खालिस्तानी आतंकी वारदातों के आरोपियों के साथ मिलकर क्या गुल खिला रही हैं केंद्रीय एजेंसियां?

मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार इन दिनों एक खास मकसद से पूर्व खालिस्तानी आतंकवादियों पर खास मेहरबान है। गृहमंत्री अमित शाह के निर्देशन में चलने वाली खुफिया एजेंसियां विदेशों में रह रहे और अतीत में आतंकी वारदातों के मुख्य अभियुक्त रहे आतंकियों से लगातार संपर्क और विशेष बैठकें तो कर ही रही हैं बल्कि बाकायदा उनकी भारत में मेहमाननवाजी भी कर रही हैं।

इस ऑपरेशन को गुप्त रखा जा रहा है लेकिन इस पत्रकार को कुछ पुख्ता जानकारियां इस बाबत मिली हैं। केंद्रीय एजेंसियों ने पंजाब सरकार को भी अपने इस महत्वपूर्ण ऑपरेशन से दूर रखा है। इस ऑपरेशन का सबसे बड़ा मकसद पाकिस्तान की हिमायत से विदेशों में चल रहे रफरेंडम 20–20 को नाकामयाब अथवा भोथरा करना है। हालांकि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह खुद कट्टरपंथियों की लहर रेफरेंडम 20-20 के सख्त खिलाफ हैं लेकिन मोदी सरकार उसे कमजोर करने का सारा श्रेय खुद लेने की कवायद में है।                   

इस पत्रकार की विशेष खोजबीन व जानकारी बताती है कि रेफरेंडम के समानांतर एक रणनीति केंद्र सरकार ने बनाई है और उस पर अमल शुरू हो चुका है। इसके तहत विदेशों में भारतीय दूतावासों के जरिए वहां रह रहे पूर्व खालिस्तानी एवं सिख कट्टरपंथियों से संपर्क करके विधिवत बैठकें की जा रही हैं और अब उन बैठकों का सिलसिला राजधानी दिल्ली में भी शुरू हो गया है। इसी के तहत बेहद विवादास्पद रहे, अब कनाडा के नागरिक रिपुदमन सिंह मलिक इन दिनों गुपचुप तौर पर दिल्ली में हैं और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के सुरक्षाचक्र के साथ पंजाब का दौरा भी कर चुके हैं।

पहले रिपुदमन सिंह मलिक की बाबत थोड़ा जान लेते हैं।  जानना जरूरी है, इसलिए।
23 जून 1985 को नई दिल्ली से कनाडा जा रहे एयर इंडिया के विमान में आयरलैंड तट के करीब विस्फोट हुआ था। जिसमें 329 यात्री ठौर मारे गए थे, जिनमें 280 कनाडाई नागरिक और 22 भारतीय थे। कनाडा के इतिहास में यह सबसे जघन्य और सामूहिक हत्याकांड था जिसने पूरी दुनिया को थर्रा दिया था। इस वीभत्स विस्फोट को 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के प्रतिशोध के तौर पर की गई कारगुजारी बताया गया था। इसकी जिम्मेदारी कुख्यात बब्बर खालसा ने ली थी। साक्ष्यों के आधार पर कनाडा सरकार ने रिपुदमन सिंह मलिक को मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर नामजद किया था। तब मलिक को खालिस्तानी और सिख कट्टरपंथियों के बीच महानायक बताया जाता रहा।

विशेष आयोग ने प्रतिवादियों को 2003 में दोषी पाया था। जांच और अभियोजन में लगभग 20 साल लगे। आपराधिक सुनवाई में रिपुदमन सिंह मलिक ने चुप रहने के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया। कुछ अन्य कानूनी आधारों तथा लचीली व्यवस्था के चलते 2005 में वह बरी हो गए। फैसला करने वाली अदालत का यह भी मानना था कि कनाडा सरकार, रॉयल माउंटेड पुलिस और कैनेडियन सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस द्वारा त्रुटियों की क्रमिक श्रृंखला को भी हवा में हुए इस हत्याकांड के लिए ‘लापरवाह-जिम्मेवार’ माना था। कनाडा के भूतपूर्व स्वास्थ्य मंत्री और वामपंथी रुख वाले भारतीय मूल के उज्जवल दो सांझ ने रिपुदमन सिंह मलिक की रिहाई को कानूनी चुनौती दी थी और उन्हें ही मुख्य आरोपी बताया था।                             

रिहाई के बावजूद रिपुदमन सिंह मलिक का नाम ‘काली सूची’ में शुमार रहा और उनकी गतिविधियों की निगरानी लगातार जारी रही। इस साल भारत सरकार ने सिखों की जिस काली सूची में फेरबदल किया, उसमें मलिक का नाम हटा दिया गया। बेअंत सिंह हत्याकांड में शामिल रहे रेशम सिंह बब्बर का भी। इस पर मौजूदा पंजाब सरकार की सहमति नहीं ली गई।  अब वही संदिग्ध माने जाने वाले रिपुदमन सिंह मलिक इन दिनों केंद्रीय एजेंसियों के खास सरकारी मेहमान हैं। केंद्र सरकार उनके जरिए रेफरेंडम 20-20 को निष्क्रिय करने की नीति पर चल रही है। इस सारे ‘खेल’ का अंदर का सच केंद्रीय खुफिया एजेंसियों और उनका सहयोग कर रहे मलिक सरीखे लोगों के अलावा कोई नहीं जानता। सब कुछ रहस्य में है।         

