मठ के विधान को संविधान समझ बैठी है यूपी पुलिस

उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की बात करने वाले मठाधीश योगी आदित्यनाथ का प्रशासनिक आदेश यूपी पुलिस को न केवल संवेदनहीन बना रही है, बल्कि असंवैधानिक भी बना रही है। ऐसा लग रहा है कि यूपी पुलिस मठ के विधान को संविधान समझ बैठी है और उससे निकले आदेश को अपना संवैधानिक कर्तव्य।

प्रदेश के मुखिया आमजनों से आंदोलन के दौरान हुए नकुसान की भरपाई का एलान कर चुके है। यूपी के डीजीपी पूरी यूपी में आंदोलनकारियों के घरों के बाहर नोटिस चिपकाने में व्यस्त हैं, लेकिन क्या प्रदेश के मुखिया और कानून व्यवस्था के शीर्ष अधिकारी डीजीपी यह बताएंगे कि सरकारी संपत्तियों को तोड़ते, आग लगाते, निर्दोषों को पीटते पुलिस बल पर क्या कार्रवाई कर रहे हैं?

अगर वीडियो फुटेज के आधार पर आंदोलनकारियों को चिन्हित किया जा रहा है तो वीडियो फुटेज के आधार पर पुलिस बल पर अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं? और फिर कानून व्यवस्था के इस बिगड़े हालात के लिए जिम्मेदार कौन? क्या उन्हें याद है कि चंद दिनों पहले यूपी की बिगड़ती कानून व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा था, “हम यूपी सरकार से रवैये से तंग आ चुके हैं, यूपी में जंगलराज जैसे हालात हैं?”

जिस तरह का व्यवहार प्रदर्शन और दमनात्मक कार्रवाई यूपी पुलिस आम जनता के साथ कर रही है वो बरबस अंग्रेजी हुकूमत की याद ताजा कर रही हैं। यूपी पुलिस जिस तरह से लोकतांत्रिक अधिकारों और संविधान बचाने के लिए संघर्षरत आंदोलनकारियों और एक समुदाय विशेष को निशाना बना रही है, वो अत्यंत निंदनीय और शर्मनाक है। ऐसा लगता है कि यूपी पुलिस अपनी शपथ को भूल चुकी है, जो वर्दी को धारण करते वक्त उन्हें दिलाई जाती है।

योगी आदित्यनाथ की यूपी पुलिस का रवैया पुलिस के अनुशासन पर भी गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रही है। कई वायरल वीडियो में पुलिस आम जनता को भद्दी-भद्दी गालियां बकते नजर आ रही है, नस्लीय टिप्पणी भी की जा रही है।

मेरा स्प्ष्ट मानना है कि ये पुलिस इस पूरे घटनाक्रम में केवल सरकारी आदेशपाल है, असल गुनाहगार सत्ता के सनकी सम्राट हैं जिसने न केवल इन्हें ऐसा करने की खुलेआम छूट दे रखी है बल्कि निर्देश भी दे रखी है और उन्हें सत्ता का संरक्षण भी प्राप्त है।

मेरठ के एसपी सिटी ने जिस तरह की भाषा का प्रयोग देश के नागरिकों के लिए किया है वो किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश में उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए पर्याप्त होता, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अब तक एसपी साहब पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गई है। कार्रवाई तो दूर उलटे उनका बचाव करने की बेशर्मी दिखाई जा रही है।

मेरठ जोन के एडीजी प्रशांत कुमार ने ऐसे अनुशासनहीन और कर्तव्य विमुख एसपी का खुलकर बचाव किया। उन्होंने शनिवार को इस पर सफाई देते हुए कहा था, ‘जिस समय का यह वीडियो है, उस समय देश विरोधी नारे लगाए जा रहे थे। एसपी सिटी आगजनी, तोड़फोड़ और फायरिंग के बीच घिरे हुए थे, एसपी सिटी ने जांबाजी के साथ हालात को कंट्रोल किया।

अब तो हद्द ही हो गई। जनता को भद्दी गलियां, नस्लीय टिप्पणी और नानी याद दिलाने की धमकी को जांबाजी बताया जा रहा है। उधर, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने ट्विट कर कहा, ‘अगर यह सच है कि उन्होंने वीडियो में यह बयान दिया है, तो यह निंदनीय है। उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए। अब सवाल उठता है कि मेरठ के एसपी सिटी की जिस कार्रवाई को एक रसूखदार केंद्रीय मंत्री निंदनीय और दंडनीय बता रहे हैं, उसे मेरठ जोन के एडीजी प्रशांत कुमार एसपी की जांबाजी बता रहे हैं। ऐसे में प्रदेश के मुखिया क्या करेंगे?

क्या केंद्रीय मंत्री की बात को सुनेंगे या पुलिस को ऐसे घृणित कार्य में अपना सहयोग देते रहेंगे? क्योंकि खुद योगी आदित्यनाथ पर इस तरह हिंसा भड़काने के कई संगीन आरोप रहे हैं और एक समुदाय विशेष के प्रति इसी तरह की भाषा का प्रयोग करते रहे हैं। अपनी सियासी सफलता के लिए ऐसे हथकंडों का उन्होंने बखूबी प्रयोग किया है। खुद योगी आदित्यनाथ पर दर्जनों ऐसे मुकदमे दायर किए गए हैं, जिनमे कुछ ऐसे मुकदमों का जिक्र कर रहा हूं, जिसकी जानकारी ख़ुद योगी आदित्यनाथ ने 2014 लोकसभा चुनावों में दाखिल हलफनामे में दिया था।

★ 1999 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 295 (किसी समुदाय के पूजा स्थल का अपमान करना), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण), 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 307 (हत्या का प्रयास) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के मामले दर्ज हुए थे।

★ 1999 में ही यूपी के महाराजगंज में दफा 302 (मौत की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

★ 2006 में गोरखपुर में उन पर आईपीसी की धारा 147, 148, 133A (उपद्रव को हटाने के लिए सशर्त आदेश), 285 (आग या दहनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाही), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

★ 2007 में गोरखपुर में धारा 147, 133A, 295, 297, 435 (100 रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाने के इरादे से आग या विस्फोटक द्रव्य द्वारा शरारत) और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

★ 27 जनवरी 2007 को योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर रेलवे स्टेशन के सामने भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि अब हम किसी हिंदू के मारे जाने पर एफआईआर नहीं करवाएंगे, सीधी कार्रवाई प्रारंभ करेंगे, यह बात मोबाइल से फैला दीजिए। योगी के इस भाषण के बाद पूरे गोरखपुर और बस्ती मंडल में दंगा फैल गया था। इसके बाद तत्कालीन गोरखपुर सांसद योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार कर 11 दिनों की पुलिस कस्टडी में भी रखा गया था।

यूपी में मुखिया के सियासी सफर के इन कारनामों को अगर ध्यान से देखें तो यूपी पुलिस के रवैये, उनकी कर्तव्यहीनता और अनुशासनहीनता को आसानी से समझा जा सकता है। दरअसल सत्ता के सम्राट पूरी व्यवस्था को सांप्रदायिक भट्ठी में झोंक कर उसकी लपटों में अपनी सियासत चमकाना चाहते हैं। देश के संविधान के बदले मठ के विधान को लागू करने की यह संघी कवायद राष्ट्र के संपूर्ण लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को लील जाना चाहती है।

दया नंद

Janchowk
Published by
Janchowk