मोदी शासन का असली रोग क्या है !

फ्रायड के मनोविश्लेषण का एक बुनियादी सिद्धांत है – रोगी की खुद की कही बात पर कभी भरोसा मत करो । उसके रोग के पीछे का सच उसकी जुबान की फिसलन, अजीबोग़रीब कल्पनाओं, ऊटपटाँग आचरण में कहीं गहरे छिपा होता है । उस पर नज़र रखो, रोग के निदान का रास्ता खोज लोगे । 

यह बात मोदी पर शत-प्रतिशत लागू होती है । मोदी के रुग्ण शासन का सच भी उसके झूठे प्रचार, हिंदू-मुस्लिम विद्वेष और पाकिस्तान-विरोध मात्र में नहीं, इस शासन के दौरान जनता की बदहवासी के जो तमाम दृश्य बार-बार दिखाई पड़ते हैं, भारत में बढ़ती हुई भूख और प्रेस की आज़ादी के हनन के जो तथ्य बार- बार सामने आते हैं, पीएम केयर में हज़ारों करोड़ होने पर भी प्रवासी मज़दूरों को घर भेजने के लिये उनसे पाई-पाई वसूलने, कोरोना से लड़ने के लिये ताली, थाली बजाने और मोमबत्ती, दीया जलाने तथा सेना से पुष्प वर्षा और बैंड बजवाने की तरह के अकल्पनीय और घृणास्पद दृश्यों से मोदी शासन के रोग का सच अपने को ज़ाहिर करता है । 

यह सच मूलत: आरएसएस के विचारों का सच है । आरएसएस कभी भी जनता को राहत देने के किसी भी शासकीय कदम पर विश्वास नहीं करता है । वह कमज़ोरों के दलन और ताकतवर के प्रभुत्व के सिद्धांत पर बेहद निष्ठुर ढंग से विश्वास करता है । हिटलर का समर्थक होने के नाते सामाजिक डार्विनवाद, सर्वोत्तम की उत्तरजीविता को मन-प्राण से मानता है । ताक़त के थोथे प्रदर्शन की शक्ति पर हद से ज़्यादा यक़ीन करता है । 

इसके अलावा एक चरम पुरातनपंथी संगठन होने के नाते आरएसएस एक विज्ञान-विरोधी संगठन है । इसी वजह से राष्ट्र के विकास की इसकी कोई वैज्ञानिक अवधारणा नहीं है । वह राष्ट्र की सभी समस्याओं का निदान अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में देखता है, जिसका एक मात्र अर्थ है भारत के हिंदुओं में हिंदू गौरव का भाव पैदा करना । इस गौरव को वह मुस्लिम-विरोध की मात्रा से मापता है। इसीलिये कोरोना जैसे वैश्विक महामारी के संकट के काल में भी मोदी-अमित शाह की जोड़ी लोगों में बीमारी से लड़ने के लिये वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के बजाय मुस्लिम-विरोधी घृणा को फैलाने में ज़्यादा शिद्दत से लगी हुई है । 

आज हमारे देश में जनता की दुर्दशा के अकल्पनीय दृश्यों से मोदी शासन के रोग के इस विचारधारात्मक मूल को पकड़ा जा सकता है । ऐसे में केंद्र सरकार को उसकी मौजूदा पंगुता से तब तक मुक्त नहीं किया जा सकता है, जब तक आरएसएस और उसके मोदी की तरह के प्रचारक के हाथ में सत्ता की बागडोर रहेगी । भारत के आज के दुर्भाग्य का यह एक मूलभूत कारण है ।

 अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और चिंतक हैं आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

अरुण माहेश्वरी
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