“श्रमिक ट्रेनों को मजदूरों की अर्थी में बदलने वाले रेलमंत्री के खिलाफ दर्ज हो हत्या का मुकदमा”

लखनऊ/पटना। ट्रेनों में लगातार हो रही यात्रियों की मौत पर देश भर में रोष पैदा हो गया है। इंसानों की जगह घरों में लाशें पहुंचने से लोगों के गुस्से का पारा परवान पर है। रिहाई मंच ने तो श्रमिकों ट्रेनों को मजदूरों की अर्थी करार देते हुए रेलवे मंत्री पीयूष गोयल को उसके लिए जिम्मेदार ठहराया है और उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाने की मांग की है। 

साथ ही संगठन ने मृतक प्रवासी मजदूरों के प्रकरण पर एक दल का गठन किया है जो मृतकों के परिजनों से मिल कर हर संभव मदद करने की कोशिश करेगा।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि कहीं के लिए चली ट्रेनें कहीं चली जा रही हैं और ट्रेनों में भूखे प्यासे मजदूर लाश में तब्दील होते जा रहे हैं। यह लापरवाही नहीं अपराध है। और इसके लिए रेल मंत्रालय दोषी है। उन्होंने कहा कि जिम्मेदार लोगों पर तत्काल हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। आजमगढ़, जौनपुर समेत पूर्वांचल के मजदूरों कि लाशें बताती हैं कि पैदल चलने वाले न जाने कितने मजदूर बहन-भाई मौत का शिकार हो गए होंगे जिनके बारे में हमें पता ही नहीं है। मीडिया के सूत्रों से तीन सौ से अधिक मजदूरों की मौतों की सूचनाएं आ रही हैं। 

श्रमिक स्पेशल से उतरे शव के साथ परिजन।

पहले मजदूरों को महानगरों में भूख से तड़पने को विवश किया गया और फिर सड़कों पर पैदल चला-चलाकार जिंदा लाश बना दिया गया। सरकार लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को न सिर्फ नेस्तनाबूद करने पर आमादा है बल्कि देश को बचाने वाले मजदूर-किसानों को भी खत्म करने पर आमादा है। कोरोना के नाम पर सरकारी कर्मचारी से लेकर पुलिस आम जनता पर ना सिर्फ हमलावर है बल्कि जीवन से जुड़े हक-हुकूक को रौंद रही है। उनके खिलाफ किसी प्रकार कि कार्रवाई न होने का नतीजा है कि किसी चौराहे पर तो कहीं किसी बोगी में मजदूर की लाश मिल रही है।

सीपीआई (एमएल) ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। पार्टी के बिहार राज्य सचवि कुणाल ने 10-10 दिन लेट हो रही ट्रेनों, भीषण गर्मी और भोजन-पानी के अभाव में बहुत ही दर्दनाक तरीके से प्रवासी मजदूरों की लगातार हो रही मौत पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया है। पार्टी के राज्य सचिव कॉमरेड कुणाल ने कहा कि मोदी सरकार ने तो हद ही कर दी है। ऐसा लगता है कि जानबूझकर ऐसी परिस्थितियां निर्मित की जा रही हैं जिसमें मरने के सिवा मजदूरों के पास और कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा है। मानवता के खिलाफ किये जा रहे इस महा अपराध के लिए देश मोदी को कभी माफ़ नहीं करेगा। ये मौत नहीं हत्याए हैं।

40-40 ट्रेनों का दिशा भटक जाना कोई संयोग नहीं हो सकता। यह या तो एक बड़ी साजिश है अथवा अव्वल दर्जे की लापरवाही का नतीजा है। शारीरिक दूरी के सारे सिद्धान्त धरे के धरे रह गए हैं। मजदूर भेड़-बकरियों की तरह बिना किसी सुविधा के ट्रेनों में ठूंस दिए गए हैं जबकि सरकार ने भाड़ा से अधिक पैसा वसूल किया है। पैदल चलने से भी बड़ा कष्ट प्रवासी मजदूर झेल रहे हैं और लगातार हर जगह से उनकी मौत की दुखद खबरें आ रही हैं। 9-10 दिन 45-46 डिग्री तापमान पर बिना भोजन, पानी के मजदूर कैसे जिंदा रह सकते हैं? 

मोदी की तरह नीतीश कुमार भी अपनी कोई जवाबदेही नहीं निभा रहे हैं और सिर्फ बयानबाजी में लगे हुए हैं। मोदी-नीतीश की यह आपराधिक चुपी देश की जनता देख और समझ रही है.

भाकपा-माले के कार्यकर्ता जहाँ भी सम्भव हो पा रहा है, मजदूरों के लिए राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं। भाकपा-माले की देश और बिहार की जनता से अपील है कि जब हमारी सरकारों ने अपने ही देश के नागरिकों के एक बड़े हिस्से को मरने-खपने के लिए छोड़ दिया है, वे आगे आये और यथासंभव मज़दूरों को राहत पहुंचाएं।

इस बीच, आज बसई-महाराष्ट्र में अतिम वक्त पर ट्रेन निरस्त कर दी गर्ई, इसी तरह की स्थिति पूरे महाराष्ट्र की है। फ्लाइटों के निरस्त होने में यही हाल दिखा। कमोवेश अन्य राज्यों में भी इसी तरह के हालात् हैं। मजदूरों और नागरिकों की परेशानियां कम नहीं हो रही है। मुंबई इस वक्त सबसे ज्यादा संक्रमण प्रभावित क्षेत्र है। वहां से प्रवासी मजदूरों की वापसी में जितना देरी होगी, अन्य परेशानियों के अलावा मजदूरों में भी संक्रमण का खतरा भी उतना ही बढ़ेगा। लेकिन मोदी सरकार के मंत्रियों को मजदूरों की मदद करने की जगह महाराष्ट्र सरकार को घेरने में ज्यादा दिलचस्पी है। रेल मंत्री ऐसा बयान दे रहे हैं मानो उनकी सरकार रेल मुहैया करा रही है लेकिन महाराष्ट्र सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रही है। जब मुंबई संक्रमण की जद में है, वहां सरकार के खिलाफ भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री धरना-प्रदर्शन लगे हुए हैं। मजदूरों और नागरिकों की जिंदगी इसी राजनीतिक दांव-पेंच की शिकार हो रही है। इसी बीच में सुप्रीम कोर्ट ने मजदूर

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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