यूपी विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनने जा रही है बेरोजगारी

यूपी में चुनावी शंखनाद हो चुका है। कोविड के बढ़ते मामलों के बीच सात चरणों में उत्तर प्रदेश की जनता अपना भविष्य तय करेगी। सभी पार्टियां वोटरों को लुभाने में अपना जोर लगा रही हैं। उत्तर प्रदेश में वाराणसी चुनावी राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र होने के अलावा विश्व का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय- बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी भी यहीं पर स्थित है।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी अपने स्थापना के बाद से ही छात्र राजनीति का एक बड़ा केंद्र रहा है। आज भी जब चुनाव का सियासी माहौल गरमाता है तो इसकी आँच BHU तक पहुँचनी निश्चित ही है। सत्तासीन मोदी-योगी की डबल इंजन की सरकार वाराणसी में फिर से अपनी पैठ बनाने में जुटी है। जिस तरह पिछले 5 साल में स्वास्थ्य- शिक्षा- रोजगार- महिला सुरक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्रों में योगी सरकार फेल होती नजर आ रही है, जनता को अपने साथ लाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। कोविड-19 के बाद से 2020 और 2021 के लॉक डाउन ने जनता ही हालत खराब कर दी है। एक बड़ा तबका जो इन सब में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है वह है स्टूडेंट्स का तबका।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बनारस में अपनी चुनावी रैलियां कर हजारों की भीड़ जुटा रहे थे तब इसी बनारस में कोविड का हवाला देते हुए स्टूडेंट्स के दसियों ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन के बावजूद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को मार्च 2020 से ही बन्द रखा गया है। अंतिम वर्ष के छात्र-छात्राओं के लिए बस नाम मात्र के ही  ऑफलाइन क्लास चलाई गईं। अब कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के कारण सभी कक्षाओं को फिर से ऑनलाइन कर दिया गया है। ऑनलाइन क्लास की सीमाओं के चलते इस दौरान स्टूडेंट्स का भारी नुकसान हुआ है। एक तरफ शिक्षा का गिरता स्तर दूसरी तरफ बेरोजगारी की मार।

BHU में मनोविज्ञान कि छात्रा इप्शिता कहती हैं कि “वर्तमान सरकार में शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है। कोरोना की स्थिति बेहतर होने और सभी सार्वजनिक स्थल खुल जाने के बावजूद सभी विश्वविद्यालयों को बंद रखा गया जिससे लाखों स्टूडेंट्स का पढ़ाई का नुकसान हुआ। सबसे ज़्यादा नुकसान गरीब, दलित, आदिवासी व महिला स्टूडेंट्स का हुआ जिनके पास ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण कर पाने के बहुत ही सीमित अवसर हैं।”

आज पूरे देश में ही ऑनलाइन शिक्षा का लगातार विरोध हो रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया समेत BHU में भी ऑफलाइन शिक्षा की मांग करते हुए अब तक तीन बड़े आंदोलन हुए हैं। हर एक आंदोलन में स्टूडेंट्स हफ़्तों तक धरना स्थल पर डटे रहे लेकिन हर बार कोविड का हवाला देकर आंदोलनों को पुलिस की मदद से खत्म कराया गया। नतीजतन आज भी क्लास ऑनलाइन ही जारी है। BHU के छात्रों का आरोप है कि मोदी-योगी सरकार उन्हें पढ़ने से रोकना चाहती है। जब दारू के ठेके खुल सकते हैं तो विश्वविद्यालय क्यों नहीं? शिक्षा विरोधी यह सरकार जानबूझ कर लाखों युवाओं का भविष्य खराब कर रही है।

आज युवाओं के लिए शिक्षा की घटती गुणवत्ता के साथ-साथ रोजगार की दयनीय स्थिति भी एक बड़ी चिंता बनी हुई है। बेरोजगारी की स्थिति को देखते हुए BHU के एक छात्र संगठन भगतसिंह छात्र मोर्चा ने 17 सितम्बर 2020 को नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस को जुलूस निकाल कर ‘राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस’ के रूप में मनाया था।

बीए द्वितीय वर्ष के छात्र अभिनव चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि “बेरोजगारी देश की सबसे बड़ी समस्या है लेकिन सरकार इस पर जरा भी ध्यान नहीं दे रही है। कई एग्जाम के पेपर लीक हो जा रहे हैं और एग्जाम हो भी रहे तो कोर्ट में चले जा रहे। आज सरकार द्वारा देश के कई क्षेत्रों में प्राइवेटाइजेशन किया जा रहा है जिसके कारण देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। भाजपा सरकार शिक्षा और बेरोजगारी पर ध्यान न देकर, मंदिर बनवाने, जगह का नाम बदलवाने, हिंदू-मुस्लिम को भड़काने और देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने को ही विकास का काम समझती है।”

अभी हाल ही में UPTET के एग्जाम के दौरान अभ्यर्थियों को पता चला कि पेपर लीक हो गए हैं तो हर तरफ मायूसी और सरकार के प्रति गुस्सा सामने आ गया। अभ्यर्थियों के रोते बिलखते वीडियोज सोशल मीडिया पर शेयर किए गए। छात्रों की यह समस्या है कि अगर सरकार वैकेंसी निकालती भी है तो बार-बार टलने के बाद एग्जाम हो रहे। उसके बाद पता चलता है कि या तो पेपर लीक हो गया या धांधली के आरोप लग रहे जिसके कारण रोजगार की स्थिति बेहद खराब है। मार्च 2020 में लगाये गए लॉकडाउन के कारण प्राइवेट कम्पनियों को बहुत नुकसान हुआ जिसके कारण उन्होंने छटनी कर दी।