काली सूची में शामिल रहे और संदिग्ध अतीत वाले लोगों को भारतीय दूतावास अब बेरोकटोक वीजा दे रहे हैं। पहले इस मामले में अतिरिक्त सावधानी और सख्ती बरती जाती थी लेकिन बताया जाता है कि अब नियमों में भी कुछ ढील दी जा रही है। उनके खिलाफ दर्ज मामले भी रद्द किए जा रहे हैं। यह सब उसी ऑपरेशन का हिस्सा है।                                             

किसी वक्त कनाडा में खतरनाक आतंकवादियों की सूची में शिखर पर रहे और उत्तरी अमेरिका में खालिस्तानी लहर की पहली कतार के सक्रिय कारकून रहे धनाढ्य सिख नेता रिपुदमन सिंह मलिक अब बकायदा मोदी सरकार के साथ हैं। क्यों? यह यक्ष प्रश्न है और इसका जवाब फिलहाल केंद्र सरकार की खुफिया एजेंसियों या गृह मंत्रालय के सिवा किसी के पास नहीं है। कुछ सांकेतिक अनुमान जरूर बाकायदा इसकी पुष्टि करते हैं।                                               

भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक वेंनकूवर स्थित भारतीय हाई कमीशन के जरिए उनका ‘दिल्ली’ से संपर्क हुआ। करीब तीन हफ्ते पहले वेंनकूवर के हवाई अड्डे से उन्हें दिल्ली के लिए जहाज पकड़ना था पर उच्चाधिकारियों ने उन्हें रोक लिया और यह कहकर वापस भेज दिया कि उनका नाम ‘नो फ्लाई लिस्ट’ (यानी हवाई सफर पर प्रतिबंध) की सूची में शामिल है। बेहद हैरतअंगेज है कि महज चंद घंटों में रिपुदमन सिंह मलिक का नाम नो फ्लाई सूची से हटवा दिया गया और यह सब भारत सरकार के विशेष प्रयत्नों से हुआ। एक खुफिया अधिकारी ने इस पत्रकार को यह जानकारी मुहैया कराई है।

एक वरिष्ठ अकाली नेता ने भी इसकी पुष्टि की है कि इन दिनों रिपुदमन सिंह मलिक दिल्ली बतौर सरकारी मेहमान हैं और केंद्रीय एजेंसियां उनसे निरंतर मीटिंग कर रही हैं। उक्त अकाली नेता के मुताबिक मलिक को पंजाब और अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर का दौरा भी एजेंसियों के जेरेसाया करवाया गया है। पंजाब सरकार के अधिकारियों को फिलहाल तक इसकी पूरी जानकारी नहीं है। बेशक रिपुदमन सिंह मलिक का राष्ट्रीय राजधानी से लेकर अमृतसर तक विचरना बहुत बड़ी बात है। यकीनन असाधारण भी।                       

जानकारी के मुताबिक बीते लगभग दो महीनों से केंद्रीय सरकार द्वारा ‘भगोड़ा’ करार  दिए गए इंग्लैंड निवासी बलवीर सिंह बैंस, किसी वक्त खालिस्तान के तथाकथित राष्ट्रपति कहलाने वाले सेवा सिंह लल्ली, ठेकेदार जसवंत सिंह, जर्मनी में रहने वाले हरगोविंद सिंह बब्बर, फ्रांस रहने वाले ऋंगारा सिंह बब्बर तथा कई अन्य पूर्व खालिस्ता समर्थक दिल्ली आकर केंद्रीय खुफिया एजेंसियों और उनके ’पैरोकारों’ के साथ गुप्त बैठकें कर चुके हैं। इनमें से एक इंग्लैंड रहते अखंड किर्तनी जत्थे के प्रमुख नेता जसवंत सिंह तो विभिन्न विदेशी चैनलों पर मोदी सरकार का गुणगान करते भी देखें गए हैं।                                                       

जिक्रेखास है कि कनाडा में रहने वाले विवादास्पद खालिस्तानी सिख नेता रिपुदमन सिंह मलिक से लेकर इंग्लैंड, जर्मन और फ्रांस से आकर मोदी-शाह के विश्वासपात्र आला अधिकारियों से बात करने वाले और सरकारी मेहमाननवाजी हासिल करने वाले तमाम सिख नेता बब्बर खालसा और अखंड किर्तनी जत्थे के एक खेमे से वाबस्ता हैं। जानकारी के मुताबिक इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, सिख फेडरेशन यूके और सिख यूथ ऑफ अमेरिका आदि कुछ संगठन कोशिशों के बावजूद मोदी सरकार की इस रणनीति में शामिल नहीं हुए।                                                   

पंजाब पुलिस के एक बड़े अधिकारी का कहना है कि उन्हें केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की गतिविधियों की पूरी जानकारी फिलहाल नहीं है, अलबत्ता भनक जरूर है। पंजाब सरकार अपने तौर पर विदेशों में जारी खालिस्तानी गतिविधियों पर पैनी निगाह रखे हुए है। केंद्रीय एजेंसियों का 20–20 जैसे गंभीर मसले पर विश्वास में न लेना निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। पंजाब सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के मुताबिक यह मोदी सरकार की मनमानी की भी एक बानगी है। 

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल पंजाब के लुधियाना में रहते हैं।)

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