सुप्रीम कोर्ट का टर्नअराउंड: प्रवासी मजदूरों के लिए सूखा राशन, सामुदायिक रसोई का दिल्ली, यूपी और हरियाणा को निर्देश

क्या यह माना जाये कि देश के सबसे बड़े न्यायालय उच्चतम न्यायालय का टर्नअराउंड हो गया है। पिछले चार चीफ जस्टिसों ,जस्टिस खेहर,जस्टिस दीपक मिश्रा ,जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एस ए बोबडे के बाद जबसे जस्टिस एनवी रमना ने चीफ जस्टिस का कार्यभार सम्भाला है तब से उच्चतम न्यायालय का रुख कुछ बदला बदला नजर आ रहा है।पिछले साल प्रवासी मजदूरों के कोरोना लॉकडाउन में सडक पर हजारों किलोमीटर पैदल चलकर मरते खपते अपने मुलुक जाने के दौरान उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार की दलील मान ली थी कि सड़क पर कोई पैदल मजदूर है ही नहीं।लेकिन आज 13 मई 21 को उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों को सूखा राशन प्रदान करने का निर्देश दिया।यह उच्चतम न्यायालय का टर्नअराउंड नहीं तो क्या है।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि सूखा राशन प्रदान करते समय राज्यों के अधिकारियों को उन प्रवासी मजदूरों के लिए पहचान पत्र पर जोर नहीं देना है जो उस समय उनके पास नहीं होगा और फंसे हुए प्रवासी मजदूरों द्वारा की गई स्वयं-घोषणा पर उन्हें सूखा राशन दिया जाए।इसके अलावा, दिल्ली सरकार, यूपी और हरियाणा राज्यों को भी फंसे हुए प्रवासी कामगारों, साथ ही उनके परिवारों के लिए एनसीआर में अच्छी तरह से विज्ञापित स्थानों पर सामुदायिक रसोई स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि उन्हें दिन में दो बार भोजन उपलब्ध कराया जाए।

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने दिल्ली सरकार, यूपी और हरियाणा सरकारों को यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि एनसीआर में फंसे हुए प्रवासी कामगारों को पर्याप्त परिवहन उपलब्ध कराया जाए जो अपने घरों में वापस जाना चाहते हैं। पीठ एक अर्जी पर सुनवाई कर रही थी, जो स्वत: संज्ञान मामले इन रि : प्रॉब्लम्स एंड माइजरीज ऑफ माइग्रेंट लेबर्स, में एक्टिविस्ट हर्ष मंदर, अंजलि भारद्वाज और जगदीप छोकर की ओर से दायर की गई है , जिसमें मुद्दों को उजागर किया गया था जिन समस्याओं की कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के मद्देनज़र विभिन्न राज्यों द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के कारण प्रवासी श्रमिकों द्वारा का सामना किया जा रहा है।

पीठ ने अंतरिम निर्देश दिया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों को सूखा राशन आत्मनिर्भर भारत योजना या किसी अन्य योजना के तहत भारत सरकार, दिल्ली एनसीटी, यूपी राज्य और हरियाणा द्वारा प्रदान किया जाए जिसका मई, 2021 से प्रत्येक राज्य में प्रचलित सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उपयोग को रहा है। सूखा राशन प्रदान करते समय राज्यों के प्राधिकरण उन प्रवासी मजदूरों के पहचान पत्र पर जोर नहीं देंगे, जिनके पास समय पर ये नहीं है। फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को सूखा राशन स्व-घोषणा पर दिया जाए।

पीठ ने अंतरिम निर्देश दिया कि दिल्ली एनसीटी, यूपी और हरियाणा राज्य (एनसीआर में शामिल जिलों के लिए) यह सुनिश्चित करेंगे कि फंसे हुए प्रवासी मजदूरों (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में) को पर्याप्त परिवहन प्रदान किया जाए जो अपने घर लौटना चाहते हैं। पुलिस प्रशासन के साथ समन्वय में जिला प्रशासन ऐसे फंसे हुए प्रवासी मजदूरों की पहचान कर सकता है और सड़क परिवहन या ट्रेन द्वारा उनके परिवहन की सुविधा प्रदान कर सकता है। प्रवासी मजदूरों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए आवश्यक और पर्याप्त उपाय करने के लिए भारत संघ रेल मंत्रालय को आवश्यक निर्देश जारी कर सकता है।

अंतरिम निर्देश में पीठ ने कहा कि दिल्ली एनसीटी, यूपी राज्य और हरियाणा राज्य (एनसीआर में शामिल जिलों के लिए) फंसे हुए प्रवासी मजदूरों के लिए अच्छी तरह से विज्ञापित स्थानों (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में) में सामुदायिक रसोई खोलेंगे ताकि वे और उनके परिवार के सदस्य जो फंसे हुए हैं उन्हें एक दिन में दो भोजन मिल सकें।

अंतरिम निर्देशों के अलावा पीठ ने केंद्र, दिल्ली सरकार, उत्तर प्रदेश राज्य और हरियाणा राज्य को एनसीआर में शामिल जिलों के लिए  इस आवेदन का जवाब देने के लिए, सुझाव और फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों के दुखों को कम करने के उपाय सुझाने का निर्देश दिया। पीठ ने महाराष्ट्र, गुजरात और बिहार राज्यों को भी आवेदन पर नोटिस जारी किया है, जिसमें वे उन उपायों का विवरण देते हुए जवाब दाखिल करेंगे जो वे फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों के परिवहन और सूखे राशन प्रदान करने के साथ- साथ पका हुआ भोजन प्रदान करने के संबंध में प्रवासी श्रमिकों के दुखों को सुधारने के लिए प्रस्तावित किए गए हैं।

उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 09 जून 2020 का उल्लेख किया, जिसमें उन प्रवासी श्रमिकों को राहत देने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए थे, जो अपने पैतृक गांवों में लौट आए थे। बाद में अक्तूबर 2020 में उच्चतम न्यायालय ने राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को दो सप्ताह के भीतर निर्देशों पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने का निर्देश दिया था। आज, न्यायालय ने उल्लेख किया कि अधिकांश राज्यों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज नहीं की हैं, और इसलिए, अंतिम अवसर के रूप में, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र और ओडिशा के राज्यों जवाब दाखिल करने करने के लिए 10 दिनों का समय दिया गया है।

पिछले साल कोरोना की पहली लहर के बीच उच्चतम न्यायालय  ने प्रवासी मजदूरों के हित में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए कई निर्देश जारी किए थे।इन्हीं निर्देशों को लेकर पीठ ने कहा कि उन आदेशों पर कोई अमल नहीं हुआ है,क्योंकि किसी भी राज्य सरकारों की तरफ से अब तक को जवाब दाखिल नहीं किया गया है।पीठ ने कहा कि अधिकारियों को सुनिश्चित करना चाहिए कि घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों से निजी बस संचालक अत्यधिक किराया नहीं वसूल करें और केंद्र को उन्हें परिवहन की सुविधा देने के लिए रेलवे को शामिल करने पर विचार करना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि वैश्विक महामारी की वजह से कई प्रवासी कामगार एक बार फिर परेशानी का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनकी नौकरियां चली गई और उनके पास अपना ख्याल रखने के लिए पैसा नहीं है। सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि देश वैश्विक महामारी से लड़ रहा है और सभी राज्यों का प्रयास यह सुनिश्चित करने का है कि औद्योगिक एवं निर्माण गतिविधियां रुके नहीं। केंद्र द्वारा आई ए का विरोध किया गया, जिसका प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने किया।मामले की सुनवाई अब 24 मई को होगी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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