विशेष सत्र के लिए अभी सिर्फ दिखावे का एजेंडा जारी किया है सरकार ने

संसद के बहुचर्चित विशेष सत्र का एक एजेंडा बुधवार को लोकसभा सचिवालय की ओर से एक सूचना के तौर पर जारी किया गया है। इसमें बताया गया कि सामान्य कामकाज यानी दस्तावेज आदि सदन के पटल पर रखे जाने के अलावा देश की संविधान सभा से शुरू हुई संसदीय प्रणाली की 75 साल की यात्रा, उपलब्धियों, अनुभवों और इससे मिली सीखों के बारे में चर्चा होगी। इसके अलावा चार सामान्य विधेयक पारित कराए जाएंगे। इन चार विधेयकों में से दो- एडवोकेट संशोधन विधेयक और सावधि प्रकाशनों का पंजीकरण और प्रेस विधेयक पहले राज्यसभा में पारित हो चुके हैं। अन्य दो विधेयक- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति व सेवा शर्तों का विधेयक और पोस्ट ऑफिस विधेयक राज्यसभा में पेश किए गए थे और स्थायी समिति को नहीं भेजे गए थे। ये चारों विधेयक इस सत्र में पारित कराए जाएंगे।

लेकिन सवाल है कि क्या सिर्फ इसी के लिए 18 से 22 सितंबर तक पांच दिन का विशेष सत्र बुलाया जा रहा है? ऐसा लग तो बिल्कुल नहीं रहा है। सरकार और सत्तारूढ़ दल के नेताओं की भाव-भंगिमा देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि इस विशेष सत्र में जरूर कुछ ऐसा होना है, जो राजनीतिक असर के लिहाज से बहुत बड़ा फैसला होगा। क्योंकि अगर संसदीय व्यवस्था की 75 साल की यात्रा पर विस्तार से संसद में चर्चा कराना ही सरकार का मूल मकसद होता तो यह काम पिछले साल होना चाहिए था, जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था। पिछले साल 15 अगस्त के आसपास इस पर चर्चा होनी चाहिए थी। पिछले साल नहीं हुई तो इस साल गणतंत्र दिवस के आसपास भी इस पर चर्चा कराई जा सकती थी।

इसी तरह जिन चार विधेयकों को पारित कराने की बात आधिकारिक तौर पर कही गई है उनमें से कोई भी विधेयक अति आवश्यक नहीं है। सब रूटीन के विधेयक हैं। जहां तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का मामला है तो उसमे भी सुप्रीम कोर्ट ने कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की है और अगले साल के पहले आयोग में कोई नियुक्ति नहीं होनी है। इसलिए सरकार शीतकालीन सत्र में भी उस विधेयक को पारित करा सकती थी। इसीलिए माना जा रहा है कि जो एजेंडा अभी पेश किया गया है, वह दिखावे के लिए है।

सरकार ने जब इस महीने की शुरूआत में संसद का विशेष सत्र बुलाने का ऐलान किया था तब विपक्ष ने सरकार से विशेष सत्र का एजेंडा बताने को कहा था। कांग्रेस की संसदीय नेता सोनिया गांधी ने इस सिलसिले में विशेष सत्र को लेकर स्थापित परंपराओं का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर विशेष सत्र का एजेंडा जानना चाहा था और कुछ सुझाव भी दिए थे लेकिन प्रधानमंत्री ने उस पत्र का जवाब खुद न देते हुए अपने संसदीय कार्य मंत्री जवाब दिलवाया था।

संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने अपने जवाब में कहा था कि सरकार हर बार सत्र से पहले सभी दलों की बैठक बुलाती है, जिसमें एजेंडा बताया जाता है। इस बार भी ऐसा ही किया जाएगा, यानी 17 सितंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाई जाएगी और उसमें एजेंडा बता दिया जाएगा। संसदीय कार्य मंत्री ने सोनिया गांधी को न सिर्फ टरकाने वाला जवाब दिया था बल्कि उन्होंने और भाजपा प्रवक्ताओं ने टीवी चैनलों पर सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बेहद तल्ख और अपमानजनक प्रतिक्रिया देते हुए आरोपों की झड़ी लगा दी थी।

बहरहाल अब सत्र से पांच दिन पहले लोकसभा सचिवालय की ओर से एक एजेंडा जारी किया गया है। इसका मकसद अगले चार-पांच दिन विपक्ष को चुप कराना है। हालांकि विपक्षी पार्टियों को भी अंदाजा है कि यह असली एजेंडा नहीं है। तो फिर सवाल है कि असली एजेंडा क्या है? सत्र से एक दिन पहले 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी अपने जन्मदिन के मौके पर नए संसद भवन पर झंडारोहण करेंगे। इसके बाद गणेश चतुर्थी के दिन यानी 19 सितंबर को नए संसद भवन में कामकाज शुरू होगा। ये दो काम ऐसे है, जिनका राजनीतिक मैसेज होगा।

वैसे तो भगवान गणेश को पूरे देश के हिंदू समाज में प्रथम पूजनीय माना जाता है। लेकिन महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की ऐतिहासिक परंपरा रही है। समूचे महाराष्ट्र में अभी से गणेशोत्सव के लिए पूजा पंडाल सजने लगे हैं। संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन यानी 19 अगस्त को दस दिवसीय गणेशोत्सव उत्सव की शुरुआत होगी और उस दिन नए संसद भवन मे कामकाज शुरू होगा। इस तरह सरकार ने नए संसद भवन में प्रवेश के लिए गणेश चतुर्थी के दिन का चयन करके महाराष्ट्र के लोगों को बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। पूरा महाराष्ट्र जिस समय गणेश पूजन शुरू करेगा उस समय संसद की नई इमारत में कामकाज शुरू होगा। इसका प्रचार आगे महाराष्ट्र में जोर-शोर से होगा।

सरकार और सत्तारूढ़ दल के हाव-भाव देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि विशेष सत्र का जो गोपनीय एजेंडा है, उसके तहत संविधान के अनुच्छेद 1 (1) में संशोधन भी किया जा सकता है यानी ‘इंडिया दैट इज भारत’ की जगह ‘भारत दैट इज इंडिया’ किया जा सकता है। यह संशोधन संभवतया सत्र के पहले दिन 18 सितंबर को पेश किया जा सकता, क्योंकि इसी दिन 1949 में डॉ. भीमराव आंबेडकर की ओर से संविधान सभा में पेश अनुच्छेद-1 के ड्राफ्ट को मंजूरी दी गई थी।

इसके अलावा सरकार की ओर से तीन-चार प्रस्ताव पेश किए जा सकते हैं। सरकार चाहेगी कि उन प्रस्तावों पर चर्चा हो लेकिन अगर चर्चा नहीं भी होती है तो उन्हें ध्वनिमत से पारित पास कराया जाएगा। पहला प्रस्ताव जी-20 के सफल आयोजन के लिए प्रधानमंत्री मोदी के अभिनंदन का हो सकता है। दूसरा प्रस्ताव चंद्रयान-3 की सफलता और सूर्ययान आदित्य एल-1 का हो सकता है। उसमें इसरो के वैज्ञानिकों के साथ-साथ मोदी और सरकार की सराहना की जाएगी। तीसरा प्रस्ताव 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प का हो सकता है। इस पर प्रधानमंत्री मोदी विस्तार से बोल सकते हैं इससे अगले चुनाव का एजेंडा तय हो सकता है। यानी कुल मिला कर यह मोदी के अभिनंदन का सत्र होगा जिसमें सरकार आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपने राजनीतिक लक्ष्य साधने का काम करेगी।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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