‘वकील और जज आएंगे-जाएंगे लेकिन बेंच और बार के बीच सौहार्द बना रहना चाहिए’

उच्चतम न्यायालय में आये दिन अवमानना की धौंस देकर वरिष्ठ वकीलों को चुप कराने की बढ़ती प्रवृत्ति पर वरिष्ठ वकीलों को पहल करनी पड़ी। ताजा मामला न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा द्वारा भूमि अधिग्रहण मामलों की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन को अवमानना की धमकी दिए जाने का था।  

इसके बाद बार के वरिष्ठ सदस्य एकजुट हो गए और जस्टिस अरुण मिश्रा की अदालत में एकत्र होकर और वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन को अवमानना की धमकी दिए जाने पर चिंता व्यक्त की। वरिष्ट वकीलों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में शिष्टाचार, धैर्य और विनम्रता की इस परंपरा को बनाए रखने की जरूरत है। यह भी कहा कि हम आएंगे और जाएंगे, न्यायाधीश आएंगे और जाएंगे, लेकिन बेंच और बार के बीच सौहार्द बना रहना चाहिए।

वरिष्ठ वकीलों ने जस्टिस मिश्रा की पीठ को बताया कि वे वहां न्यायाधीशों को संस्था की गरिमा और परंपराओं की रक्षा करने और पीठ के समक्ष पेश होने वाले वकीलों के साथ धैर्य और सौहार्द बनाए रखने का अनुरोध करने के लिए इकट्ठा हुए हैं।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि यह चिंता एक विशेष घटना से नहीं, बल्कि अनेक घटनाओं के संबंध में है। सिब्बल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का एक संस्था के रूप में विकास उन परंपराओं से हुआ है जो वरिष्ठों से उनके जूनियर्स को मिलते रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिष्टाचार, धैर्य और विनम्रता की इस परंपरा को बनाए रखने की जरूरत है।

सिब्बल ने कहा कि हम में से कई लोग चालीस साल से इस बार में हैं और इस बार की परंपरा को जानते हैं। हमने अपने वरिष्ठों से अपनी परंपराएं सीखी हैं और अगर वहां हतोत्साहित करने का माहौल होता, तो न्यायपीठ तक पहुंचने वाले प्रतिष्ठित न्यायाधीश भी यहां से सीखते…. केवल आपसे अनुरोध है कि परंपरा को जारी रखने और संवाद को विनम्र बनाये रखने की अनुमति दें। सिब्बल ने जस्टिस मिश्रा से कहा कि बार और बेंच दोनों का ही यह कर्तव्य है कि वे अदालत की गरिमा बनाए रखें और दोनों को परस्पर एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। 

इस भावना को दोहराते हुए पूर्व महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम आएंगे और जाएंगे, न्यायाधीश आएंगे और जाएंगे, लेकिन सौहार्द बना रहना चाहिए। रोहतगी ने कहा कि युवा वकील इस कोर्ट में आने से भयभीत हो रहे हैं और यह बार के युवा सदस्यों को प्रभावित कर रहा है।
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और दुष्यंत दवे ने भी पीठ से अनुरोध किया कि वकीलों को धैर्य के साथ सुना जाए। सिंघवी ने पीठ के समक्ष हाथ जोड़कर एक मात्र अनुरोध किया कि वकीलों के दृष्टिकोण को सुना जाए।

दुष्यंत दवे ने न्यायाधीशों से बार के युवा सदस्यों को प्रोत्साहित करने और इस महान संस्थान के पुनर्निर्माण में मदद करने का अनुरोध किया। सिंघवी ने कहा कि न्यायालय में परस्पर सद्भाव का माहौल बनाए रखना चाहिए और बार और बेंच को परस्पर सम्मान करना चाहिए।

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के सामने वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी और सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार खन्ना ने इस मुद्दे को उठाया। खन्ना ने पीठ से कहा कि न्यायपालिका और बार की स्वतंत्रता बहुत ही जरूरी है और इसलिए बार तथा बेंच के बीच सद्भावपूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी है।

इन अधिवक्ताओं द्वारा इस मामले का जिक्र किए जाने पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि वह किसी भी अन्य जज के मुकाबले बार का ज्यादा सम्मान करते हैं और यदि कोई पीड़ित महसूस कर रहा है तो वह इसके लिए क्षमा चाहते हैं।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि यदि किसी भी अवसर पर किसी को भी असुविधा महसूस हुई है तो मैं हाथ जोड़कर इसके लिए क्षमा मांगता हूं।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मैं बार से अधिक जुड़ा हुआ हूं। मैं यही कहना चाहूंगा कि बार तो बेंच की मां है। मैं किसी भी अन्य चीज से ज्यादा बार का सम्मान करता हूं। मैं अपने दिल से यह कह रहा हूं और कृपया इस तरह की कोई धारणा अपने दिमाग में मत रखिए। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी के प्रति भी कोई शिकायत नहीं है और उन्होंने जज के रूप में अपने करीब 20 साल के कार्यकाल के दौरान किसी भी वकील के खिलाफ अवमानना कार्रवाई नहीं की है।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अक्खड़पन इस महान संस्था को नष्ट कर रहा  है और बार का यह कर्तव्य है कि वह इसकी रक्षा करे। उन्होंने कहा कि आजकल न्यायालय को उचित ढंग से संबोधित नहीं किया जाता। यहां तक कि उस पर हमला बोला जाता है। यह सही नहीं है और इससे बचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मामले में बहस के दौरान वकील को किसी के भी बारे में व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से बचना चाहिए।

जस्टिस मिश्रा ने एकदम अंत में एससीबीए के अध्यक्ष से कहा कि वह नारायणन को उनसे मिलने के लिए कहें। उन्होंने कहा कि वह बहुत बुद्धिमान और प्रतिभाशाली वकील हैं तथा वह उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

दरअसल दो दिन पहले जमीन अधिग्रहण के एक मामले की जस्टिस मिश्रा की अगुआई वाली पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई चल रही थी। नारायणन दलीलें रख रहे थे। जस्टिस मिश्रा ने उन्हें दलीलों को न दोहराने को कहा। इसके बाद दोनों में नोकझोंक हुई थी। इसी दौरान जस्टिस मिश्रा ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की चेतावनी दी। इसके बाद नारायणन कोर्ट रूम से बाहर चले गए थे।

 (जेपी सिंह पत्रकार होने के साथ ही कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

जेपी सिंह
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