राम जन्मभूमि आंदोलन के अगुआ आडवाणी को अयोध्या समारोह का निमंत्रण नहीं, कोर्ट में पेशी का तोहफा मिला

नई दिल्ली। राम मंदिर आंदोलन के अगुआ, रणनीतिकार और उसके निर्माण के लिए देश में पहली रथयात्रा निकालने वाले वयोवृद्ध बीजेपी नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को 5 अगस्त को अयोध्या में आयोजित होने वाले शिला पूजन समारोह में भागीदारी का न्योता नहीं मिला है। गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं।

अभी जबकि कार्यक्रम के लिए चार दिन बाकी हैं आडवाणी को शनिवार तक किसी भी भी तरफ से किसी भी तरह का आमंत्रण पत्र नहीं मिला था। ऐसा उनसे जुड़े घनिष्ठ सूत्रों का कहना है। आप को बता दें कि 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गयी रथयात्रा ने ही इस पूरे मुद्दे को देश की राजनीति में स्थापित किया था। और इसके आगे बढ़ने के साथ ही बीजेपी देश की केंद्रीय सत्ता की सीढ़ियां भी चढ़ती गयी।

दिलचस्प बात यह है कि उनकी भागीदारी के मसले पर पार्टी या फिर सरकार की तरफ से भी कुछ नहीं बोला गया है। और उससे भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि अभी जब राम मंदिर के शिलान्यास और उसके पूजन की तैयारियां हो रही हैं तब आडवाणी को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई कोर्ट का सामना करना पड़ रहा है। 

यह महज संयोग है या फिर इसके पीछे कोई साजिश आडवाणी को पिछले हफ्ते तकरीबन साढ़े चार घंटे कोर्ट के सामने बैठकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अपना बयान दर्ज कराना पड़ा। इस मामले पर 30 अगस्त तक फैसला आना है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई कोर्ट को इसे तब तक निपटा देने का निर्देश दिया है। इस मामले में आडवाणी के साथ मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह दूसरे आरोपी हैं। आडवाणी के बाद जोशी का भी कोर्ट में बयान दर्ज हुआ था।

रामजन्मभूमि मामले में आडवाणी के बाद दूसरे सबसे प्रमुख चेहरे रहे जोशी को भी 5 अगस्त के कार्यक्रम का न्योता नहीं मिला है। आडवाणी के वकील के मुताबिक पूछताछ के दौरान 4.30 घंटे में आडवाणी से 1000 से ज्यादा सवालों के जवाब मांगे गए। जिसमें उन्होंने सभी आरोपों को खारिज कर दिया।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भूपेंद्र यादव ने आडवाणी की अदालत में पेशी से एक दिन पहले आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की थी। बताया जाता है कि उनमें से किसी ने उनके साथ 5 अगस्त के आयोध्या कार्यक्रम का जिक्र तक नहीं किया। यह दौरा शिष्टाचार दौरा था। जिसमें कोर्ट में पेशी से पहले बुजुर्ग नेता के साथ एकजुटता जाहिर करने की भावना शामिल थी। 

ऐसे में जबकि कार्यक्रम का फैसला एक महीना पहले ले लिया गया था उसमें अगर आडवाणी और जोशी जैसे बुजुर्ग नेताओं को आमंत्रित किया जाना होता तो इतनी देर नहीं की जाती। और अब जबकि आखिरी दौर चल रहा है तो शायद ही दोनों को आमंत्रित किया जाए।

हालांकि कोरोना के चलते जरूर यह बात कही जा सकती है कि दोनों का भाग ले पाना मुश्किल है। आमंत्रण आता तो भी शायद कुछ ऐसा ही होता। लेकिन आमंत्रण न आना ही अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। यह न केवल आडवाणी और जोशी के लिए अपमानजनक है बल्कि पूरे आंदोलन के अगुआ और उसके कर्ताधर्ताओं के प्रति बीजेपी नेतृत्व का यह रुख किसी विडंबना से कम नहीं है।

इस पूरे मसले पर बीजेपी ने बिल्कुल चुप्पी साध रखी है। फोन पर दिए जाने वाले औपचारिक निमंत्रण के कोआर्डिनेशन का काम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय देख रहे हैं। 

(टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट से कुछ इनपुट लिए गए हैं।)

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