तो क्या बंगाल में एक वोट की कीमत है ‘आठ सौ रुपये’!

क्या बंगाल में एक वोट की कीमत आठ सौ रुपये होगी। भाजपा ने एक शर्त के साथ यह कीमत तय कर दी है। प्रदेश भाजपा के नेताओं ने कहा है कि अगर बंगाल में उनकी सरकार बनती है तो 18 वर्ष से ऊपर के वालों को कोबिड की वैक्सीन मुफ्त दी जाएगी। यानी अगर सरकार नहीं बनती है तो मुफ्त नहीं मिलेगी, हालांकि चुनाव प्रचार की अंतिम सभा को वर्चुअल मोड पर संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। यहां गौरतलब है कि वैक्सीन की वितरण का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।

अगर वैक्सीन मुफ्त नहीं लगती है तो क्या कीमत होगी। निर्वाचन आयोग के मुताबिक 2 मई को बंगाल के चुनाव परिणाम आ जाएंगे। इधर केंद्र सरकार ने पहली मई से वैक्सीन की लागू होने वाली कीमत तय कर दी है। राज्य सरकार को वैक्सीन की एक फाइल के लिए ₹400 की दर से भुगतान करना पड़ेगा। यानी मतदाता भाजपा की सरकार नहीं बनाते हैं तो उन्हें वैक्सीन की दो फाइल के लिए आठ सौ रुपये देने पड़ेंगे। इस तरह भाजपा ने सातवें और आठवें चरण में एक वोट की कीमत आठ सौ रुपए तय कर दी है। अगर निजी अस्पताल में लेते हैं तो वैक्सीन की दो फाइल के लिए 12 सौ रुपए देने पड़ेंगे। गौरतलब है कि केंद्र सरकार को अभी यह वैक्सीन की दो फाइल तीन सौ रुपए में मिल रही है।

इस तरफ भाजपा का मुखौटा उतर गया है। अब सवाल उठता है कि बजट में मुफ्त वैक्सीन देने के लिए जो 35 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, उनका क्या हुआ? सच तो यह है कि कोविड वैक्सीन के मामले में सरकार कभी संजीदा रही ही नहीं। सीरम इंस्टीट्यूट ने सरकार से 3000 करोड़ रुपये मांगा था, ताकि वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाया जा सके। पर नहीं सुनी गई। फाइजर ने वैक्सीन उत्पादन के लिए अनुमति मांगी थी लेकिन जब नहीं सुनी गई तो उसने अपना आवेदन वापस ले लिया।

अमेरिका और यूरोप ने वैक्सीन के लिए ऑक्सफोर्ड एस्ट्रा जेनेका से 2020 की मई में ही करार कर लिया था। यूरोपियन यूनियन ने 2020 के अगस्त में करार कर लिया था। अपनी सरकार ने वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों से 2021 की जनवरी में करार किया था। रूस की वैक्सीन स्पूतनिक को मई में अनुमति दी गई, जाहिर है कि जून-जुलाई से पहले यह वैक्सीन नहीं आ पाएगी। इससे यह पता चल जाता है कि सरकार वैक्सीन के मामले में कितनी संजीदा थी।

दूसरी तरफ ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिक शोध करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वैक्सीन लगाकर ही इस पांडेमिक पर काबू पाया जा सकता है। वैक्सिनेशन प्रोग्राम के पहले चार माह में करीब चार लाख ब्रिटिश नागरिकों का परीक्षण करने के बाद पाया गया कि जिन लोगों ने ऑक्सफोर्ड एक्स्ट्राजेनेका का एक डोज लिया था उनमें से 65 फ़ीसदी कोबिड के दूसरे संक्रमण से बच गए। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों ने वैक्सीन का एक डोज लिया है और अगर दोबारा जांच में कोविड पॉजिटिव पाए जाते हैं तो उनका इलाज जनरल वार्ड में ही हो जाता है। 

