कोविड-19 की दूसरी लहर इतनी विनाशक नहीं होती यदि…

लेख- डॉ. राजू पाण्डेय

क्या सरकार को कोविड-19 की इस विनाशक दूसरी लहर की पूर्व सूचना थी? यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित है। पिछले कुछ दिनों से मीडिया के एक वर्ग द्वारा इस प्रश्न को यह कहते हुए महत्वहीन बनाया जा रहा है कि यह समय पिछली बातों को कुरेदने का नहीं है, अभी तो वर्तमान संकट से मुकाबला करने पर हमें सारा ध्यान केंद्रित करना है। किंतु इस प्रश्न से बचा नहीं जा सकता। बिना गलतियों को जाने, स्वीकार किए और सुधारे हम भला कैसे इस संकट का सामना कर सकते हैं? इस प्रश्न से ढेर सारे प्रश्न जुड़े हुए हैं। बेड, ऑक्सीजन और दवाओं की प्राणघातक कमी का जिम्मेदार कौन है? वैक्सीनेशन प्रक्रिया में असाधारण अव्यवस्था के लिए किसे उत्तरदायी ठहराया जाए? कुंभ तथा पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों के आयोजन की अनुमति किस मनोदशा में किसने दी?  यदि हम “यह समय गलतियां निकालने का नहीं है” जैसी शातिर और चतुर व्यावहारिकता की आड़ में इन जरूरी सवालों को दरकिनार कर देंगे तो हजारों लोगों की दर्दनाक मौत के लिए जिम्मेदार निरंकुश शासन तंत्र और बेरहम सत्ताधीशों पर नियंत्रण कैसे स्थापित होगा? हम “सिस्टम” जैसी अमूर्त अभिव्यक्ति का प्रयोग कर रहे हैं। हममें कम से कम इतना साहस होना चाहिए कि इस संवेदनहीन और अकुशल तंत्र के कर्ताधर्ताओं से कुछ जरूरी सवाल तो पूछें और उनकी जिम्मेदारी तय करें जिससे भविष्य में ऐसी आपराधिक लापरवाही की पुनरावृत्ति न होने पाए।

प्रधानमंत्री जी के वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने सरकार का पक्ष रखा है। उनका कहना है कि स्वदेशी और विदेशी वैज्ञानिकों दोनों का मानना था कि सेकंड वेव पहली वेव के बराबर या उससे कमजोर होगी। विजय राघवन के अनुसार इन सारे अनुमानों को गलत सिद्ध करते हुए यदि सेकंड वेव भयानक सिद्ध हुई है तो संभवतः इसके पीछे तीन कारण हैं। सबसे पहले तो प्रथम वेव के दौरान अनेक वर्ग जो कोरोना वायरस के एक्सपोज़र से बचे हुए थे, इस सेकंड वेव में प्रभावित हुए हैं। दूसरा कारण नए वैरिएंट्स की उपस्थिति है। तीसरा कारण लोगों द्वारा कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन न करना है। श्री विजय राघवन के अनुसार पहली लहर के पूर्व की गई भविष्यवाणियों में इसे अत्यंत घातक बताया गया था और इसी को आधार मानकर हमारी प्रतिक्रिया भी त्वरित और प्रभावी रही। किंतु वैक्सीन की उपलब्धता, पहली लहर का कमजोर पड़ना तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य अधोसंरचना को नया रूप देकर विकसित करने से उत्पन्न आत्मविश्वास शायद वे कारक थे जिनके कारण हम दूसरी लहर के आकार एवं तीव्रता का अनुमान नहीं लगा पाए और इसकी भयानकता ने हमें आश्चर्य में डाल दिया। उन्होंने कहा कि मेट्रो सिटीज में किए गए सीरोपोजिटीवीटी टेस्ट्स से यह ज्ञात हुआ था कि कोविड 19 से बहुत सारे ठीक हुए लोग अब संभवतः इम्युनिटी विकसित कर चुके हैं किंतु इन आंकड़ों को पूरे महानगर की विशाल जनसंख्या का प्रतिनिधि मानना गलत था।

