सचमुच में हम विश्वगुरु बन रहे हैं, ‘कोरोना विश्वगुरु’

बधाई हो। 2 लाख कोरोना पॉजिटिव होने की। भारत मुल्क अब छठे पायदान पर पहुंच गया होगा। हमारे देश मे इस बात का क्रेडिट लेने के लिए आपस में होड़ मचेगी कि देखिये लॉकडाउन की शुरुआत में हम हर 3 दिन में डबल हो रहे थे, लेकिन हमारे योग्य नेतृत्व के कारण यह संख्या अब 1 लाख  से 2 लाख होने में 15 दिन लग गए।

18 मई के दिन कोरोना भारत में 1 लाख की संख्या को छुआ था, और 2 लाख वह 2 जून को हो सका है। इसे हम अपनी उपलब्धि न कहें तो फिर क्या कहें ? इसका मतलब यह हुआ कि 16 जून तक हम 4 लाख और 30 जून तक 8 लाख ही तो होंगे जुलाई 15 तक 16 और जुलाई के आखिर में जाकर 32 लाख पहुंचेंगे।

और इस सबके लिए क्रेडिट हमारे विश्व गुरू वाले नेतृत्व और उनको भरपूर सहयोग देने वाले अरविंद केजरीवाल जी को हमें देना चाहिए। क्योंकि जब 23 मार्च को कोरोना के मात्र 600 केस थे, तब भारत पर यह खतरा इस कदर बढ़ चुका था कि 4 घण्टे के भीतर 135 करोड़ लोगों को जो जहाँ है, वहीं पर जाम होने के आदेश दे दिए गए थे। और यह उसी का प्रताप है कि हम 18 मई तक अर्थात 2 महीने में मात्र 600 से 100000 पहुँचे थे।

लेकिन उसके बाद हमने कोरोना की गर्दन मरोड़ दी, और अब यह कछुवे की चाल से आज 2 लाख, और जून के अंत तक 8 लाख, जुलाई के अंत तक 32 और अगस्त के अंत तक 128 लाख तक ही पहुंचेगा।

क्योंकि इस बारे में हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्री चूंकि दिल्ली से ही आते हैं, इसलिए माननीय केजरीवाल जी को लगता है कि उनके स्थान पर वे ही बोल लें। इसलिए उनके हिसाब से कोरोना से अब डरने की कोई जरूरत ही नहीं। herd immunity की बात कोई भारत में नहीं कर रहा, लेकिन ऐसा लगता है कि दुनिया की बड़ी ताकतों से डील हो चुकी है।

वरना बाकी के देश तो अपने यहाँ तब खोल रहे हैं, जब नए मामले या तो खत्म हो चुके हैं या फिर बेहद कम हो चुके हैं। कोरिया में 70 नए मामले क्या आये, उसने घबरा कर फिर से कड़े प्रतिबन्ध लगाने की सोच बना ली है।

वहीं चीन में भी दोबारा से एक दो दर्जन पॉजिटिव केस आते ही समूचे वुहान की 1.10 करोड़ आबादी की 10 दिन में टेस्टिंग का फैसला ले लिया गया। एक दिन में एक शहर में 10 लाख से अधिक टेस्ट कर लिए गए। शायद ये मुल्क मूर्ख हैं। या इनके पास फालतू का पैसा होगा।

इन्हें हमसे सीखना चाहिए, या फिर ब्राजील से। हम दो देश बिना हींग और फिटकिरी के कोरोना-शोरोना का मुकाबला करने और पटखनी देने के लिए तैयार हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसनरो ने तो 2 महीने पहले ही बड़े फक्र से घोषित किया था कि हमारे यहां तो पब्लिक कीचड़ में कूद जाती है और बाहर निकलने पर उसे कोई भी रोग संक्रमित नहीं होता। और वैसे भी यह वायरस 65 साल से ऊपर वालों को ही तो पकड़ रहा है। आखिर ब्राजील में 10% लोग ही तो इस आबादी में हैं। कुछ हो भी गया तो कौन सी बड़ी बात होगी।

महान बोलसनरो मुंहफट दक्षिणपंथी नेता हैं। कल ही घुड़सवारी करके देश को गन्धा रहे थे। अपनी बात पे शर्माते नहीं हैं। ऐसे स्टेट फारवर्ड गोरों को हम जलेबी की तरह सीधे भारतीय मनुवादी साम दाम दण्ड भेद नीति वाले देश की लोमड़ नीति को समझने में ही अभी कई जुग बीत जाएंगे।

ब्राजील और भारत दोनों ही देश अपनी प्यारी जनता को चरम सुख देकर रहेंगे फिलहाल यह सुख महामहिम डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी जनता को दिलवा रहे हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें अपने कॉरपोरेट मित्रों के लिए बचाये धन का एक बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ा।

वह हम भारतीय और ब्राजीली मुखिया की तरह चतुर सुजान नहीं है न। साथ ही नवंबर में उसे चुनाव किसी तरह जीतने की मजबूरी भी तो है।

बाकी हिसाब-किताब आप भी लगायें। वैसे हम निश्चिंत हैं। क्योंकि हम अब विश्व गुरुओं के बीच में हैं, हमारी जिंदगी तो अब 100 टका सेफ है। वीर भोग्या वसुन्धरा टाइप।

हमें बस रात 9 बजे से सुबह 8 बजे तक किसी से नहीं मिलना होगा। बाकी दिन भर गले मिलते रहिये, मानो अब कोरोना ने सिर्फ रात में ही ट्रांसमिट होने का प्लान बनाया है।

(रविंद्र सिंह पटवाल टिप्पणीकार हैं और सोशल मीडिया पर गंभीर सवालों को उठाने के लिए जाने जाते हैं।)

रविंद्र पटवाल
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