पहले गिरवाया अब उसी जगह रविदास मंदिर बनाने के आदेश

क्या उच्चतम न्यायालय ने भी मान लिया है कि कानून और वैधानिक प्रावधानों पर आस्था भारी होती है! दिल्ली के तुगलकाबाद में रविदास मंदिर को पहले ढहाने और अब उसी स्थान पर पुन: मंदिर बनाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश से तो ऐसा ही लग रहा है। उच्चतम न्यायालय ने पहले माना था कि दिल्ली लैंड रिफॉर्म एक्ट 1954 के बाद ज़मीन केंद्र की हो गई है। राजस्व रिकॉर्ड में समिति के मालिकाना हक़ का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। विवादित ज़मीन वन क्षेत्र है इस वजह से वहां किसी तरह का निर्माण नहीं हो सकता। इन वजहों से रविदास मंदिर को ध्वस्त कर दिया जाए। मन्दिर ध्वस्त भी कर दिया गया, लेकिन वजहें अभी भी वही हैं। राजनीतिक मजबूरियों के चलते केंद्र सरकार उसी स्थान पर पुन: मंदिर बनाने के पक्ष में है। अब उच्चतम न्यायालय ने भी सहमति दे दी है। यक्ष प्रश्न यह है कि देश कानून से चल रहा है या आस्था से? यदि पुनर्निर्माण का आदेश ही देना था तो ध्वस्तीकरण का आदेश क्यों दिया गया?

ध्वस्तीकरण के बाद पूरा दलित समाज उद्वलित हो गया और सड़क पर उतर आया। इस पर जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की पीठ ने पंजाब, हरियाणा और दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। पीठ ने कहा कि दिल्ली में रविदास मंदिर को ध्वस्त किए जाने वाले हमारे आदेशों को राजनीतिक रंग देने की कोशिश न की जाए। जो लोग माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं,  उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। इसके बाद अब रविदास मंदिर को उसी जगह पर बनाने के आदेश दे दिए गए।

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव पर मंजूरी दे दी, जिसमें 200 वर्ग मीटर की जगह 400 वर्ग मीटर जगह मंदिर के लिए देने की बात कही गई। सोमवार को पारित अपने आदेश में पीठ ने कहा है कि मंदिर के लिए स्थायी निर्माण होगा और केंद्र सरकार निर्माण के लिए छह हफ्ते में एक समिति का गठन करेगी। पीठ ने स्पष्ट किया है कि मंदिर में और इसके आसपास कोई भी व्यवसायिक गतिविधि या पार्किंग नहीं होगी। पीठ ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि मंदिर के ढहाए जाने के विरोध में हुए प्रदर्शन में गिरफ्तार लोगों को निजी मुचलके पर छोड़ दिया जाए। पीठ ने कहा कि अब शांति रहने दीजिए।

सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार अब 200 की जगह 400 वर्ग मीटर जगह मंदिर के लिए देने को तैयार है, लेकिन यहां वन क्षेत्र होने के कारण स्थायी निर्माण नहीं बल्कि लकड़ी का मंदिर बनाया जा सकता है। हालांकि पीठ ने कहा कि यहां पक्का मंदिर बनाया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि केंद्र की तरफ से बनाई जाने वाली समिति में संत रविदास जयंती समिति समारोह के सदस्य भी आवेदन दे सकते हैं।

गौरतलब है कि चार अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वो धरती पर सभी की भावनाओं का सम्मान करता है। पीठ ने सभी पक्षकारों को कहा था कि वो अटार्नी जनरल से मिलकर इस मामले में किसी दूसरी जमीन पर मंदिर के निर्माण के लिए हल निकालें। इसके बाद इस समझौते को कोर्ट में दाखिल करें, जिससे अदालत कोई आदेश जारी कर सके। पीठ ने कहा था कि इस मामले में कोई बेहतर स्थान, बेहतर जमीन और बेहतर रास्ता खोजा जाना चाहिए। पीठ ने कहा था कि ये मंदिर वन क्षेत्र पर बना था और अदालत किसी अन्य जमीन पर मंदिर बनाने पर विचार कर सकती है।

दरअसल इस मामले में हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मंत्री प्रदीप जैन ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में कहा गया कि पूजा का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है। लिहाजा पूजा करने का अधिकार दिया जाए। याचिका में ये भी मांग की गई कि मूर्ति को दोबारा लगाया जाए और साथ ही मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाए। याचिका में कहा गया है कि ये मंदिर 600 साल पुराना है तो डीडीए इसका हकदार कैसे हो सकता है।

इससे पहले 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा और पंजाब सरकार को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश जारी किए थे। पीठ ने कहा था कि हर चीज राजनीतिक नहीं हो सकती। धरती पर किसी के भी द्वारा हमारे आदेश को राजनीतिक रंग नहीं दिया जा सकता। हालांकि बाद में पीठ ने कुछ हिस्सों में तोड़फोड़ करने पर रोक लगा दी थी। पीठ ने ये टिप्पणी उस समय की जब केंद्र की ओर से बताया गया कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक मंदिर को ढहा दिया गया है, जबकि 18 संगठनों ने इस दौरान कार्रवाई का विरोध किया। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में इसका विरोध हो रहा है इसलिए इन सरकारों को निर्देश दिए जाए कि वो कानून व्यवस्था के मुद्दों की देखभाल करें। पीठ ने धरना और प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने की चेतावनी दी थी। पीठ ने कहा था कि वह अवमानना शुरू कर सकता है।

संत रविदास जयंती समिति समारोह के ज़मीन पर दावे को सबसे पहले ट्रायल कोर्ट ने 31 अगस्त 2018 को ख़ारिज किया था और 20 नवंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इस साल आठ अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटने से इंकार करते हुए मंदिर गिराए जाने का आदेश दिया था। डीडीए का दावा था कि दिल्ली लैंड रिफॉर्म एक्ट 1954 के बाद ज़मीन केंद्र की हो गई है। डीडीए ने हाई कोर्ट को ये भी बताया था कि राजस्व रिकॉर्ड में समिति के मालिकाना हक़ का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। डीडीए ने ये दलील भी दी कि विवादित ज़मीन वन क्षेत्र है इस वजह से वहां किसी तरह का निर्माण नहीं हो सकता। वहीं समिति का दावा था कि मंदिर पर मालिकाना हक उसका है।

जेपी सिंह
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