श्री विजयराघवन द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के अतिरिक्त और भी तथ्य पब्लिक डोमेन में हैं जो कुछ दूसरी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। केंद्र सरकार द्वारा देश में कोविड-19 के प्रसार की संभावनाओं का आकलन करने के लिए एक त्रिसदस्यीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति के अध्यक्ष एम विद्यासागर (प्रोफेसर आईआईटी हैदराबाद) ने एक साक्षात्कार में बताया है कि उन्होंने सरकार को सूचित किया था कि कोविड-19 की दूसरी लहर बन रही है। यह लहर मई माह के मध्य तक चरम बिंदु पर पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि हमने सरकार को बताया था कि हम इस सेकंड वेव के पीक करने की तिथि के विषय में निश्चित हैं किंतु यह कितनी तीव्र होगी इसका अंदाजा हमें पूर्ण रूप से नहीं है। जब हमने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी तब हमारा सुझाव यही था कि हमारी पहली प्राथमिकता त्वरित प्रतिक्रिया होनी चाहिए। श्री विद्यासागर ने यह स्वीकार किया कि यह सेकंड वेव उनके अनुमान से ज्यादा बड़ी है। उन्होंने कहा कि अनौपचारिक रूप से उन्होंने इस विषय में सरकार से मार्च के पहले सप्ताह में राय साझा की थी और उन्होंने अपना औपचारिक अभिमत 2 अप्रैल 2021 को सरकार को दिया था। श्री विद्यासागर का मानना है कि संभवतः सरकार इस दूसरी लहर की भयंकरता से चकित रह गई।

रॉयटर्स की तीन मई 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार सार्स कोविड-2 जेनेटिक्स कंसोर्टियम के 5 वैज्ञानिकों ने रॉयटर्स को बताया कि उन्होंने मार्च 2021 के प्रारंभ में ही सरकारी अधिकारियों को घातक नए वैरिएंट के विषय में जानकारी दे दी थी। किंतु सरकार ने इसके प्रसार को रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए और लोगों के एकत्रीकरण एवं आवाजाही पर किसी तरह के कोई प्रतिबंध नहीं लगाए गए।

देश के शीर्षस्थ वायरोलॉजिस्ट टी जैकब जॉन (पूर्व प्रोफेसर तथा एचओडी, क्लीनिकल वायरोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी, चेन्नई क्रिश्चियन कॉलेज वेल्लोर) के अनुसार कथित यूके वैरिएंट का पता सितंबर 2020 में चल गया था, साउथ अफ्रीकन वैरिएंट की जानकारी अक्टूबर 2020 में मिल गई थी और ब्राजीलियन वैरिएंट भी दिसंबर 2020 में ही डिटेक्ट हो गया था। जापान द्वारा की जा रही रूटीन जीनोम सीक्वेंसिंग से यह जानकारी मिली थी। यह हमारे लिए एक चेतावनी थी कि हम महत्वपूर्ण वैरिएंट्स के बारे में सतर्क हो जाते और उनका व्यवस्थित अध्ययन करते। दिसंबर 2020 में लैब कंसोर्टियम भी बना किंतु कुल केसेस में से 5 प्रतिशत की जीन सीक्वेंसिंग के कार्य को जरा भी गंभीरता से नहीं लिया गया। डॉ. जॉन के अनुसार अब तक 30 प्रतिशत लोगों का भी टीकाकरण पूरा नहीं हो पाया है, इसलिए सरकार और सरकार की सहायता कर रहे वैज्ञानिकों को अलर्ट मोड में ही रहना चाहिए था। 

अनेक वैज्ञानिकों का यह कहना है कि जब हम यूरोप और अमेरिका की दूसरी अधिक विनाशक लहर को देख चुके थे और विश्व में महामारियों के इतिहास से भी अवगत थे (जिसमें दूसरी लहरों की घातकता का जिक्र मिलता है) तब कोई सामान्य मेधा वाला व्यक्ति भी यह समझ सकता था कि भारत में भी कोविड19 की यह दूसरी लहर अवश्य ही आएगी और पहले से ज्यादा घातक होगी।

इस परिप्रेक्ष्य में यह जानना आवश्यक है कि जब सरकारें दिल्ली, मुम्बई और अन्य महानगरों में पहली लहर के दौरान तैयार किए गए विशाल चिकित्सा केंद्रों को हटा रही थीं तब क्या प्रधानमंत्री जी के वैज्ञानिक सलाहकारों ने उन्हें यह बताया था कि यह अनुचित कदम है और अधिक भयानक दूसरी लहर के दौरान हमें संकट में डाल सकता है। इसी प्रकार राज्यों में प्रवासी मजदूरों के लिए बनाए गए क्वारन्टीन सेंटर्स को भी हटा दिया गया और अब वापसी कर रहे प्रवासी मजदूरों के माध्यम से संक्रमण ग्रामों में फैलने का खतरा है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. नवजोत दहिया ने एक दैनिक समाचार पत्र को दिए गए साक्षात्कार में इस बात पर खेद मिश्रित आश्चर्य व्यक्त किया है कि जब चिकित्सक समुदाय लगातार लोगों को कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन करने की हिदायत दे रहा था तब प्रधानमंत्री जी मास्किंग और सोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियां उड़ाते हुए विशाल चुनावी रैलियों का आयोजन कर रहे थे। उत्तराखंड में विशाल कुम्भ मेले का आयोजन हो रहा था जिसमें लाखों लोग कोविड प्रोटोकॉल का खुला उल्लंघन कर रहे थे। डॉ. दहिया प्रधानमंत्री जी की आश्चर्यजनक प्राथमिकताओं का जिक्र करते हैं- जब पूरा विश्व कोरोना से निपटने की रणनीतियों पर विचार कर रहा था तब हमारे देश में फरवरी 2020 में राष्ट्रपति ट्रम्प के सम्मान में एक लाख लोगों की भीड़ इकट्ठा कर अहमदाबाद में एक चाटुकारितापूर्ण आयोजन हो रहा था जिसमें सामाजिक दूरी का मखौल बनाया जा रहा था। 

