योगी के शासन काल में उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास के दावों का सच

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का दावा है कि उसके शासन काल में अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी है, और उत्तर प्रदेश को देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। दावा यह भी है की उत्तर प्रदेश की जनता की प्रति व्यक्ति आय उनके कार्यकाल में दुगनी हो गई है। इसके साथ यह भी दावा किया जा रहा है कि योगी अगले पांच साल में यूपी को देश की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना देंगे। आइए इन दावों की पड़ताल करें।

तो पहले ‘ग्रोथ’ का जायजा लेते हैं। योगी शासन से पूर्व के पांच वर्षों में ग्रोथ रेट औसतन 6.95 प्रतिशत थी। योगी शासन के चार वर्षों में यह औसत रूप से 2.0 प्रतिशत रही। योगी शासन में सन 2017-18, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में यह क्रमशः 4.57, 6.26, 3.81 एवं -6.36 प्रतिशत थी। अतः योगी सरकार में अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, आंकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते ।

आइए, अब इस सच की जांच की जाय कि योगी कार्यकाल में यूपी देश कि दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है । सरकार के आंकड़े ही उनका मुंह चिढ़ाते लगते हैं। आंकड़े बताते हैं कि यूपी तो 2004-05  में  ही देश की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था। उस समय तो योगी शासन भी नहीं था। 2004-05 से लेकर 2019-20 के बीच में महाराष्ट्र देश कि सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। वस्तुतः इधर महाराष्ट्र के पश्चात तमिलनाडु दूसरे और यूपी तीसरे स्थान पर जाता दिखाई  देता है। अतः, योगी जी का यह दावा भ्रामक ही है। अब एक संकल्प की जांच करने की भी आवश्यकता है,  जिसे केंद्रीय गृह मंत्री  ने व्यक्त किया था कि योगी जी को पांच साल और दीजिये और वे यूपी को देश कि पहली अर्थव्यवस्था बना देंगे। इस सन्दर्भ में स्मरण रखने कि जरूरत है कि महाराष्ट्र और यूपी की अर्थव्यवस्थाओं में आज भी लगभग पौने दो गुने का अंतर है। अतः यूपी, महाराष्ट्र से आगे निकल जायेगा, यह कहीं से भी संभव होता नहीं दिखता   है। यह तभी संभव है जब अगले दस वर्षों तक यूपी बेहद तेजी से विकास करे और दूसरी तरफ महाराष्ट्र के विकास का पहिया रुक जाए।

मुख्यमंत्री योगी ने हाल में यह भी कहा है कि यूपी कि प्रति-व्यक्ति आय उनके शासन में  दुगनी हो गई है। आंकड़े इस दावे  कि पुष्टि नहीं करते हैं । आंकड़े बताते हैं कि 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर 2016-17  में यूपी की प्रति व्यक्ति आय 46,504 रुपये थी, जो कि बढ़कर 2020-21 में 47,271 रुपये हो गई।  प्रतिव्यक्ति आय बढ़ी तो, लेकिन  दुगनी नहीं हुई । प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है, जनसंख्या के घटने से या जीएसडीपी के तेजी से बढ़ने से।

किन्तु यूपी में दोनों ही सच होता हुआ दिखाई नहीं देता है। जीएसडीपी भी कैसे बढ़ता, क्योंकि बजट  विश्लेषण के 2021-22 के आंकड़े बताते हैं कि 2011-12 के स्थिर मूल्यों  पर जीएसडीपी में 2017-18 से लेकर 2019-20 के बीच कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों के ग्रोथ में कमी आई है। मैन्युफैक्चरिंग में भी 2017-20 के बीच संकुचन की स्थिति (-3.3%) थी जबकि 2012-17 के बीच इसमें 14.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। स्पष्ट कि उद्योग के भीतर आने वाले इस क्षेत्र में भी गिरावट की स्थिति थी, जिसे ‘ग्रोथ का मुख्य इंजन’ मानते हैं और जो  रोजगार भी देता है। जीएसडीपी को प्रभावित करने वाले  कुछ व्यय को भी देखा जाय। शिक्षा,कृषि और ग्रामीण विकास पर खर्च योगी जी के कार्यकाल में घटता हुआ दिखाई देता है। यह एक चिंतनीय स्थिति को दर्शाता है। कैसे ग्रोथ तेजी से होगा, प्रति व्यक्ति आय दुगनी हो जाएगी,  जबकि अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले इन क्षेत्रों पर व्यय ही घट गया है ।

प्रश्न यह भी  उठता है कि यदि योगी के शासन काल में ‘ग्रोथ’ तेजी से हुआ और प्रतिव्यक्ति आय दुगनी हो गई, तो  उत्तर प्रदेश की  लगभग 22 करोड़ जनसंख्या में से 14.7 करोड़ जनसख्या को ‘पीएमजीकेएवाई ’ के अंतर्गत ‘अन्न’ क्यों बांटना पड़ रहा है? यह योजना तो भूख से लड़ रही जनसंख्या को एक तरह से जिन्दा रखने के लिए चलाई जा रही है। साफ है कि यूपी में घोर गरीबी है। ‘बहु आयामी गरीबी’ के सभी आयामों में उत्तर प्रदेश क्यों देश में सबसे दयनीय स्थिति में है? इसमें उत्तर प्रदेश की लगभग 38 प्रतिशत जनसंख्या क्यों शामिल है? नौजवानों का एक बड़ा प्रतिशत बेरोजगारी से क्यों ग्रसित है? सन 2020-21 में प्रति एक हजार जीवित पैदा होने वाले शिशुओं में से 50 मर गए। यदि स्वास्थ पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है तो शिशु मृत्युदर इतनी ऊंची क्यों है? खून की कमी से जूझ रहे बच्चों (6 से 59 माह तक) का प्रतिशत जो 2015-16 में 63.2 प्रतिशत था, वह  बढ़ कर 2021-22 में 66.4 प्रतिशत कैसे हो गया? इन सभी प्रश्नो के उत्तर, अनुत्तरित हैं।

(लेखक विमल शंकर सिंह, डीएवीपीजी कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष थे।)

विमल शंकर सिंह
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विमल शंकर सिंह