकता संशोधन कानून की मुखालफत कर रहे लोगों को कि अभी ट्रंप देश में आने वाले हैं। तुम लोगों को दो दिन के भीतर इस इलाके में अपने इस धरना प्रदर्शन को बंद कर लेना होगा, नहीं तो इसके बाद क्या होगा, इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी।

सोचिये, एक ऐसा आदमी जो कल तक आप की सरकार में महत्वपूर्ण पद पर मंत्री रहा हो, और जिसे बीजेपी ने इस बार चुनाव में बड़ी प्रमुखता से सामने पेश किया था। बड़े-बड़े दावे और गलत शलत बयानबाजी कर चुका हो, आखिर वह इस प्रकार खुलेआम धमकी क्यों दे रहा है? क्या उसे नहीं पता कि दिल्ली चुनाव में करारी हार के बाद, खुद गृह मंत्री अमित शाह ने इस बाबत अपनी रणनीति में चूक को वजह माना था, और कई गलत बयानबाजी को अपनी हार की कारणों में शिनाख्त की थी।

क्या कपिल मिश्र किसी पुरानी की गई कारगुजारियों को लेकर मन ही मन में कुंठित हैं, जो आज उसकी भरपाई करने के लिए बढ़-चढ़कर हिंदुत्व के सबसे बड़े हिंसक पैरोकार बनकर सामने आ रहे हैं?

कपिल मिश्रा का वीडियो, जो सोशल मीडिया में छाया हुआ है, इस वीडियो को लेकर हिन्दू समर्थकों से उन्हें लगातार बधाई संदेश आ रहे हैं। उनका कहना है कि उनको एक सच्चा हिंदू नेता मिला है, जो हिम्मत दिखा रहा है। यह विरोध प्रदर्शन का अधिकार सिर्फ शाहीन बाग़ वालों का नहीं है, उन्हें भी ईंट का जवाब पत्थर से देने को श्री कपिल मिश्र दिखा रहे हैं।

हालात बिगड़ने के बाद अभी तत्काल में कपिल मिश्र ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है। अपने ट्विट में उनका कहना है, मेरी सभी से अपील है कि हिंसा से कोई समाधान नहीं निकलता। हिंसा किसी विवाद का हल नहीं। दिल्ली का भाईचारा बना रहे इसी में सबकी भलाई है। CAA समर्थक हों या CAA विरोधी या कोई भी, हिंसा तुरंत बंद होनी चाहिए। मेरी पुनः अपील, हिंसा बंद कीजिए।

अब सवाल यह है कि आग लगाओ भी तुम और बुझाओ भी तुम, यह पॉलिसी माना कि बड़े नेता करते आएं हैं, लेकिन क्या कपिल मिश्र वाकई में बीजेपी के इतने बड़े नेता हो चुके हैं, जो कल तक दिल्ली विधानसभा में मोदी के बारे में करीब 15 मिनट के अपने भाषण में जिस प्रकार के व्यक्तिगत चारित्रिक दोषारोपण लगा चुके हैं, कि उसे किसी भी अन्य पाप से धो नहीं सकते। क्या उनकी यह कोशिश उसी दाग को धोने की कोशिश है, जिसे दिल्ली की गरीब हिंदू-मुस्लिम बिरादरी को भुगतना होगा?

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

रविंद्र पटवाल
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