गिलानी के इस्तीफे को लेकर कश्मीर में सरगोशियां

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और 35-ए निरस्त होने के बाद एक बड़ा सियासी घटनाक्रम दरपेश हुआ है। अलगाववादी नेता और खुले तौर पर पाकिस्तान परस्त सैयद अली शाह गिलानी ने खुद को हुर्रियत कांफ्रेंस से अलहदा कर लिया है। एक ऑडियो संदेश और चिट्ठी के जरिए उन्होंने अपना इस्तीफा जगजाहिर किया। गिलानी ने कहा है कि वह मौजूदा हालात को देखते हुए खुद को हुर्रियत से अलग कर रहे हैं। 

गौरतलब है कि हुर्रियत कांफ्रेंस और सैयद अली शाह गिलानी एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे। गिलानी वर्षों से अपनी ही रिहाइश में नजरबंद हैं। इन दिनों अस्वस्थ हैं। 9 मार्च 1993 को 26 अलगाववादी नेताओं ने मिलकर उनकी रहनुमाई में हुर्रियत कांफ्रेंस का गठन किया था जो जम्मू-कश्मीर का प्रमुख अलगाववादी संगठन है। 

मीरवाइज मौलवी उमर फारूक इसके पहले चेयरमैन थे। बाद में हुर्रियत दो समानांतर गुटों में बंट गई थी। इनमें से एक की अगुआई गिलानी करते थे। फारुक के गुट को उदारवादी तथा गिलानी खेमे को घोर कट्टरवादी एवं अलगाववादी माना जाता है। सैयद अली शाह गिलानी सदा ही ‘आजाद कश्मीर’ के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने हमेशा कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान के दखल की वकालत की है। नजरबंद होने से पहले वह कई बार भारत स्थित पाकिस्तान दूतावास गए हैं। गिलानी पर अलगाववाद और पत्थरबाजी करवाने के आरोपों में कई मुकदमे दर्ज हैं। 

ईडी और इनकम टैक्स में भी उन पर मामले दर्ज किए हुए हैं। आरोप हैं कि वह पाकिस्तान तथा अन्य देशों से पैसा हासिल करके पत्थरबाजी को तरजीह देते रहे हैं। फिर भी घाटी में उन्हें एक बड़ा ध्रुव माना जाता है और वहां उनके इस्तीफे को लेकर बेशुमार सरगोशियां हैं। हुर्रियत कांफ्रेंस एक के कार्यकर्ता साजिद शेख ने फोन पर बताया कि गिलानी का इस्तीफा हैरान करने वाली घटना है। कश्मीर की सियासत पर इसका सीधा असर पड़ेगा।                  

सूत्रों के मुताबिक इन दिनों गिलानी गुट की हुर्रियत कांफ्रेंस की पाकिस्तान इकाई का गिलानी की टीम से जबरदस्त विवाद चल रहा है। भारतीय कश्मीर में भी गिलानी के खिलाफ कतिपय नेता अंदरूनी बगावत किए हुए हैं और उन्हें हाशिए पर करना चाहते थे। इससे पहले ही गिलानी ने खुद को दरकिनार कर लिया। घाटी से नेशनल कांफ्रेंस के एक बड़े नेता ने इस संवाददाता से कहा, “वैसे भी अब सैयद गिलानी लावारिस लाठी से ज्यादा कुछ नहीं रह गए थे। उनका दबदबा खत्म होता जा रहा था। धारा 370 निरस्त होने के बाद उनकी प्रासंगिकता भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी कमतर होती जा रही थी।” घाटी में इसे लेकर चर्चाएं तेज हैं कि हुर्रियत कांफ्रेंस (गिलानी) का अगला नेता कौन होगा? कुछ सूत्रों के मुताबिक अगले कदम के तौर पर सैयद अली शाह गिलानी हुर्रियत कांफ्रेंस को भंग भी कर सकते हैं।

(पंजाब और कश्मीर पर नज़दीक से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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