सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा- उसने क्यों नहीं रखी ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम पर नज़र?

उच्चतम न्यायालय ने सुदर्शन न्यूज के बिंदास बोल कार्यक्रम के विवादित यूपीएससी जिहाद एपिसोड को देखने से सोमवार को इनकार कर दिया। साथ ही केंद्र सरकार से पूछा कि क्या कोई ऐसा कानून है, जिसके तहत सरकार ऐसे कार्यक्रमों में हस्तक्षेप कर सकती है?

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस  इंदु मल्होत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि आज कोई ऐसा कार्यक्रम है जो आपत्तिजनक नहीं है? क्या कानून के अनुसार सरकार इसमें हस्तक्षेप कर सकती है? रोजाना लोगों की आलोचना होती है, निंदा होती है और लोगों की छवि खराब की जाती है? पीठ ने मेहता से पूछा कि क्या केंद्र सरकार ने चार एपिसोड के प्रसारण की अनुमति देने के बाद यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम पर नजर रखी? पीठ ने सुदर्शन न्यूज के हलफनामे पर आपत्ति जताई।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वह जानते हैं कि आपातकाल के दौरान क्या हुआ था। उन्होंने कहा कि हम सेंसर बोर्ड नहीं हैं जो कि सेंशरशिप करें। जब हम मीडिया का सम्मान करते हैं तो उनका भी दायित्व है कि किसी खास समुदाय को निशाना न बनाया जाए।

सुदर्शन टीवी का ‘बोल बिंदास’ शो मुस्लिमों और हिंदुओं के बीच की एकता को तोड़ने का एक प्रयास था। सोमवार को एडवोकेट शादान फरासत ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील पेश की। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा और केएम जोसेफ की बेंच के समक्ष जामिया मिलिया इस्लामिया के तीन छात्रों की ओर से वह पेश हुए थे। फरासत ने कहा, “यह सुनिश्चित करना राज्य की सकारात्मक ज़िम्मेदारी है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 से निकले अधिकारों का एक नागरिक के ‌लिए उल्लंघन न हो। अगर उनका उल्लंघन किया जाता है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट चुपचाप देखता रहेगा?

शादान फरासत ने तर्क दिया कि हेट स्पीच कानून मौजूदा मामले में लागू होता है। शो की भाषा और भंगिमा के कारण शेष कड़ियों की टेलीकास्टिंग पर रोक लगाने के लिए ठोस मामला बनाता है। उन्होंने शो की स्क्रिप्ट को पढ़ा और कहा कि वे यहूदी-विरोधी विषयों जैसे हैं, जो हेट स्पीच का क्लासिक उदाहरण हैं और सभी न्यायालयों में निषिद्ध है। उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का प्रत्यक्ष उल्‍लंघन था। उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट है कि चव्हाणके ने कैसे एक समुदाय के खिलाफ हेट स्पीच दी है।

इसके बाद फरासत ने तर्क दिया कि कैसे शो ने संवैधानिक सिद्धांतों पर हमला किया। रोजगार के समानता के अध‌िकार का पूरी तरह उल्लंघन किया गया। यह प्रत्यक्ष हमला है जो शो में किया गया है, कार्यक्रम का उद्देश्य नागरिकों के एक समूह की ऐसी छवि बनाना है जो वे देश में सार्वजनिक जीवन के योग्य नहीं हैं और यह गरिमा पर प्रहार हैं तथा हर व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा राज्य पर सकारात्मक जिम्मेदारी है।

इस बीच सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘यूपीएससी जिहाद’ के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में विवाद के केंद्र जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया ने इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हुए एक आवेदन दायर कर किया है। आवेदन में कहा गया है कि चैनल इंटरनेट पर उपलब्ध दस्तावेजों में से तथ्यों को अपनी सुविधानुसार चुनकर इनसे निराधार निष्कर्ष निकाल रहा है। इस आवेदन में जिहाद की अवधारणा को स्पष्ट किया गया है और सुदर्शन टीवी के निराधारा आरोपों का खंडन करते हुए उसकी नफरत फैलाने वाली पृष्ठभूमि को उजागर किया गया है। जकात फाउण्डेशन ने कहा है कि सुदर्शन न्यूज को इस गैर सरकारी संगठन के खिलाफ अपने सारे दावों के लिए ठोस सबूत देने होंगे।