कोविड-19 के आक्रमण के एक वर्ष बाद भी जहाँ प्रधानमंत्री जी चुनावी रैलियों के दौरान अपने आचरण से कोविड-19 को गंभीरता से न लेने का संदेश देते दिख रहे थे, वहीं गृह मंत्री जी की मान्यता यह थी कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनावों का आयोजन उत्तरदायी नहीं है। जबकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जी माँ गंगा की कृपा पर इतने आश्रित थे कि मानवीय प्रयत्नों और सतर्कता उपायों का उनकी दृष्टि में कोई महत्व नहीं था। इधर उत्तरप्रदेश में नृशंसतापूर्वक पंचायत चुनावों का आयोजन हो रहा था जिसके बाद लगभग 135 चुनाव कर्मियों की कोरोना संक्रमण से मृत्यु और चुनाव ड्यूटी में लगे लगभग 2000 पुलिस कर्मियों के संक्रमित होने के समाचार हैं। इलाहाबाद हाइकोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर राज्य चुनाव आयोग को नोटिस जारी करना पड़ा है। यदि अन्य राज्यों की भांति उत्तरप्रदेश सरकार अधिकाधिक टेस्टिंग पर भरोसा करती तो संक्रमित लोगों तथा संक्रमण से जान गंवाने वाले लोगों की सही संख्या के विषय में अंदाजा होता किंतु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है। गांवों में संक्रमण के खतरनाक विस्तार और ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौतों की खबरों के बीच उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री जी का एक असंवेदनशील बयान चर्चा में है जिसके अनुसार उत्तरप्रदेश के किसी भी निजी और सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी नहीं है, कहीं कोई अव्यवस्था नहीं है और अफवाह फैलाकर माहौल बिगाड़ने वालों पर एनएसए के तहत कार्रवाई कर उनकी संपत्ति जप्त की जाए। 

के. विजयराघवन यदि कहते हैं कि जनता पहली लहर के कमजोर पड़ने के बाद कोविड एप्रोप्रियेट बिहैवियर के प्रति लापरवाह हो गई और वैक्सीन आ जाने के बाद देश में निश्चिंतता का माहौल बन गया जिसके कारण दूसरी लहर विकराल बन गई तो यह सवाल भी अवश्य पूछा जाएगा कि प्रधानमंत्री जी और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों ने कोविड को समाप्त मानकर अपनी कामयाबी का जश्न मनाना प्रारंभ कर दिया, क्या इससे जनता में गलत संदेश नहीं गया? 

आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने 28 जनवरी 2021 को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में दम्भोक्ति करते हुए कहा- “महामारी से निपटने की भारत की क्षमता के बारे में प्रारंभिक ग़लतफहमियों के बावजूद, भारत अति सक्रिय और भागीदारी समर्थक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ा है और कोविड विशिष्ट स्वास्थ्य अवसंरचना को सुदृढ़ बनाने के लिए काम कर रहा है, उसने महामारी से निपटने के लिए अपने मानव संसाधन को प्रशिक्षित किया है और बड़े पैमाने पर तकनीक का इस्तेमाल कर मामलों की टेस्टिंग और ट्रैकिंग कर रहा है। भारत में कोरोना के खिलाफ जंग एक जन आंदोलन बन गई है और भारत अपने ज्यादा से ज्यादा नागरिकों की जान बचाने में सफल रहा है। भारत की इस सफलता का वैश्विक असर होगा क्योंकि विश्व की 18 प्रतिशत आबादी वहां रहती है और यहां महामारी पर प्रभावी नियंत्रण ने मानवता को एक बहुत बड़ी त्रासदी से बचा लिया है। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि 150 से ज्यादा देशों को टीकों की आपूर्ति की गई और भारत आज कई देशों को ऑनलाइन प्रशिक्षण देकर, पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की जानकारी देकर, टीके और टीकों की अवसंरचना मुहैया कराकर उनकी मदद कर रहा है । उन्होंने बताया कि दो मौजूदा “मेड इन इंडिया” टीके उपलब्ध कराने के अलावा और टीकों पर भी काम चल रहा है जिनके बाद भारत विश्व की ज्यादा बड़े पैमाने पर और ज्यादा तेजी से मदद करने में सक्षम हो जाएगा।”