छात्रों की शिकायत है कि एक तरफ जहां सरकारी नौकरी लगभग न के बराबर है वहीं प्राइवेट नौकरियों में छंटनी के कारण उन्हें भविष्य की चिंता सता रही है। BHU में जर्मन की पढ़ाई करते हुए नौकरी की तैयारी करने वाले अजित योगी सरकार पर रोष व्यक्त करते हुए कहते हैं कि “योगी सरकार युवाओं का आर्थिक और मानसिक शोषण कर रही है। भर्तियों की हालत इतनी खराब है कि यूपीपीएससी जूनियर इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर 2013 में आई वैकेंसी अभी 2020 में पूरी हुई है। 2016 जल निगम जिसमें लगभग 1300 पोस्ट के लिए नोटिफिकेशन आया था उसकी जॉइनिंग 2017 में हुई लेकिन भर्ती में धांधली की वजह से 2019 में भर्ती को निरस्त कर दिया गया। उत्तर प्रदेश सब-इंस्पेक्टर 2016 की भर्ती में रिजल्ट और ज्वाइनिंग के बाद ट्रेनिंग के समय ही कोर्ट के फैसले के अनुसार स्थगित कर दिया गया।

विलेज डेवेलपमेंट ऑफिसर (VDO) एक्जाम होने के बाद रिजल्ट भी आ गया परंतु धांधली का हवाला देते हुए उस एक्जाम को निरस्त कर दिया गया। अभी नई एक्जाम की तारीख नहीं आई है। इसी तरह यूपी टीचर 2018 की 69000 भर्ती प्रक्रिया में रिजर्वेशन को लेकर भर्ती कोर्ट में चली गई। यूपीएसएससी जूनियर इंजीनियर 2016 एग्जाम अभी हाल ही 2021 में हुई है जबकि यूपीएसएसएससी जूनियर इंजीनियर 2018 का एक्जाम होना अभी भी बाकी है। यूपीएसएसएससी जो उत्तप्रदेश में ग्रुप C और D लेवल का एक्जाम कराती है, 2016 से लेकर 2018 तक के दर्जनों एक्जाम अभी तक नहीं हुए हैं। यहां किसी भी एग्जाम में 20-25 लाख स्टूडेंट्स अप्लाई करते हैं। जब एग्जाम हो ही नहीं रहे तो बेरोजगारी का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।”

सूबे में बढ़ती बेरोजगारी के बीच सैकड़ों प्रतियोगी स्टूडेंट्स ने तंग आकर आत्महत्या कर ली। घर की खराब स्थिति में परिवार को संभालने का दबाव, बढ़ती महंगाई में कोचिंग की फीस देकर किराए के रूम में अथक पढ़ाई करना और उसके बाद एग्जाम पेपर का लीक होने या जॉइनिंग ही टल जाना इन सब के सैकड़ों छात्रों ने अपना जीवन खत्म करना ही बेहतर समझा। पोलिटिकल साइंस के छात्र उत्कर्ष बताते हैं कि “शिक्षा और रोजगार की स्थिति पर केंद्र सरकार बीते सालों में तो फेल रही ही है, योगी सरकार की स्थिति भी कम चिंता जनक नहीं है। आंकड़ों से पता चलता है कि वर्तमान सरकार में रोजगार के अवसर बढ़ने के बजाय घटे ही हैं।

छात्रों के बढ़ते आत्महत्या की दर इस सच को बखूबी बता रहे हैं इसके बावजूद भी व्हाट्सएप पर बीजेपी आईटी सेल द्वारा फारवर्ड मैसेज में यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि छात्रों की संख्या इतनी है कि सरकार सबको सरकारी नौकरी तो नहीं दे सकती है। इस सच को सब जानते हैं कि सबको सरकारी नौकरी तो नहीं दी जा सकती है पर जो सीटें खाली हैं उसे तो भरा जा ही सकता है। बीजेपी ने घोषणा पत्र में भी यही वादा किया था। अध्यापकों और पुलिस विभाग में न जाने कितनी सीटें खाली हैं जब क्लास में अध्यापक ही नहीं होंगे तो कैसी शिक्षा की गुणवत्ता की आशा की जा सकती है? बिना पुलिस की भर्ती के कैसे कानून व्यवस्था दुरुस्त हो सकती है?”

BHU से सटे छित्तूपुर एरिया में सैकड़ों स्टूडेंट्स रूम किराए पर लेकर नौकरी की खोज में जुटे हैं। कई स्टूडेंट्स ऐसे थे कि नौकरी की आशा नहीं होने के कारण पढ़ाई ही छोड़ दी और घर को सम्भालने में जुट गए। BHU की लाइब्रेरी में स्टूडेंट्स प्रतियोगिता की किताबें लिए दिख जाएंगे। इस उम्मीद में युवा अपना ज्यादातर समय किताबों में गुजार रहे कि हज़ारों सीटों में उन्हें केवल एक सीट ही तो चाहिए। अब देखना यह है कि जब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ही बेरोजगारी और शिक्षा की दयनीय स्थिति के लिए छात्रों में इतना रोष है तब योगी सरकार अगले चुनावों को युवाओं को कितना लुभा पाती है।

(वाराणसी से आकांक्षा आज़ाद की रिपोर्ट।)

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