भावनाओं को भड़काने में सिद्धहस्त संघ-भाजपा को नहीं है बुनियादी सवालों को हल करने का अनुभव

कोविड-19 से होने वाली मौतों का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है; यह सच है कि सरकारी आंकड़ों में कोरोना से होने वाली मौतों में गिरवाट आयी है। लेकिन देश अभी भी कोरोना के आतंक के साए में जी रहा है। कोरोना से संक्रमित होकर बच निकले और संक्रमण से मरने वालों का सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है। हर किसी के पास अपना आंकड़ा है। सरकार आंकड़ों को छुपा रही है, लेकिन सच यह है कि कोरोना से मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। देश के लगभग 6 लाख गांवों में कोई ही गांव अपवाद होगा जहां मरने वालों की संख्या 2-20 तक न हो। मेरे व्यक्तिगत अनुमान के मुताबिक यदि हिंदुस्तान के 6 लाख गांवों में हर गांव से औसतन पांच व्यक्तियों की कोरोना से मौत माना जाये तो यह संख्या 30 लाख के आस-पास पहुंचती है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक जिले के सुदूरवर्ती गांव में झोलाछाप डॉक्टर के यहां भी इतनी लंबी लाइन लगती थी कि उसने कहा कि अब मेरे पास दवा नहीं है। सब लोग अपने घर जाएं! पैरासिटॉमॉल खायें और गरम पानी पियें। यही कोरोना की दवा है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश में कोरोना का संक्रमण कितना व्यापक था और सरकारी व्यवस्था नदारद।

कोरोना संक्रमण से बचने के लिए देश की जनता ने एहतियात बरता, संक्रमितों ने जरूरी और उपलब्ध उपचार स्वयं किए, अब भी लोग अपने स्तर पर अपना उपचार कर रहे हैं क्योंकि संक्रमितों की जांच और उपचार करने के लिए अब तक केंद्र और राज्यों की सरकारें जरूरी संसाधन का इंतजाम नहीं कर पाये हैं। संसाधनों के नितांत अभाव में झोलाछाप डॉक्टर, सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन से ही देश में कोरोना से निपटा जा रहा है।

कोरोना अचानक नहीं आया है। पिछले साल से ही दुनिया भर में कोरोना अपना कहर बरपा रहा है। हर देश में कोरोना संक्रमितों की जांच करके उनको एकांतवास में रखा गया, और उपचार करके दूसरे लोगों को संक्रमण से बचाया गया। इसके साथ ही अमेरिका, इंग्लैंड और तमाम देश आपात स्थिति के लिए जरूरी दवाएं, वैक्सीन, ऑक्सीजन, बेड, नर्स, डॉक्टर और अस्पताल आदि की व्यवस्था करते रहे। लेकिन हमारे देश में ऐसा कुछ नहीं किया गया। न तो कोरोना से संक्रमित होने की संख्या का पूर्वानुमान लगाया गया और उसके बरक्स न कोई इंतजाम किया गया।

देश में जब लोग दवा-ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे थे और सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए गुहार लगा रहे थे तो केंद्र सरकार ऑक्सीजन भंडारण न करने के लिए राज्य सरकारों को दोषी ठहरा रही थी। यहां तक तो ठीक है लेकिन संघ-भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में सोशल मिडिया पर ऑक्सीजन-दवा-बेड की व्यवस्था करने की गुहार लागने वालों पर कानूनी डंडा चल रहा था।

ऐसे में सवाल उठता है दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में जहां का जनसंख्या घनत्व इतना अधिक है वहां की सरकार ने इस संभावित खतरे से निबटने के लिए कोई तैयारी क्यों नहीं की ? क्या मोदी सरकार को कोरोना के संक्रमण का अनुमान नहीं था। या वे दुनिया भर में कोरोना से होने वाली मौतों से अनजान थे? ऐसा भी नहीं है कि यह सरकार गठबंधन दलों के सहारे चल रही हो और सहयोगी दलों की वजह से यह सरकार खुद को बचाने में लगी हो। मोदी सरकार तो प्रचंड बहुमत से आयी है और किसी भी तरह के दबाव में न आने और “स्वविवेक” से काम करने का दावा करती रही है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि मोदी सरकार कोरोना से निपटने में जो तत्परता दिखानी चाहिए थी वह क्यों नहीं दिखाई ?

दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान जनता को राम भरोसे छोड़ देने का कारण संघ-भाजपा की वैचारिक -राजनीतिक दर्शन और संगठन की आंतरिक बुनावट है। संघ-भाजपा भले ही अपने को राजनीतिक दल या स्वयंसेवी संगठन कहें, लेकिन असलियत कुछ और है। संघ के दस्तावेजों के अनुसार- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक संगठन है। संघ सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का पैतृक संगठन है। संघ का कार्य चरित्र निर्माण और हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिंदू समुदाय को एकजुट करना है। संघ संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाए रखने के आदर्शों को बढ़ावा देता है और बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को “मजबूत” करने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करता है।” संघ के एजेंडे में कहीं भी देश की जनता नहीं है।

बात साफ है संघ का कार्य कोई बुनियादी और जनता की भौतिक जरूरतों से वास्ता नहीं रखता है। वह चरित्र निर्माण, राष्ट्र निर्माण और हिंदू समाज को एकजुट करने में लगा है। सीधे शब्दों में कहें तो संघ का एकमात्र घोषित-अघोषित लक्ष्य भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है। और भाजपा-विहिप-भारतीय मजदूर संघ जैसे तमाम संगठन रूप बदल कर संघ के इस कार्य में मदद करने के लिए बनाये गये हैं। यही कारण है कि संघ अपनी स्थापना से लेकर आज तक मुस्लिम, संविधान और लोकतंत्र विरोध का काम किया है।

अब देखिए ! संघ की स्थापना 1925 में हुई, तब देश में आजादी का आंदोलन चल रहा था। आश्चर्य की बात यह है कि संघ का कोई एक नेता-कार्यकर्ता आजादी की समूची लड़ाई में शामिल नहीं रहा। क्योंकि देश आजाद होने पर हिंदू राष्ट्र बनने की संभावना नहीं थी। और यही कारण है कि वे समूचे स्वतंत्रता आंदोलन से दूरी बनाए रहे। उस दौरान संघ गाहे-बेगाहे मुस्लिम लीग के धर्म के आधार पर देश विभाजन का समर्थन करता रहा। क्योंकि उसे आशा थी कि यदि मुस्लिमों का अलग देश बन गया तो बचे हुए देश में हिंदू राष्ट्र बनाने का उसका अभियान गति पकड़ सकता है।

संघ हमेशा भावनात्मक मुद्दों, काल्पनिक शत्रुओं, चरित्र हनन और अफवाह का सहारा लेता रहा है। 1925-1947 तक संघ मुस्लिम विरोध और अंग्रेजों से हमदर्दी और कांग्रेस विरोध का काम करती रही। आजादी के बाद वह नेहरू के चरित्र-हनन और धर्मनिरपेक्षता के विरोध पर उतर आयी जो आज तक जारी है। अपने स्थापना काल से लेकर  अब तक संघ-जनसंघ-भाजपा का जनता से संपर्क और राजनीति का मुद्दा कोई बुनियादी और ज्वलंत सवाल नहीं बल्कि संपूर्ण देश में संपूर्ण गो-हत्या बंदी, कश्मीर में धारा-370 हटाने, कॉमन सिविल कोड और राम मंदिर जैसे मुद्दे रहे हैं।  तो फिर चाहे वह महंगाई का सवाल हो या बेरोजगारी का, किसानों का सवाल हो या फिर जवानों का। संघ-भाजपा हमेशा बुनियादी सवालों पर चुप्पी अख्तियार किये रहा है।

हां! संघ-भाजपा सीमा पर शहीद होने वाले जवानों की शहादत का जश्न गांजे-बाजे और घड़ियाली आंसू से सेलिब्रेट करते हैं। जनता के जमीनी सवालों को केंद्र में रखकर राजनीति करने का प्रशिक्षण ही उनको नहीं मिला है और न ही उनका ऐसा कोई इरादा है। संघ-जनसंघ, बाद में भाजपा हमेशा से भावनात्मक मुद्दों को उछाल कर आगे बढ़ते रहे हैं। ऐसे में संघ-भाजपा की वर्तमान सरकार से किसानों या फिर कोरोना के मुद्दे पर सार्थक पहल की उम्मीद रखना ही बेमानी है।

(लेखक जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

प्रदीप सिंह
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