निश्चित ही यदि आदरणीय प्रधानमंत्री जी कुछ कम आत्ममुग्ध होते तो हम आज टीकों की कमी से जूझ रहे अस्तव्यस्त टीकाकरण अभियान को लेकर चिंतित नहीं होते जो अनेक कारणों से विवादों में है। हमने इंग्लैंड, अमेरिका और यूरोपीय संघ की भांति वैक्सीन के अग्रिम ऑर्डर्स दिए होते और वैक्सीन विषयक अनुसंधान को अतिरिक्त  फण्ड देकर बढ़ावा दिया होता। हम कोविड 19 टीकाकरण हेतु आदरणीया वित्त मंत्री जी द्वारा प्रावधान किए गए 35,000 करोड़ रुपयों का पारदर्शी इस्तेमाल कर रहे होते और यह सुनिश्चित करते कि देश के प्रत्येक नागरिक को निःशुल्क वैक्सीन पहली प्राथमिकता के आधार पर यथाशीघ्र मिलेगी।

अभी तो हम लगभग 25 लाख डोज़ प्रतिदिन बना रहे हैं। यदि हम 90 करोड़ लोगों का टीकाकरण करना चाहते हैं तो हमें 180 करोड़ खुराक की जरूरत होगी। वर्तमान उत्पादन क्षमता के अनुसार हमें इसमें 720 दिन लगेंगे। जब हमारी उत्पादन क्षमता सीमित है तब क्या हमें 18-45 वर्ष आयु के लोगों के लिए टीकाकरण 01मई से प्रारंभ करने की घोषणा करनी थी। आज स्थिति यह है कि 14 राज्यों में यह अभियान टीकों की कमी के कारण बाधित हो गया है।

क्या 18-45 वर्ष आयु के लोगों में कोई निर्धन नहीं है? फिर इनके लिए निःशुल्क वैक्सीन का प्रावधान क्यों नहीं किया गया है? इस आयु वर्ग के लोगों को निःशुल्क वैक्सीन देने का जिम्मा क्यों राज्य सरकारों पर छोड़ा गया है? क्या इस आयु वर्ग के लोग केवल राज्यों के नागरिक हैं देश के नहीं? क्या केंद्र सरकार की नीतियां 50 प्रतिशत वैक्सीन की प्राप्ति के लिए राज्य सरकारों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा नहीं दे रही हैं? क्या वैक्सीन के लिए अब प्राइवेट सेक्टर और राज्य सरकारों में होड़ नहीं मचेगी?

देश के स्वास्थ्य मंत्री जी ने 07 मार्च 2021 को कहा- वी आर इन द एंड गेम ऑफ द कोविड-19 पैनडेमिक इन इंडिया। इस दिन का उनका वक्तव्य प्रधानमंत्री जी की दूरदर्शिता और वैक्सीन मैत्री की पहल को समर्पित था।

इससे बहुत पहले भी 24 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री जी द्वारा लगाए गए अविचारित लॉक डाउन की उपयोगिता सिद्ध करने की हड़बड़ी में भारत सरकार ने एक प्रेजेंटेशन दिया था। इस प्रेजेंटेशन में  नीति आयोग के सदस्य और कोविड-19 का मुकाबला करने हेतु बनाए गए 11 एम्पॉवर्ड ग्रुप्स में से ग्रुप1 के प्रमुख डॉ. वी के पॉल ने एक ऐसी स्लाइड का प्रयोग किया था जिसके अनुसार लॉक डाउन से मिले लाभों के कारण हम कोविड-19 कर्व को फ्लैटन करने में कामयाब होंगे। मई 2020 के पहले सप्ताह से कोविड-19 के केसेस में गिरावट प्रारंभ होगी तथा 16 मई 2020 को भारत में कोविड केसेस की संख्या शून्य होगी। 16 मई 2020 को भारत में कोविड19 के 4987 मामले थे। आगे जो कुछ हुआ वह दुःखद इतिहास का एक भाग है। बाद में डॉ. वी के पॉल ने (जो अब केंद्र सरकार की कोविड19 कमेटी ऑन मेडिकल इमरजेंसी के प्रमुख हैं) इस स्लाइड पर सफाई भी दी।

