कृषि विधेयक: ध्वनिमत का मतलब ही था विपक्ष को शांत करा देना

जब राज्य सभा में एनडीए को बहुमत हासिल था तो कृषि विधेयकों को ध्वनि मत से पारित कराने की क्या जरूरत थी? राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश जी इसे लेकर आपके वैध पक्ष को जानने सुनने के लिए पूरे देश को इंतजार है। हकीकत तो यह है कि रविवार को विपक्षी सांसदों द्वारा मत विभाजन के लिए कहने के बावजूद आपके द्वारा ध्वनि मत द्वारा कृषि बिलों के पारित होने की घोषणा से इन आरोपों की पुष्टि हो रही है कि नरेंद्र मोदी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) स्पष्ट रूप से कृषि बिलों को राज्य सभा में पारित कराने की स्थिति में नहीं था। तो क्या आपको संवैधानिक मर्यादा को तार-तार करने के लिए एनडीए ने अपना उम्मीदवार बनाया था और आपने नमक का हक अदा किया है।

आप जानते हैं कि बीजू जनता दल सहित विपक्षी दलों की मांग थी की कृषि बिलों, किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा विधेयक 2020 को सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाए, जिसके लिए केंद्र सरकार तैयार नहीं थी। यह संसदीय लोकतंत्र में सर्वस्वीकार्य प्रस्ताव है कि कानून बनाना एक विचारोत्तेजक और परामर्शात्मक प्रक्रिया है। जब 2014 में पदभार संभालने के ठीक बाद एनडीए शासन ने विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समितियों को विधेयकों को जांच एवं परामर्शदात्री प्रक्रिया के लिए भेजने में आनाकानी शुरू की तो यह संसदीय परम्पराओं की जड़ पर जानबूझकर कुठाराघात था।

आप तो यह भी जानते हैं हरिवंश जी कि न तो कृषि बिल और न ही इसके पहले के बिलों, जैसे कि संविधान संशोधन विधेयक जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति और नागरिकता संशोधन, ट्रिपल तलाक और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) विधेयक से संबंधित विधेयकों, को संसद की किसी भी समिति को संदर्भित किया गया था।

उपसभापति जी आपने कहा है कि राज्य सभा में जो कुछ हुआ उससे बहुत पीड़ा में हूं, वेदना के कारण रात भर सो नहीं पाया। उच्च सदन की मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास करना चाहिए।शायद मेरे उपवास से इस तरह का आचरण करने वाले माननीय सदस्यों के अंदर आत्मशुद्धि का भाव जागृत हो। अब यह आप भली भांति जानते और समझते हैं कि आपने उपवास माननीय सदस्यों के अंदर आत्म शुद्धि के लिए रखा है या अपने भीतर के अपराध बोध को कम करने के लिए रखा है।

इससे पहले आज सुबह उप सभापति हरिवंश जी आप प्रदर्शन कर रहे निलंबित सांसदों के लिए चाय लेकर पहुंचे थे लेकिन निलंबित सांसदों ने चाय पीने से इनकार कर दिया और कहा कि हम यहां किसानों के लिए बैठे हैं। उन्होंने कहा कि नियमों को ताक पर रखकर किसान विरोधी बिल पास कराया गया जबकि बीजेपी के पास बहुमत नहीं था। यह आपने अपनी महानता दिखाने के लिए किया या फिर अपना अपराध बोध कम करने के लिए यह आप ही बेहतर जानते होंगे। हरिवंश जी आपने बार बार दुहाई दी हम सदन में उपसभापति हैं, यहां दोस्त हैं। यह उनकी आत्म शुद्धि के लिए तो नहीं कहा आपने बल्कि रूठों को मनाने की कोशिश करके एक बार फिर आपने अपने अपराध बोध को प्रदर्शित किया।

गौरतलब है कि इस दौर में चाटुकारिता का ऐसा बोलबाला है कि देश के तमाम संवैधानिक संस्थान और उनमें शीर्ष पदों पर बैठे लोग अपने पतन की नित-नई इबारतें लिखते हुए खुद को सत्ता के दास के रूप में पेश कर अपने को धन्य मान रहे हैं तब ऐसे माहौल में हरिवंश जी आप जैसा महत्वाकांक्षी व्यक्ति कैसे पीछे रह सकता था। बलिया के सिताब दियरा गाँव से पत्रकारिता में प्रवेश और राजनीति में लोकनायक जयप्रकाश नारायण और तत्कालीन प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर का कितना योगदान रहा है यह जानने वाले अभी भी कुछ लोग सिताब दियरा में हैं।

इसलिए रविवार को राज्य सभा में किसानों से संबंधित बेहद विवादास्पद विधेयकों को पारित कराने के लिए उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह जी आपने जो कुछ भी किया वह अभूतपूर्व है, सदन के नियमों के विपरीत भी है और असंवैधानिक भी है, लेकिन चौंकाने वाला कतई नहीं।

आप के बारे में यह आम धारणा है कि आप समाजवादी आंदोलन और 1974 के जेपी आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं, लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं है। यह वैसा ही प्रचार है, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने स्वयं के बारे में दावा करते हैं कि वे 1974 में गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन में सक्रिय थे और आपातकाल के दौरान भूमिगत रह कर आंदोलनात्मक गतिविधियों में सक्रिय थे। आप के बारे में कहा जाता है कि समाजवादी और जेपी आंदोलन की पृष्ठभूमि वाले पत्रकारों के काफिले में आप  ज़रूर शामिल रहे, लेकिन किन्हीं आदर्शों या मूल्यों की वजह से नहीं, बल्कि महज अपना कॅरिअर बनाने के लिए। आप 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के  मीडिया सलाहकार क्या यूँ ही बन गये थे।

राज्य सभा में किसान संबंधी विधेयकों को पारित कराने में उप सभापति की हैसियत से हरिवंश नारायण सिंह जी आपने  जो कुछ किया, उससे आपकी प्रचलित छवि ही कलंकित नहीं हुई, बल्कि भारत के संसदीय इतिहास में भी एक काला अध्याय जुड़ गया। नियम-कायदों को नजरअंदाज कर मनमानी व्यवस्था देने में आपने सभापति एम. वेंकैया नायडू और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी पीछे छोड़ दिया है।आप संसदीय इतिहास के काले पन्नों में दर्ज़ हो गये हैं ।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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