अयोध्या में धार्मिक SEZ और हिंदू पुनर्जागरण के पीछे छिपी है बड़े पैमाने पर जमीन की लूट की कहानी

‘लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है’। राम मंदिर की चकाचौंध देख राहत इंदौरी का यह शेयर बेसाख्ता याद आ रहा है। 

राम नगरी की चकाचौंध में, राम लला की तरह अयोध्यावासी भी सिर्फ सजावट की वस्तु बन कर गए हैं। उनकी सहमति कोई मायने नहीं रखती। जब-जब गोदी मीडिया का माइक उनके सामने आता है, उन्हें मुस्कुरा कर जय श्री राम बोलना है। इस इवेंट को बनाने और इस उत्सव के माहौल को बनाये रखने में इन चैनल्स का बहुत बड़ा योगदान है।

पूरा शहर ही हनुमान वाले केसरी धर्म ध्वजा से पटा पड़ा है। असल में ये सही प्रतीक है। मोदी जी को हिन्दू ह्रदय सम्राट के तौर पर स्थापित करने में हम सब हनुमान ही तो बन गए हैं। न ही सिर्फ हम, स्वयं राम जी भी वही हो गए हैं। किसी-किसी पोस्टर में तो मोदी जी ही राम से बड़े नजर आते हैं, गोया मोदी जी भगवान राम को आत्मसात कर लिए हैं। 

इस जगमगाहट के पीछे विहिप-आरएसएस द्वारा की गई बहुत बड़ी ज़मीन की लूट की कहानी छिपी हुई है। 

सड़क चौड़ीकरण और अयोध्या के नवीनीकरण के नाम पर करीब 4000 घरों और दुकानों को उजाड़ा जा चुका है। राम नाम और सरकार के भय के चलते स्थानीय निवासियों ने अपनी ज़मीन छोड़ दी। विस्थापन की ऐसी सैकड़ों कहानियां आपको हर तरफ मिल जाएंगी।

हमें आदिवासियों के घर उजड़ने एवं उनके विस्थापन की कहानियां सुनने की तो इतनी आदत पड़ चुकी है कि अब गरीब हिंदुओं के घर छिनने पर भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। जिनके घर उजड़ गए हैं, उनकी आह भी दब जाती है। वे अपनी आवाज़ भी नहीं उठा सकते, क्योंकि ऐसा किया तो उन्हें भी हिन्दू विरोधी करार दे दिया जायेगा। गोदी मीडिया आपको दिखा रही है कि राम की नगरी में सब कुशल-मंगल है, लेकिन जो बेघर हो चुके हैं, उनका दर्द इस हर्षोल्लास में पूरी तरह से गुम हो चुका है। 

विहिप तो राम मंदिर के नाम पर कई वर्षो से चंदा इकट्ठा कर रही थी, और करोड़ों की सम्पत्ति की मालिक बन गई थी। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उन्होंने धड़ल्ले से ज़मीनें खरीदीं और जिला प्रशासन उनके एजेंट की भूमिका में नजर आया। अयोध्या के जिलाधीश तो खुद राम मंदिर ट्रस्ट के मेंबर है। तो ऐसे में जब सइयां भये कोतवाल तो भला अब डर किसका रहा।

कई घर ज़मींदोज़ कर दिए गये और संदिग्ध तरीके से जमीनों को हड़पा गया। लोगों को औने-पौने दामों पर अपनी जमीनें बेचनी पड़ीं। पूरी अयोध्या को कवर करने के लिए, 14 कोसी परिक्रमा, 5 कोसी परिक्रमा और 84 कोसी परिक्रमा का निर्माण कार्य चालू है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा न सिर्फ 2.77 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि को सुपुर्द कर दिया गया, बल्कि हालत यह है कि पूरे शहर को ही विहिप एवं आरएसएस द्वारा अधिग्रहीत कर लिया गया है। 

कल ही scroll.in की पड़ताल से पता चला है कि कैसे इस हिन्दू पुनर्जागरण के पीछे छिपी है स्थानीय भाजपा की धार्मिक SEZ के नाम पर बड़े पैमाने पर ज़मीन की लूट की कहानी।

धार्मिक और कानूनी तरीके से जमीन हड़प

खबर है कि नेताओं और अडानी के बीच ज़मीन की डील हुई है। एक कंपनी जो भाजपा से जुड़ी है, के द्वारा सरयू नदी के पास की पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील ज़मीन अडानी को भारी मुनाफ़े में बेच दी गई है।

इसी प्रकार 2021 में भी newslaundry.com द्वारा एक खुलासा किया गया था, जिसमें भाजपा के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय के भतीजे द्वारा 890 वर्ग मीटर की सरकारी ज़मीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को ढाई करोड़ में बेच दी थी। ऐसी कई कहानियां अयोध्या में दबी हुई हैं, जिनमें से कुछ सामने आई हैं, कई दफन हैं। 