बहरहाल यह तो तय है कि सरकार की आत्ममुग्धता का दौर लंबे समय तक जारी रहा है और अब कुछ रिपोर्टों के हवाले से खबर आ रही है कि फरवरी और मार्च 2021 में जब देश बड़ी तेजी से कोविड-19 की दूसरी लहर की गिरफ्त में आता जा रहा था तब सरकार को इस विषय पर सलाह देने के लिए गठित नेशनल साइंटिफिक टास्क फोर्स ऑन कोविड-19 की कोई बैठक तक आयोजित नहीं हुई। रिपोर्टों के अनुसार वर्ष 2021 में 11 जनवरी को इस टास्क फोर्स की बैठक हुई फिर इसकी अगली बैठकें 15 एवं 21 अप्रैल को हुईं लेकिन तब तो देश दूसरी लहर की चपेट में आ चुका था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया गया है कि आईसीएमआर द्वारा कोविड-19 का ट्रीटमेंट प्रोटोकाल 3 जुलाई 2020 के बाद से अपडेट नहीं किया गया है। तब रेमडेसेवीर इन्वेस्टिगेशनल थेरेपी का एक भाग थी। बाद में डब्लूएचओ ने नवंबर 2020 में एक स्टेटमेंट जारी कर कहा कि वह कोविड-19 के इलाज में रेमडेसेवीर के प्रयोग के विरुद्ध है। उसने कहा कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि रेमडेसेवीर कोविड19 के रोगियों की जान बचाने या अन्य फायदे देने में समर्थ है। रिपोर्ट के अनुसार यदि आईसीएमआर द्वारा ट्रीटमेंट प्रोटोकाल अपडेट कर लिया गया होता तो शायद रेमडेसेवीर की किल्लत और कालाबाजारी की स्थितियां नहीं बनतीं। इन रिपोर्टों  में बताए गए तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और यदि ये गलत हैं तो सरकार को इनका खंडन करना चाहिए।

यह भी आश्चर्यजनक है कि लगभग एक वर्ष पूर्व जब कोविड मामलों की कुल संख्या केवल 2000 प्रतिदिन के आसपास थी, नीति आयोग के चेयरमैन और एम्पॉवर्ड ग्रुप -6 के अध्यक्ष श्री अमिताभ कांत और उनके सहयोगी सदस्यों ने 01 अप्रैल 2020 को हुई ग्रुप की दूसरी बैठक में ऑक्सीजन की कमी की आशंका जताई थी। इसके बाद डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड को ऑक्सीजन सप्लाई सुनिश्चित करने का जिम्मा दिया गया और इसके सचिव श्री गुरुप्रसाद महापात्रा की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय समिति भी बनाई गई थी। आज जब हम लगभग पौने चार लाख मामले प्रतिदिन की स्थिति पर हैं तब सरकार को यह बताना चाहिए कि उसने ऑक्सीजन का उत्पादन और वितरण सुनिश्चित करने हेतु एक वर्ष में कौन से कदम उठाए। यह महत्वपूर्ण विषय श्री रामगोपाल यादव (सांसद, समाजवादी पार्टी) की अध्यक्षता में हुई पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ऑन हेल्थ की बैठक में 16 अक्टूबर 2020 को भी उठाया जा चुका था। बहुचर्चित और विवादित पीएम केअर फण्ड का उपयोग कोविड-19 से लड़ाई के दौरान ऑक्सीजन के निर्माण और आपूर्ति, वेंटिलेटर एवं अन्य आवश्यक उपकरणों की खरीद तथा अन्य कोविड विषयक अधोसंरचना के निर्माण हेतु किस प्रकार किया गया, इस विषय में भी सरकार को विस्तृत जानकारी देनी चाहिए।

कोविड-19 की दूसरी लहर को विनाशक बनाने में सरकार की आत्ममुग्धता, लापरवाही और कुप्रबंधन की महती भूमिका रही है। जो तथ्य, आंकड़े और दृश्य आदरणीय प्रधानमंत्री जी को रुचिकर लगते हैं वही उनके सम्मुख प्रस्तुत किए जा रहे हैं। न प्रधानमंत्री जी में सच सुनने का साहस है, न उनके सलाहकारों में सच बताने का। यह स्थिति देश के लिए चिंताजनक है। 

(डॉ. राजू पाण्डेय रायगढ़, छत्तीसगढ़ से हैं)

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