बोलिविया में समाजवादियों की बड़ी वापसी

सारी दुनिया में यह बहस खड़ी करने के लिए बड़े यत्न किए जाते हैं कि समाजवादी /साम्यवादी और वामपंथी मोर्चे पर पार्टियां बनाने और उनके द्वारा चुनाव लड़ने की कोशिश लोगों और वामपंथियों को कहीं न पहुंचाने वाली आवारा पूंजी पर एकाधिकार पूंजीवाद जीत चुका है और दुनिया के विभिन्न देशों में वामपंथी पार्टियां, संगठन और ग्रुप हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। हैरानी वाली बात है कि समाजवादी-साम्यवादी-लोकतान्त्रिक शक्तियां निरंतर अपनी लड़ाइयां लड़ती रहती हैं।

वह हारती भी हैं पर उन्हें सफलताएं भी हासिल होती हैं। रविवार को लातिन (दक्षिणी) अमेरिका के देश बोलीविया में पूर्व राष्ट्रपति ईवो मोरालेस (Evo Morales) की अगुवाई वाली पार्टी समाजवाद समर्थक आंदोलन ‘मैस’ (Movimiento al Socialismo) के उम्मीदवार लुई आरसे को शानदार जीत प्राप्त हुई है। लुई आरसे को 53 प्रतिशत वोट मिले हैं और उनके विरोधी कार्लोस मेसा को 29.5 प्रतिशत और इस तरह आरसे पहले दौर में ही निर्णायक जीत प्राप्त करके राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। 

लुई आरसे अपने नेता ईवो मोरालेस की अगुवाई वाले मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे हैं। ईवो मोरालेस बोलिविया के राष्ट्रपति बनाने वाले पहले मूल निवासी हैं और वह 2006 से 2019 तक इस पद पर रहे। 2019 में सेना ने उन्हें देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर दिया था और उन्होंने पहले मैक्सिको और फिर अर्जेंटिना में शरण ली। उसका वह ‘आयमारा’ (Aymara) भाईचारे से संबंध रखते हैं जो लातिनी अमेरिका में विभिन्न देशों में हजारों सालों से रह रहे हैं। उन्होने विभिन्न ट्रेड यूनियनों और जनांदोलनों में सक्रिय रहने के बाद ‘मैस’ पार्टी की नींव रखी। वह जमीनी स्तर के लोकतन्त्र के बड़े हिमायती हैं। तीसरी दुनिया में वामपंथी धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी पार्टियों के लिए ईवो मोरालेस की पार्टी से (सिवाय उसके नेता बने रहने की ललक के) से सीखने के लिए बहुत कुछ है। मोरालेस को नवंबर 2019 में देश-बदर करने के बाद दक्षिणपंथी नेता ज़नीन अनेज़ को राष्ट्रपति बनाया गया था। 

बोलिविया के लोगों ने अपने इतिहास में उपनिवेशवादियों, अपने पड़ोसी देशों, अमेरिका की कॉरपोरेट कंपनियां और अमेरिकन केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) के हाथों अनंत प्रताड़नायें सही हैं। 2006 में मोरालेस के राष्ट्रपति बनने के बाद देश की राजनीति ने जनपक्षीय रुख अख्तियार किया और राजनीति रिवायती दक्षिणपंथी-वामपंथी दृष्टिकोणों के साथ-साथ ग्रामीण मूल निवासियों और शहरी कुलीन वर्ग के टकराव में भी परिवर्तित हुई।

मोरालेस ने सेहत, विद्या, खेती, तेल, गैस, वातावरण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुधारने, लोगों को भोजन मुहैया करवाने आदि क्षेत्रों में ज्यादा ध्यान दिया और वह लोगों में लोकप्रिय भी हुआ। उसने तेल और गैस के उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया और मूलनिवासियों की समस्याएं हल करने की कोशिश की। उसने देश की बहुत ज्यादा गरीबी में रह रहे लोगों को इस जलालत से छुटकारा दिलवाया पर उसकी लगातार अपने राष्ट्रपति पद पर बने रहने की लालसा जो वामपंथी नेताओं में आम है) ने उसके अक्स को नुकसान पहुंचाया और उसे अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। 