आवेदन में कहा गया है कि चैनल ने यह मान लिया है कि जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया के लिए दानदाताओं का संबंध आतंकवादी गतिविधियों से है। आवेदन में कहा गया है कि चैनल ने और कुछ नहीं बल्कि मुस्लिम समुदाय के खिलाफ गहरी जड़ें जमाए अपनी क्लांति को ही जाहिर किया है। आवेदन में कहा गया है कि पहले तो चैनल द्वारा 28 अगस्त को दिखाए गए प्रोमो में जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया का नाम ही नहीं लिया गया। इसके बजाय प्रोमो में कह कर लोगों को उकसाया गया कि जरा सोचिए अगर जामिया के जिहादी आपके जिले के कलेक्टर या मंत्रियों के सचिव बनते हैं तो क्या होगा। यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति ने कहा है कि यूपीएससी में इस साल चुने गए जामिया के 30 छात्रों में से 14 हिंदू और 16 मुस्लिम हैं।

सुदर्शन टीवी द्वारा जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया की टिप्पणी प्राप्त करने के प्रयासों के बारे में संगठन इसे अधमने तरीके से किया गया प्रयास बताते हैं और कहते हैं कि चैनल ने जब इंटरव्यू के लिए संपर्क किया तो 26 अगस्त को उससे ईमेल के माध्यम से प्रश्न मांगे गए थे, जिसका कोई जवाब नहीं मिला। दूसरी बात, आवेदन में कहा गया है कि 12 सितंबर को चैनल ने शाम आठ बजे होने वाले कार्यक्रम के लिए उसी दिन शाम शाम छह बजे भेजे गए ईमेल पर उनसे प्रतिक्रिया मांगी थी।

आवेदन में यह भी कहा गया है कि डिजिटल न्यूज प्लेटफार्म ‘आल्ट न्यूज’ तथ्यों की परख करने के लिए जानी जाती है और उसने उन घटनाओं की सूची तैयार की है जब सुदर्शन न्यूज ने देश के भीतर सांप्रदायिक विघटन पैदा करने के प्रयास किए हैं। सुदर्शन न्यूज और खतरनाक, सांप्रदायिक विघटनकारी गलत सूचनाओं का इतिहास, अक्टूबर 2019 के लिंक के माध्यम से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

न्यूज चैनल लगातार एक समुदाय विशेष के खिलाफ सक्रिय है। इस चैनल ने नौकरी का विज्ञापन निकाला था, जिसमें यह शर्त थी कि मुस्लिम आवेदन नहीं कर सकते। इस तरह की गतिविधियां निश्चित ही इस तथ्य को दर्शाता है कि चैनल के मन में एक समुदाय के प्रति कितनी नफरत है और उसकी सोच देश के सामाजिक तानेबाने के लिए कितनी खतरनाक है। आवेदन में यह भी कहा गया है कि सुदर्शन टीवी चैनल के संपादक सुरेश चव्हाणके को धार्मिक भावनाओं को आहत करने और विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्यता पैदा करने के आरोप में अप्रैल 2017 में लखनऊ हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी भी नेशनल ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन की ओर से पेश हुए और हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा। वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ज़कात फाउंडेशन इंडिया के लिए पेश हुए और बाद में अपना पक्ष रखने की मांग की। वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप चौधरी, महेश जेठमलानी और अधिवक्ता गौतम भाटिया और शाहरुख आलम भी इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए उपस्थित हुए। अब इस मामले को 23 सितंबर को दोपहर दो बजे सुनवाई होगी।

दरअसल बिंदास बोल कार्यक्रम के प्रोमो में दावा किया गया है कि सरकारी सेवाओं में मुस्लिमों की घुसपैठ का बड़ा खुलासा किया जाएगा। पिछली बार उच्चतम न्यायालय ने कार्यक्रम को लेकर की शिकायत पर सुनवाई करने के दौरान कहा था कि चैनल खबर दिखाने को अधिकृत है, लेकिन पूरे समुदाय की छवि नहीं बिगाड़ सकता और इस तरह के कार्यक्रम कर उन्हें अलग-थलग नहीं कर सकता।

गौरतलब है कि 15 सितंबर को उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक चैनल द्वारा बिंदास बोल के एपिसोड का प्रसारण करने पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने कहा कि प्रथमदृष्टया लगता है कि कार्यक्रम के प्रसारण का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को बदनाम करना है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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