इससे यह साबित होता है कि अगर वैक्सीन की दूसरी डोज लग गई होती तो कोविड के दूसरे दौर का इतना भयानक असर नहीं होता। पर मुश्किल तो यह है कि यह सरकार वैक्सीन को चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बनेगी या नहीं इससे जोड़कर देखती है।

कोविड को लेकर सरकार कितनी संजीदा रही है इसका एक और नमूना पेश है। पूरे देश में ऑक्सीजन के संकट को लेकर हाहाकार मचा हुआ है और मरीज सिर्फ ऑक्सीजन नहीं होने के कारण मर रहे हैं। स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय की संसदीय समिति की रिपोर्ट के पृष्ठ 35 पर कहा गया है कि यह समिति स्वास्थ्य मंत्रालय से अनुरोध करती है कि उचित मूल्य के साथ ऑक्सीजन सिलेंडरों की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। केंद्र सरकार द्वारा गठित इस समिति में 2020 में एक अप्रैल को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आने वाले दिनों में भारत को ऑक्सीजन के भयानक संकट का सामना करना पड़ सकता है। समिति की आशंका सही साबित हुई है और केंद्र सरकार पूरे एक साल तक सोती रही। जब ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण मरने वालों की संख्या बढ़ने लगी है तो सरकार को ऑक्सीजन आयात करने का ख्याल आया है। शायद इसीलिए सोशल मीडिया पर यह ट्वीट बहुत वायरल हुआ है-
सबका होगा अंतिम संस्कार
एक बार और मोदी सरकार

कोविड-19 के संक्रमण के दूसरे दौर की शुरुआत जनवरी में हुई थी। इस पर गौर करने के बजाय मोदी शाह और उनकी पूरी फौज चुनावी अभियान में जुटी रही। महाराष्ट्र में जब वैक्सीन का संकट आया और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री कार्यालय में फोन किया तो कह दिया गया कि प्रधानमंत्री बंगाल के दौरे पर हैं। यह सही भी है, क्योंकि मोदी-शाह की टीम केरल में अपना वजूद कायम करना चाहती थी, तमिलनाडु में सरकार बनानी थी और बंगाल में सोनार बांग्ला बनाना था। अब सोनार बांग्ला बनेगा या नहीं यह तो दो मई को तय होगा पर इस दौरान देश के कई प्रदेश श्मशान और कब्रिस्तान में बदल गए हैं।

दरअसल यह सरकार झूठ बोलती है और सच को छुपाना चाहती है। हाल ही में जब प्रधानमंत्री मोदी कोविड-19 के दूसरे दौर के संक्रमण को लेकर 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात कर रहे थे तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस बातचीत को लाइव कर दिया था। प्रधानमंत्री को यह बात बेहद नागवार लगी थी और उन्होंने अपना एतराज जताया भी था। पर इसमें गलत क्या था। आज तक प्रधानमंत्री कोविड-19 के संक्रमण के दूसरे दौर से निपटने की तैयारी कर रहे हैं और इस सिलसिले में संबंधित मुख्यमंत्रियों से बात कर रहे हैं। क्या फर्क पड़ता है अगर लोग यह देखें कि उनका प्रधानमंत्री देश पर आए इस संकट का किस तरह मुकाबला कर रहा है।

पर यही तो मुश्किल है। सरकार सच बताना नहीं चाहती है। ताली, थाली बजाकर और दीप जला कर पिछले साल कोविड का मुकाबला किया था। इस साल वैक्सीन का संकट आया तो वैक्सीन उत्सव मना कर इसका मुकाबला करने लगे। पर ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण होने वाली मौत वैक्सीन के लिए लंबी लाइन और आखिर में वैक्सीन के लिए लोगों को बाजार के हवाले करके सरकार ने यह साबित कर दिया है कि उसके पास दूरदर्शिता का भारी संकट है। वह भविष्य का अंदाजा नहीं कर सकती है पर लोगों को सपने दिखा सकती है।

जेके सिंह
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