कश्मीर में कार्रवाई का आख़िर इनका लक्ष्य क्या है?

अमित शाह ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर को अब भारत में मिलाया गया है । अर्थात्, वे भी अब तक पाकिस्तान की तरह कश्मीर को भारत का अविभाज्य हिस्सा नहीं मानते थे ! अभी के समय का उनका यह कथन दुश्मनों के लिये कश्मीर के मुद्दे का नये सिरे से अन्तरराष्ट्रीयकरण करने का एक अच्छा तर्क बन सकता है । 1947 के बाद से ही कश्मीर का विलय भारत में कभी विचार का कोई मुद्दा नहीं रहा है। बाद के दिनों में अलगाववाद और आतंकवाद जरूर मुद्दे रहे हैं ।

मोदी सरकार की दलील थी कि कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद धारा 370 की वजह से हैं । लेकिन अब, 5 अगस्त की कार्रवाई के एक पखवाड़े के बाद कहा जा रहा है कि धारा 370 को हटा कर कश्मीर के भारत में विलय के काम को पूरा कर लिया गया है। अब न आतंकवाद की चर्चा है और न अलगाववाद की । कोई यह नहीं दावा कर रहा है कि 5 अगस्त को धारा 370 के अंत और कश्मीर को सेना के सुपुर्द करके वहां से आतंकवाद और अलगाववाद को ख़त्म कर दिया गया है या किया जा रहा है । आज इन मुद्दों को गौण करके कश्मीर के भारत में विलय के उस मुद्दे को प्रमुखता दी जा रही है जो पहले कभी था ही नहीं । भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौते के बाद तो पाकिस्तान ने भी प्रकारांतर से भारत के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कश्मीर को भारत का अंग मान लिया था।

यह इस सरकार के एक अजीब से असंगत सोच का तीसरा बड़ा उदाहरण है। नोटबंदी के वक़्त मोदी ने कहा था देश से सारा काला धन ख़त्म हो जायेगा। नक़ली मुद्रा और आतंकवाद की भी कमर टूट जायेगी । लेकिन चंद रोज़ बाद ही इन मुद्दों को भुला कर दूसरी बातें दोहराई जाने लगीं । डिजिटलाइजेशन प्रमुख हो गया। बैंकों की अपार आमदनी का ढिंढोरा पीटा जाने लगा। काला धन के मूल लक्ष्य को एक सिरे से ग़ायब कर दिया गया। इसी प्रकार, जीएसटी को आज़ादी के जश्न की तरह मनाया गया ।

दावा किया गया कि सरकार ने पूरी तैयारी करके इस एक कर के ज़रिये भारत की कर प्रणाली की सारी जटिलताओं को ख़त्म कर दिया है । लेकिन आज हालत यह है कि जीएसटी में जैसे हर रोज़ कोई न कोई परिवर्तन लगा रहता है । दो साल पूरे हो चुके हैं, चीज़ें सुलझने के बजाय उलझती जा रही हैं। 17 जुलाई 2017 के जश्न का आज कोई भूल कर भी चर्चा नहीं करता है । जिस आधार पर कोई कदम उठाया जाता है, चंद दिनों बाद ही जब उस गलत कदम के दुष्परिणाम सामने आने लगते हैं तब उसके मूल कारणों को भुला कर दूसरी बातें रटना इस सरकार का एक मूलभूत चरित्र साबित हो रहा है। यह इसकी विवेक-हीनता से उत्पन्न अहंकार का ही एक नमूना है ।

दरअसल, मोदी और उनकी संघ मंडली की यह समस्या उनकी मूलभूत राजनीति की समस्या है। यह एक गलत, भटकी हुई और उन्मादपूर्ण राजनीति की समस्या है। वे घोषित रूप से तो भारत को एकजुट और मज़बूत करने की बात करते हैं, लेकिन सारे काम इसे अंदर से तोड़ने और कमजोर करने के करते हैं । जो राजनीति अपने घोषित लक्ष्यों से संगति नहीं रखती है, वह राजनीति कभी सही राजनीति नहीं हो सकती है । उनके ऐसे सभी उद्भट क़दमों के पीछे उनकी गलत एकात्मवादी राजनीति के तर्क काम कर रहे हैं ।

इन पर कोई भी विचार उस राजनीति के दायरे में मुमकिन नहीं है, बल्कि उससे बाहर एक सही, भारत के संघीय ढांचे और धर्म-निरपेक्षता पर आधारित राजनीति के आधार पर ही किया जा सकता है । जैसे किसी पागल आदमी के इलाज के लिये उसे सुधार गृह में रखा जाता है और सामान्य तौर पर बीमार आदमी को अस्पताल में, वैसे ही सांप्रदायिक और एकाधिकारवादी उन्माद की शिकार सरकार का इलाज सामान्य तरीक़े से संभव नहीं है । इनकी राजनीति को पराजित करके ही देश को इनके इन तमाम कृत्यों से बचाया जा सकता है। ये जब तक सत्ता में रहेंगे, उन्माद के ऐसे नित नये उदाहरण पेश करते रहेंगे।

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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