ग्राउंड स्टोरी: बिहार में शहर से लेकर गांवों तक लगा है कचरे का ढेर

“कचरा की गाड़ी प्रत्येक दिन सुबह के 7 बजे मुख्य सड़क से होते हुए गुजरती है। लेकिन हम लोगों का लॉज मुख्य सड़क से लगभग 100 मीटर दूर पर स्थित है। हम लोग उस वक्त या तो कोचिंग में होते हैं या फिर कहीं और। हमारे इलाके का सारा कचरा एक खाली जगह पर फेंका जाता है। वहां अगर घर बना तो कहीं और फेंका जाएगा। पूरे शहर में यही स्थिति है। मोहल्ले में जिस जमीन पर घर नहीं बना हुआ है वहां कूड़ेदान बना हुआ है। शनिवार और रविवार के दिन स्थानीय निवासियों द्वारा वहां कूड़ा जलाया जाता है।” बिहार की राजधानी पटना स्थित बिहार सचिवालय से लगभग 10 मिनट की दूरी पर स्थित पुनाइचक में रेंट पर रहने वाले बिपुल झा बताते हैं। 

105 घाटों पर 3 लाख किलो प्लास्टिक कचरा

छठ पर्व पूरे बिहार के लिए महा पर्व के रूप में जाना जाता है। इस महापर्व में पूरे बिहार में ही प्लास्टिक कचरा का उपयोग धड़ल्ले से किया गया है। गैर सरकारी संस्थान बीईंग हेल्पर के कार्यकारी सदस्य सन्नी सिंह बताते हैं कि, ” बिहार की राजधानी पटना के सभी घाटों की सफाई अभी तक चल रही है। पटना में एक घाट से कम से कम 300 मीटर में 2 हजार किलो प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। अगर पूरे पटना का आंकड़ा बताएं तो 105 घाटों में 3 लाख किलो से अधिक प्लास्टिक कचरा इकट्‌ठा हो गया है। नगर निगम के अलावा बिहार के दो-तीन गैर सरकारी संस्थानों के सदस्यों द्वारा कई घाटों की साफ-सफाई का अभियान चल रहा है।”

गांव में भी कचरे का निष्पादन निष्क्रिय

पंचायती राज विभाग द्वारा राज्य की कई पंचायतों में स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक घर में दो कूड़ा दान, बाजार एवं हाट इत्यादि परिसर में दो-दो कूड़ेदान, प्रत्येक वार्ड में एक स्वच्छता कर्मी तथा सभी ग्राम पंचायतों में एक स्वच्छता पर्यवेक्षक साथ-साथ सफाई कर्मी एवं स्वच्छता कर्मी की सुरक्षा से संबंधित सामग्री उपलब्ध कराए जाने का वादा किया गया था। जिला स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के लिए भी कहा गया था। लेकिन जमीनी हालात कुछ और कहानी कह रहे हैं। 

बिहार के मशहूर आरटीआई एक्टिविस्ट अमलेश बताते हैं कि, “पूरे बिहार का जिक्र तो मैं नहीं कर सकता हूं लेकिन कोसी इलाके के तमाम गांवों का डाटा मैं बता सकता हूं। किसी भी गांव में आपको शायद ही कूड़ेदान और 

पूर्णिया के एक निजी अस्पताल में पड़ा कचरा

कूड़े लाने वाले गाड़ी मिले। अगर किसी गांव में मिलेगी भी तो सिर्फ सार्वजनिक स्थान पर। जैसे सहरसा जिले का प्रसिद्ध गांव महिषी और दरभंगा के देव स्थल पर आपको कूड़ेदान मिलेगा पर घर पर नहीं।”

1800 सरकारी, निजी स्वास्थ्य केंद्रों को नोटिस

“जहां पूरे शहर का कचरा जलता हैं वहीं पर शहर के अस्पतालों और सदर अस्पताल का कचरा भी जलता है। शहर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित एक खाली जगह पर पूरे शहर का कचरा जलाया जाता है।” सीतामढ़ी शहर के नगर निगम का एक वर्कर नाम ना बताने की शर्त पर बताता है। नगर निगम के इस वर्कर की बात की सच्चाई इस आंकड़े से झलकती है कि साल 2019 की भारत सरकार की केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक राज्य में प्रत्येक दिन उत्पन्न होने वाले 34 हजार किलो वेस्ट में से तीन-चौथाई यानी 76% कचरे का निपटान नहीं किया जाता है। 

हाल में ही बिहार राज्य में मेडिकल कचरा प्रबंधन नहीं होने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सूबे के 1800 से अधिक सरकारी, निजी स्वास्थ्य केंद्रों को नोटिस जारी किया है। इससे पहले भी कई स्वास्थ्य केंद्रों को नोटिस जारी किया जा चुका है। इसके बावजूद मेडिकल कचरे के निष्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। 

डॉक्टर को जुर्माना के बाद भी प्रभाव नहीं 

“2 महीना पहले ही शहर की सड़कों पर फेंके जा रहे बायो मेडिकल कचरे के कारण तीन डॉक्टरों पर 5-5 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया था। इसके बावजूद भी पूर्णिया में  सड़कों पर फेंके जा रहे बायो मेडिकल कचरे की रोकथाम रुक नहीं पाई है। पूर्णिया के रजिस्टर्ड नर्सिंग होम व क्लीनिक का कचरा लेने के लिए भागलपुर की आउटसोर्सिंग एजेंसी का वाहन भी नियमित नहीं आता है।” पूर्णिया शहर के स्थानीय पत्रकार कमलेश झा बताते हैं।

सरकारी नियम को मानें तो बायो-मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016 के तहत किसी भी प्रकार के स्वास्थ्य केंद्र जैसे नर्सिंग होम, पैथोलॉजिकल लैब या ब्लड बैंक आदि को नियम 10 के तहत बोर्ड द्वारा अधिकार पत्र (ऑथराइजेशन) और सहमति (कंसेंट) लेना आवश्यक है। जबकि बिहार में हजारों मेडिकल संस्थान बिना किसी अधिकार पत्र के काम कर रहे हैं। वहीं बायोमेडिकल वेस्ट नियम के अनुसार, इस जैविक कचरे को खुले में डालने पर अस्पतालों के खिलाफ सजा का भी प्रावधान है।

(बिहार से पत्रकार राहुल की रिपोर्ट।)

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