रामराज में गरीबों से अमींरों को ज़मीन और सम्पत्ति का ट्रांसफर 

जिला अधिकारियों के हिसाब से देखें तो सारी जमीनें, नजूल ज़मीन या सरकारी भूमि है। ऐसे में सरकार का जब मन करेगा वो ज़मीन ले सकती है। लेकिन आज़ादी के इतने साल बाद भी इस ज़मीन का कोई वर्गीकरण नहीं किया गया है। नजूल भूमि, पर्चा शुदा भूमि और पट्टा शुदा भूमि में वर्गीकरण न होने के कारण छोटे व्यापारियों को औने-पौने दाम पर मुआवजा देकर बलि का बकरा बनाया गया है।

समाजवादी पार्टी ने तो ये भी आरोप लगाया है कि 2017 में सूबे में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से नजूल भूमि का फ्री होल्ड केवल बड़े और प्रभावशाली लोगों तक ही सीमित कर दिया गया है। 

दूसरी तरफ देखें तो, जिनके घर कई पुश्तों से अयोध्या में आबाद थे, लेकिन पट्टा न होने के कारण उनके घरों को ढहा दिया गया है, और भूमि अधिग्रहण के स्थान पर सिर्फ मुआवज़ा दिया गया। स्थानीय लोगों की मानें तो इसमें भी जाति-धर्म देखकर मनमाना मुआवज़ा दिया गया है। ब्राह्मणों को पूरा मुआवज़ा मिला है, लेकिन बाकी जाति वालों को अभी भी मुआवज़े के लिए धक्के खाने पड़ रहे हैं।

इस बारे में प्रोफेसर अनिल सिंह बताते हैं, “ज़मींदारी कानून शहरों में लागू नहीं हुआ था। सरकार ने ज़मीन से लोगों को बेदखल कर दिया और भूस्वामी को जमीन का पूरा मुआवज़ा दे दिया। भूस्वामियों को खुद कोर्ट के चक्कर काटने पड़ते, ऐसे में जिला प्रशासन ने उनका काम भी आसान कर दिया सीधे घर ढहा कर। वैसे कानून के हिसाब से ज़मीन पर रहने वालों का उस पर मालिकाना हक़ पूरा बनता है। लेकिन सब कानूनों को ताक पर रखकर यह सब धांधली की गई है।”

इसी तरह 3 साल पहले सरकार किसानों की ज़मीन लेनी चाही तो किसानों ने आंदोलन छेड़ दिया। कइयों को जेल में डाल दिया गया और दर्जनों केस दर्ज़ कर दिए। इस नवीनीकरण की होड़ में कई छोटे मंदिर भी ढहा दिए गये थे। इन सबकी वजह से पुजारी लोग भी खुश नहीं हैं लेकिन सभी को या तो पैसे या पुलिस का डर दिखा कर चुप करा दिया गया। जो लोग राजीनामा करने में हिचक रहे थे, उनको आधी रात में थाने में बुलाकर जबरन कागजों पर साइन करवाया गया।

इस संदर्भ में एक सामाजिक शिक्षक, आफ़ाक़ उल्लाह का बयान काबिलेगौर है। वे बताते हैं, ‘अयोध्या में एक कहावत कही जा रही है- पहले जब भगवान राम तिरपाल में रहते थे तो हम घरों में रहते थे, अब भगवान राम का मंदिर बन रहा है तो हम तिरपाल में आ गए हैं। तो लोग पीड़ा में तो हैं, क्योंकि मकान-दुकान दोनों हाथ से जाता रहा। इसके बावजूद कुछ कह नहीं पा रहे हैं।’

आफ़ाक का घर भी 14 कोस परिक्रमा पथ की ज़द में है। उनके घर के आगे का हिस्सा ढहा दिया गया है। वे इस बात से दुखी हैं, लेकिन बेबस हैं। मुसलमानों को जो चीज ज्यादा सता रही है, वह है अजीब सा भय और बेचैनी।

ये हिन्दुओं का मंदिर नहीं, विहिप-आरएसएस प्रोजेक्ट है 

आफ़ाक की उम्र 40 वर्ष है। उन्हें बाबरी मस्जिद तोड़े जाने की ज़्यादा याद नहीं है, लेकिन 30 साल में जो बदलाव आया है वो सामने दिखता है। 

“लोग पहले से ज़्यादा हिन्दू-मुसलमान हो गए हैं। आम तौर पर जो चीजें ज़बान पर नहीं आती थीं अब आ जाती हैं। आप कहीं बैठे हो, महफ़िल हो और किसी को गुस्सा आ जाये तो बोल देंगे कटु.. बैठा है। पहले सोचते थे, कहते नहीं थे, अब बेझिझक बोल देते हैं। पहले सोचते थे कि हमारे दोस्त लोग मुसलमान हैं, हम कैसा स्टेटस या dp लगायें कि उन्हें भी बुरा न लगे। अब जिस तरह से लोग स्टेटस लगा रहे हैं, आप तो देख ही रही होंगी। अब चाहे वो समझदारी में या नासमझी में लगा रहे हैं, इस बारे में सोचते नहीं हैं। जो मन में आ रहा है लगा दे रहे हैं” आफाक ने मायूस मन से कहा। 