बोलिविया स्पेन का गुलाम रहा है। 1804 में आजादी के लिए संघर्ष की राह पर चला और 1825 में लातिनी अमेरिका के सिरमौर नेता सिमोन बोलिवा की अगुवाई में इसको पूर्ण आजादी मिली। देश का नाम भी इस महानायक के नाम पर रखा गया। आज़ादी के बाद इसको पड़ोसी देशों चिली, पेरू और ब्राजील के हमलों का सामना करना पड़ा। चिली के द्वारा इसके तटीय इलाकों पर कब्ज़ा कर लिए जाने के कारण इस देश के पास कोई समुद्री तट नहीं है।  

इतिहास के थपेड़े खाते हुए 1952 में यहां क्रांतिकारी राष्ट्रवादी पार्टी सत्ता में आई पर 1964 में सेना ने राजकाज पर फिर कब्जा कर लिया। 1966 में अर्जेंटीनावासी मशहूर क्रांतिकारी चे ग्वेरा बोलिविया में पहुंचे और उन्होंने देश के पूर्वी हिस्से के जंगलों में जाकर गुरिल्ला युद्ध आरंभ किया। सीआईए ने बोलिविया की सेना की सहायता की और सीआईए के एजेंट फेलिक्स रोड्रिग्स की कमान के नीचे सेना और सीआईए की टुकड़ियों में तत्कालीन राष्ट्रपति रेने बारिएंतोस के आदेश के अनुसार चे ग्वेरा को 9 अक्तूबर 1967 को क़त्ल कर दिया गया। चे को मारने से पहले सीआईए के एक एजेंट ने चे ग्वेरा को पूछा, ‘क्या तुम अपने अमर हो जाने के बारे में सोच रहे हो?’ चे ग्वेरा ने जवाब दिया, ‘नहीं मैं इन्क़लाब की अमरता के बारे में सोच रहा हूँ।’ इस तरह का नाम लातिनी अमेरिका के दो महानतम क्रांतिकारियों सिमोन बोलिवा और चे ग्वेरा के साथ जुड़ा हुआ है। 

1971 में जनरल ह्यूगो बेंज़र सीआईए की हिमायत के साथ सत्ता में आया और इसी तरह जनरल लुई गार्सिया मेज़ा ने 1980 में सेना की हिंसक हिमायत से सत्ता हथियाई। 1993 से देश दुबारा लोकतन्त्र की ओर लौटा। 2002 में इस बार विजयी हुई पार्टी ‘मैस’ ने एक अन्य लोकतान्त्रिक पार्टी के साथ समझौता किया और सहयोगी पार्टी के प्रतिनिधि को राष्ट्रपति पद पर बैठाया। 2006 में ‘मैस’ अपने बलबूते पर सत्ता में आई। और 2009 में देश का नया संविधान बनाया गया। 

इस तरह फौजी शासकों, अमेरिकन कॉरपोरेट्स, अमेरिकन सरकार, सीआईए और कट्टरपंथी ताकतों ने हमेशा बोलिविया के लोगों को कुचलने और वहां के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की कोशिश की है। 2006 में देश की राजनीति में परिवर्तन आने पर सियासी जमात में आर्थिक ढांचे के पुनर्निर्माण, प्राकृतिक संसाधनों/खदानों के राष्ट्रीयकरण, बेरोजगारी घटाने, रिश्वतखोरी पर नकेल कसने और सामाजिक एकता पर बल दिया है। अब चुने गए राष्ट्रपति लुई आरसे पर बड़ी जिम्मेवारी है कि वह मूल निवासियों और शहरी लोगों की एकता की कार्यसूची पर पहरा दें।

उनकी बड़ी मुश्किल यह है कि विरोधी पक्ष में गौरांग और समाजवादी विरोधियों की बहुतायत है। ऐसा प्रतिपक्ष पहले की तरह कॉर्पोरेट संस्थाओं, अमेरिकी सरकार, अमेरिकी कंपनियां और सेना की सहायता से लुई के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। उसकी ताकत ‘मैस’ पार्टी द्वारा मजदूर वर्ग में पैदा किए गए व्यापक आधार में है। आरसे के सामने अपनी पार्टी के जनपक्षीय एजेंडे को अमल में लाने की जिम्मेवारी के साथ सामाजिक भेदभाव को मिटाने और सामाजिक एकता कायम करने की बड़ी चुनौती भी है।

(स्वराजबीर पंजाबी कवि, नाटककार और पंजाबी ट्रिब्यून के संपादक हैं।) 

स्वराजबीर
Published by
स्वराजबीर