त्वरित सुनवाई बंदी का मौलिक अधिकार, अच्छे इंसान थे स्टेन स्वामी: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मुकदमे के विचारण में अत्यधिक विलम्ब पर खेद व्यक्त किया, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी विचाराधीन कैदी के रूप में जेलों में निरुद्ध रहते हैं। जस्टिस एसएस शिंदे और एनजे जमादार की खंडपीठ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के वकील से कहा, ‘आप इस मामले पर बहस करेंगे और चले जायेंगे, लेकिन जवाब हमें देना होगा। बिना मुकदमा चलाये कितने सालों तक लोगों को जेलों में रहने के लिए कहा जा सकता है? त्वरित सुनवाई एक मौलिक अधिकार है’। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी दिवंगत आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और पादरी स्टेन स्वामी के मामले में सुनवाई के दौरान की।   

खंडपीठ ने कहा कि हमें बताया गया कि मामले में आरोप भी तय नहीं किए गए हैं। कितने गवाह हैं? आप मामले पर बहस करेंगे और चले जाएंगे। लेकिन हमें जवाब देना होगा। बिना ट्रायल के कितने साल तक लोगों को जेलों में बंद रहने के लिए कहा जा सकता है? जल्दी ट्रायल होना मौलिक अधिकार है। इस मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी।

खंडपीठ ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है और हमने भी ऐसा होने की उम्मीद नहीं की थी। स्टेन स्वामी एल्गार परिषद केस में आरोपी थे। उन्हें पिछले साल गिरफ्तार किया गया था। 5 जुलाई को 84 साल की उम्र में उनका निधन मुंबई के एक हॉस्पिटल में हुआ था।

स्टेन स्वामी के निधन के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को उनकी याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनएच जमादार की खंडपीठ ने कहा कि स्टेन स्वामी की मौत की खबर सुनकर हमें भी धक्का लगा, जो हुआ हम उसके लिए दुखी हैं। समाज के लिए उनकी सेवा के लिए हमारे मन में स्टेन स्वामी के लिए बहुत सम्मान है।

खंडपीठ ने कहा कि स्टेन स्वामी की ओर से पेश होने वाले वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने जब भी कोई अपील की, कोर्ट ने उस पर विचार किया। इतना ही नहीं खंडपीठ ने इस मामले में वरवर राव को स्वास्थ्य के आधार पर जमानत देने का भी जिक्र किया। खंडपीठ ने कहा, कोई ये जिक्र नहीं कर रहा कि हमने वरवर राव को जमानत दी थी। हमने उनके परिवार को अस्पताल में उनसे मिलने की इजाजत दी।

जस्टिस शिंदे ने कहा, जब मिहिर देसाई आपने स्वामी को जेल से हॉस्पिटल ट्रांसफर करने की अपील की, तो हमने उसे स्वीकार किया। उन्होंने कहा, ना तो हम अपने आदेश में इसका जिक्र कर सकते हैं कि हमें कैसा महसूस हो रहा है, ना ही हम ये बता सकते हैं। जस्टिस शिंदे ने बताया कि न्यूज चैनल देखने और समाचार पत्र पढ़ने से बचते हैं। लेकिन सोमवार को उन्होंने स्वामी का अंतिम संस्कार देखा। मुझे अंतिम संस्कार का समय पता था, इसलिए मैंने देखा। अंतिम संस्कार काफी सम्मानजनक तरीके और शालीनता के साथ किया गया।जस्टिस शिंदे ने कहा, समाज में उनके काम के लिए हमारे मन में पूरा सम्मान है। कानूनी तौर पर जो कुछ भी हो रहा है वह दूसरी बात है, लेकिन समाज के लिए उनकी सेवा के लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है।

स्टेन स्वामी के वकील देसाई ने कहा, उन्हें कोर्ट से कोई शिकायत नहीं है। देसाई ने अदालत को आश्वासन दिया कि वह अपने बयान पर कायम हैं। उन्होंने कहा, वे उन सभी हाईकोर्ट की बेंच से संतुष्ट हैं, जिन्होंने स्वामी के मामलों की सुनवाई की थी।  

बॉम्बे हाईकोर्ट एनआईए स्पेशल कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ स्वामी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उनकी बेल को रद्द कर दिया गया था। मिहिर देसाई ने पूर्व-जेवियर्स कॉलेज के प्रिंसिपल फादर फ्रेजर मैस्करेन को फादर स्टेन स्वामी की मौत की अनिवार्य मजिस्ट्रेट जांच में परिजन के रूप में शामिल होने की अनुमति देने की मांग की। जांच सीआरपीसी की धारा 176 (ए) के तहत की जा रही है। पीठ ने देसाई से कहा कि वे स्वामी की मृत्यु के बाद कोर्ट रूम के बाहर कही गई बातों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, लेकिन यह सुनिश्चित किया गया है कि बीमार फादर को उस समय से आवश्यक चिकित्सा प्राप्त हो, जब उनके वकीलों ने 28 मई, 2021 को उल्लेख किया था कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से पेश वकील संदेश पाटिल ने इसका विरोध किया। संदेश पाटिल ने कहा कि वह देसाई की दलीलों पर आपत्ति जता रहे हैं, क्योंकि अदालत को स्वामी की जमानत याचिकाओं के साथ ही जब्त कर लिया गया था। उन्होंने कहा कि समय-समय पर यह अनुमान लगाया जाता है कि जो कुछ भी हुआ है उसके लिए एनआईए जिम्मेदार है, जेल अधिकारी जिम्मेदार हैं। खंडपीठ ने तब एनआईए को समय दिया और कहा कि वह अगस्त के पहले शुक्रवार को मामले को उठाएगी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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