प्रो. अनिल भी आफ़ाक की बात से सहमत हैं। वो भी अयोध्या के पास के एक गांव से आते हैं। बाबरी मस्जिद टूटने के समय वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मास्टर्स की पढ़ाई कर रहे थे और एक दिन पहले ही उस जगह पर गए थे। 

अनिल बताते हैं, “मस्जिद टूटने के समय भी ऐसा माहौल नहीं था। 1992 में मस्जिद गिराने के लिए बाहर से लोग आये थे। उस समय का हिंदुत्व इतना हिंसक नहीं था। वो एक चरम पर पहुंचा और मस्जिद गिरा दी गई। उस समय भी स्थानीय लोगों में भाईचारा कायम रहा, आपस में गहरी समझ थी। उनको मालूम था कि ये सब राजनीति के लिए हो रहा है। उसका परिणाम ये भी हुआ की भाजपा चुनाव हार गई। लेकिन आज वो सब नष्ट हो गया है। इस पीढ़ी ने सिर्फ आरएसएस के ही आंदोलन देखे हैं। इनको नेहरू-गांधी का भारत पता ही नहीं है।

इतिहास से कुछ लेना-देना ही नहीं है। वो तो कहते हैं- ये हमारा मंदिर है, अयोध्या में नहीं तो और कहां बनेगा? उन्हें न्याय अन्याय, सत्य-असत्य का कोई अहसास नहीं है। अयोध्या तो गंगा-जमुनी तहज़ीब और भारत की समरसता का इतना बड़ा उदहारण था, यहां हिन्दू-मुस्लिम एक ही मोहल्ले में बिना किसी मसले के रहते थे।

लेकिन 1992 के बाद जिस तरह मुसलमानों का अलगाव हुआ, उनको अन्य की तरह देखा जाने लगा और अलग वर्गीकरण किया जाने लगा। मुसलमान तो खुश थे कि मंदिर बना लो। फैज़़ाबाद के मुसलमान तो बहुत पहले ही राम मंदिर के लिए राज़ी थे, लेकिन आरएसएस ने उस समय इसे बनाने नहीं दिया। राम मंदिर को उन्हें हिन्दू नवजागरण के रूप में इस्तेमाल करना था। ये मंदिर हिन्दुओं का नहीं है, ये विहिप-आरएसएस प्रोजेक्ट है।” 

प्रो अनिल, शीतला सिंह की मशहूर किताब – “अयोध्या: राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद का सच” का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, “वो बेहद महत्वपूर्ण किताब है। शीतला जी ने उसमें डिटेल में लिखा है कि मुसलमान समुदाय ने उस दौरान राम मंदिर बनाने की पहल की थी, लेकिन आरएसएस ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा नहीं होने दिया।” 

आफ़ाक़ बताते हैं- “पहले फैज़ाबाद और अयोध्या दो अलग-अलग नगर पालिका हुआ करती थी। दोनों रेलवे स्टेशन के बीच में सिर्फ 12km का फासला है। फैज़ाबाद बड़ा स्टेशन हुआ करता था, लेकिन योगी जी के आने के बाद उन्होंने सब एक कर दिया। फैज़ाबाद अब अयोध्या कैंट बन गया है, और अयोध्या स्टेशन अयोध्या धाम। 

बदलता समय और स्थान 

पुराने दिनों को याद करते हुए आफ़ाक़ कहते हैं, “नदी किनारे बना हर शहर सुन्दर होता है, अयोध्या भी एक सुन्दर शहर है। जब मैं कॉलेज में था तो अक्सर अयोध्या जाना होता था। लेकिन अब वो पुरानी सुकून भरी अयोध्या नहीं रही।। अब वो टूरिस्ट प्लेस बन चुकी है। सब पुराना तोड़ दिया जा रहा है, सब कामर्शियल हो गया है।” 

आफ़ाक़ पिछले 15 दिन से रोज़ 7-8 अखबारों की कटिंग जोड़ कर एक कोलाज बना रहे हैं ताकि आने वाले समय में कोई विद्यार्थी या पत्रकार आए तो वो खबरों के माध्यम से जो खबर मिल रही है स्थानीय स्तर पर दे सकें। पिछले दस दिन से 8 में से 6 पेज पर राम मंदिर सम्बंधित खबरें ही आ रही हैं। 

मंदिर निर्माण से अयोध्या के लोगों के लिए ही रोज़गार बढ़ेगा ऐसा पूछने पर आफ़ाक़ कहते हैं, “ऐसे संगठित रूप से पर्यटन कंपनी, एजेंसी बड़े-बड़े होटल कौन बना सकता है? स्थानीय लोगों के पास तो इतना पैसा नहीं है। सब बाहर के लोग ही ज़मीनें खरीद रहे हैं, उनको ही सब बनाने का लाइसेंस दिया जा रहा है।” 

(स्वाति कृष्णा एक सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं।)

स्वाति कृष्णा

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