पाटलिपुत्र की जंगः ‘वोटकटवा’ चिराग हैं तो डरे हुए क्यों हैं नीतीश समर्थक?

क्या चिराग पासवान वोटकटवा हैं? क्या एलजेपी जीतने के लिए नहीं लड़ रही है चुनाव? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि जेडीयू ही नहीं, बीजेपी के नेता भी ऐसे सवाल उठाते दिख रहे हैं। मगर, प्रश्न यह भी है कि ‘वोटकटवा’ हैं तो किसका वोट काटेंगे चिराग? किन्हें सता रहा है चिराग से आग का डर? जाहिर है कि जिन्हें डर है वही तो चिराग पासवान और उनकी पार्टी को ‘वोटकटवा’ कहेगी!

चिराग पासवान बिहार के वोटरों से लगातार बोल रहे हैं कि उनकी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी आस्था है और वो विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जेडीयू को हराने के लिए और नीतीश कुमार को गद्दी से उतारने के लिए चुनाव मैदान में हैं। चिराग कहते हैं “जो बीजेपी के नेता एलजेपी को वोटकटवा बता रहे हैं उनकी ‘मजबूरी’ भी वे समझते हैं।”

पासवान के पक्ष में आए लालू, नीतीश को दिया करारा जवाब
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह याद दिलाया था कि अगर जेडीयू का समर्थन नहीं होता तो रामविलास पासवान राज्यसभा नहीं पहुंचते। नीतीश को करारा जवाब दिया है लालू प्रसाद ने ट्वीट कर। लालू ने कहा है कि हमारे साथ चुनाव नहीं लड़ते तो क्या नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन पाते? चिराग पासवान के पक्ष में बोल कर लालू प्रसाद ने चुनाव बाद सियासत की चाल भी चल दी है। याद दिलाने की जरूरत नहीं कि चिराग पासवान भी तेजस्वी को छोटा भाई बताते रहे हैं।

नीतीश को जवाब देते हुए चिराग पासवान ने भी कहा है कि बीजेपी नेताओं के साथ आम चुनाव में हुए तालमेल के समय ही यह बात तय हो गई थी कि राज्यसभा की एक सीट एलजेपी को मिलेगी। ऐसे में वे नहीं मानते कि जेडीयू का कोई अहसान एलजेपी पर है। जाहिर है जेडीयू ने बीजेपी के कहने पर ही पासवान का समर्थन किया होगा।

‘वोटकटवा’ चिराग पर मुंह खोलेंगे नरेंद्र मोदी?
चिराग पासवान वोटकटवा हैं या क्या हैं इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया क्या होगी यह महत्वपूर्ण है। अगर वे चुप लगा जाते हैं तो चिराग पासवान और उनकी पार्टी के हौसले बुलंद हो जाएंगे। तब सुशील मोदी के ‘वोटकटवा’ बोलने को वो नीतीश के साथ उनकी यारी से जोड़ दे सकते हैं। इस बीच बीजेपी के कद्दावर नेता प्रकाश जावड़ेकर ने भी चिराग पासवान को ‘वोटकटवा’ कह डाला है। इससे चिराग की चिंता जरूर बढ़ गई है।

बिहार के लोग ‘वोटकटवा’ का मतलब जानते हैं। बिहार से बाहर जो इस शब्द को नहीं समझते उनके लिए यह जानना जरूरी है कि चुनाव के मैदान में जो उम्मीदवार या पार्टी जानती है कि उनकी जीत नहीं होनी है फिर भी वे डटे रहते हैं। नतीजा यह होता है कि गंभीर प्रत्याशियों के वोट वो काटते हैं और इस वजह से किसी की जीत या हार तय करते हैं।

अगर चिराग पासवान कोई नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं होते तो शायद उनकी चर्चा भी नहीं होती। नुकसान पहुंचाने की जो उनकी क्षमता है, उसी कारण जेडीयू भी बेचैन है और गठबंधन में जेडीयू के समर्थक भी बिलबिला रहे हैं।

एनडीए में हैं चिराग के समर्थक भी
बीजेपी में जेडीयू विरोधी भी हैं। चिराग पासवान उनके दम पर ही उछल रहे हैं। अगर चिराग पासवान को रोकना होता और अपने सहयोगी जेडीयू को नुकसान से बचाना होता तो राष्ट्रीय स्तर पर जेपी नड्डा इसकी औपचारिक शिकायत चुनाव आयोग से कर चुके होते। बीजेपी तमाम उन बागियों को अपनी पार्टी से निकाल तो रही है जो एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, मगर यह कदम कितना गंभीर है इसका पता अभी नहीं चलेगा।

चिराग पासवान ने साफ किया है कि बिहार में जेडीयू के खिलाफ उनकी पार्टी इसलिए खड़ी है, क्योंकि उनके स्वर्गीय पिता राम विलास पासवान ऐसा चाहते थे। वे यह भी कहते हैं कि अच्छे मन से योजना बनाकर काम करने से सफलता जरूर मिलती है। नीतीश को सीएम से हटाने की योजना पर वे अड़े हुए हैं। उनकी योजना तभी सफल होगी जब चुनाव बाद ऐसी स्थिति हो कि बगैर एलजेपी के सरकार बन पाना मुश्किल हो जाए। ऐसा तभी हो सकता है जब ‘वोटकटवा’ से हटकर एलजेपी का प्रदर्शन विधानसभा चुनाव में दिखे।

एलजेपी कई जगह दूसरों को भी बना सकती है ‘वोटकटवा’
बीजेपी नेता सुशील मोदी खुद कह रहे हैं कि चिराग पासवान को 2-3 सीट तो जरूर आएगी। एक-दो सर्वे जो सामने आए हैं, उसमें भी चिराग पासवान की पार्टी को पांच सीटें मिलती दिख रही हैं। ये सर्वे पूरी तरह से एनडीए के पक्ष में माहौल दिखा रहे हैं। अगर 2015 की तरह ये सर्वे झूठे साबित हुए तो चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी का आंकड़ा बड़ा भी हो सकता है। कह सकते हैं कि कई सीटों पर चिराग पासवान ‘वोटकटवा’ भी हो सकते हैं और कई सीटों पर जेडीयू को भी ‘वोटकटवा’ बना सकते हैं।

एनडीए में रहते हुए चिराग पासवान ने 2015 में 42 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे और उसे महज दो सीटों पर सफलता मिली थी। मगर, इसी एलजेपी ने 2005 में 178 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 29 सीटें जीती थीं। मगर, यह एलजेपी का स्वर्णिम काल था। उसके बाद से उसकी स्थिति लगातार खराब होती गई है। चिराग पासवान अपनी पार्टी को 2005 के स्तर पर खड़ा करने में लगे हैं। राम विलास पासवान के दिवंगत होने से पार्टी को बड़ा धक्का लगा है, लेकिन उनके नाम पर सहानुभूति भी है।

चिराग पासवान के लिए उतरी पहनकर वोट मांगना भावुक वक्त है। उन वोटरों के लिए भी यह वैसा ही क्षण है, जिनके बीच उतरी पहने चिराग वोट मांगने पहुंचेंगे। यह बिहार और बिहारियों की भावना है। पिता रामविलास पासवान को मुखाग्नि देने के बाद चिराग पासवान श्राद्धकर्म पूरा होने तक उतरी ही पहने दिखेंगे। आम वस्त्र वे धारण नहीं कर सकते। उन्हें श्राद्धकर्म को अंतिम रूप भी देना है और बिहार विधानसभा चुनाव भी लड़ना है। मगर, यही चिराग की ताकत भी है कमजोरी भी।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

प्रेम कुमार
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