सरकारी कर्मचारी नहीं बन सकते चुनाव आयुक्त: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दिया है कि केंद्र या राज्य सरकार में कार्यरत किसी भी कर्मचारी को भी चुनाव आयुक्त नहीं नियुक्त किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसा देश भर में कहीं भी नहीं किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र व्यक्ति होना चाहिए। कोई भी अधिकारी जो केंद्र या राज्य सरकार की सेवा में हो या किसी लाभ के पद पर हो, उसे चुनाव आयुक्त नियुक्त नहीं किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जो व्‍यक्ति सरकार में कोई पद संभाल रहा हो उसे राज्‍य के चुनाव आयुक्‍त का पद कैसे दिया जा सकता है? उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश इस मंशा से दिया है कि चुनाव आयुक्त पूरी तरह आज़ाद होकर काम कर सकें। यह आदेश पूरे देश पर लागू होगा।

जस्टिस आरएफ़ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि लोकतंत्र में चुनाव आयोग की आज़ादी से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है और किसी सरकारी अफ़सर को राज्य के चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त कार्यभार सौंपना संविधान का मखौल उड़ाना है।

पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142, 144 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश दिया। अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह संपूर्ण न्याय के लिए निर्देश दे जबकि अनुच्छेद 144 सभी अफ़सरों को उच्चतम न्यायालय की सहायता करने के लिए बाध्य करता है।

गोवा सरकार ने पिछले साल अपने क़ानूनी महकमे के सचिव को राज्य में नगर पालिका परिषद के चुनाव कराने के लिए राज्य का चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था। सचिव को यह जिम्मेदारी अतिरिक्त रूप से दी गई थी। मामले में सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि यह स्थिति निराशाजनक है। पीठ ने गोवा सरकार को इसके लिए डांट भी लगाई।

गोवा सरकार ने राज्य के हाईकोर्ट के उस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने पांच नगर पालिकाओं में कराए गए चुनावों को रद्द कर दिया था। इसके पीछे कारण यह था कि क़ानून के मुताबिक महिलाओं के लिए वार्ड्स को आरक्षित नहीं किया गया था। मामले की सुनवाई के दौरान यह मसला भी उठा कि राज्य में इस समय पूर्णकालिक चुनाव आयुक्त नहीं हैं। कानून मंत्रालय के सचिव के पास चुनाव आयोग का अतिरिक्त प्रभार है।

पीठ ने कहा कि राज्‍य सरकार से जुड़े किसी भी व्‍यक्ति को चुनाव आयुक्‍त नियुक्‍त करना भारत के संविधान के विरुद्ध है। पीठ ने ये फैसला गोवा सरकार के सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार देने पर सुनाया है। पीठ ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि गोवा में जिस तरह ये राज्‍य चुनाव आयुक्‍त का पद सरकार के सचिव को दिया गया है वह काफी परेशान करने वाला है। एक सरकारी कर्मचारी, जो सरकार के साथ रोजगार में था, गोवा में चुनाव आयोग का प्रभारी है। सरकारी अधिकारी ने पंचायत चुनाव कराने के संबंध में उच्च न्यायालय के फैसले को पलटने का प्रयास किया।

पीठ ने गोवा चुनाव आयोग से कहा है कि वह 10 दिन के भीतर नए सिरे से स्थानीय निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करे। 30 अप्रैल तक चुनाव प्रक्रिया पूरी की जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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