अयोध्या: बुजुर्गों की उपेक्षा और अपमान की यह कैसी हिंदू परंपरा?

हिंदू परंपरा में किसी भी धार्मिक या पारिवारिक आयोजन में परिवार के बुजुर्गों को सबसे आगे रखा जाता है। पूरी तरह से कमजोर या अशक्त बुजुर्ग का खास ध्यान रखा जाता है। उनके लिए विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं। लेकिन आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन यानी रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में ऐसा नहीं होगा। इस आयोजन में राम मंदिर आंदोलन के राजनीतिक तौर पर सूत्रधार और अगुआ रहे लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी को नहीं बुलाया जा रहा है।

इस सिलसिले में बेहद दिलचस्प और अजीबोगरीब बात यह है कि भाजपा और संघ परिवार के इन दोनों बुजुर्ग नेताओं को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से आयोजन का औपचारिक निमंत्रण तो दिया गया है लेकिन निमंत्रण पत्र देने के साथ ही बाकायदा उनसे यह भी कह दिया गया है कि उन्हें इस आयोजन में शामिल नहीं होना है।

अयोध्या में होने जा रहा यह आयोजन विशुद्ध रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का उपक्रम है। आरएसएस अपने को हिंदू संस्कृति का रक्षक और हिंदू परंपरा का वाहक बताता है, लेकिन इस आयोजन में वह अपने बुजुर्गों को घोषित तौर पर प्रयासपूर्वक अलग रख कर उलटी गंगा बहा रहा है।

विश्व हिंदू परिषद आरएसएस की आनुषांगिक शाखा है। परिषद के उपाध्यक्ष और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेन्स में जानकारी दी कि इस आयोजन में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी शामिल नहीं होंगे।

यह जानकारी देते हुए उन्होंने एक कमाल की बात कही। इस कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए लोगों के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में चम्पत राय ने कहा, “आडवाणी जी और जोशी जी का इस अवसर पर मौजूद रहना अनिवार्य है लेकिन उन्हें आना नहीं चाहिए। हमने उनसे नहीं आने का अनुरोध किया है, जिसे उन्होंने मान लिया है और वे नहीं आएंगे।”

सवाल है कि जब दोनों नेताओं का इस बड़े अवसर पर मौजूद होना अनिवार्य है और वे आना भी चाहते हैं तो उन्हें क्यों नहीं आना चाहिए? आयोजक क्यों चाहते हैं कि वे नहीं आएं? आखिर इसका क्या मतलब है? चम्पत राय ने दोनों की उम्र और सेहत का हवाल दिया।

उन्होंने आडवाणी को लेकर अपनी चिंता जताते हुए सवाल करने वाले पत्रकार से पूछा कि आपको मालूम है आडवाणी जी की उम्र कितनी है और तंज भी किया कि आप उनकी उम्र तक पहुंच भी पाएंगे? उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं से उनकी उम्र देखते हुए इस आयोजन में शामिल न होने का अनुरोध किया गया है, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है।

अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर आयोजकों ने तमाम पीठों के शंकराचार्यों और देशभर के 4000 से ज्यादा साधु-संतों के साथ ही करीब 2200 अन्य हस्तियों को आमंत्रित किया है। इन हस्तियों में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह, एचडी देवगौड़ा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, तिब्बतियों के सर्वोच्च धर्मगुरू दलाई लामा के साथ ही गौतम अडानी, मुकेश अंबानी, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत सहित उद्योग और फिल्म जगत की विभिन्न हस्तियों को बुलाया गया है।

जिन विशिष्ट हस्तियों को बुलाया गया है, उनमें से कई लोगों की उम्र 80 साल से अधिक है और कई 90 की उम्र को छूने वाले हैं। कई लोग शारीरिक रूप से अशक्त हैं और कई बीमार भी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह और एचडी देवगौड़ा तो 90 पार कर चुके हैं और दोनों की ही सेहत ठीक नहीं है। दलाई लामा 88 साल के हो चुके हैं।

इसके अलावा कई शंकराचार्य और प्रमुख साधु संत भी 80 की उम्र को पार कर चुके हैं। अमिताभ बच्चन 82 साल के हैं। इनमें से किसी की भी उम्र और सेहत की चिंता आयोजकों को नहीं है और इनमें से किसी को भी नहीं रोका जा रहा है बल्कि इन सभी के लिए ऐसे इंतजाम किए जा रहे हैं ताकि उन्हें अयोध्या पहुंचे तो कोई दिक्कत न हो। आयोजकों को चिंता सिर्फ आडवाणी और जोशी की है, इसलिए उम्र का हवाला देकर दोनों बुजुर्ग नेताओं को रोका जा रहा है।

आडवाणी की उम्र वाली बात मान भी लें तो सवाल है कि मुरली मनोहर जोशी को क्यों नहीं आना चाहिए? खुद चम्पत राय ने बताया है कि डॉक्टर जोशी आना चाहते हैं। सवाल है कि जब उनका वहां होना अनिवार्य और वे आना भी चाहते हैं तो आयोजक उन्हें आने से क्यों रोक रहे हैं? जोशी तो आडवाणी के मुकाबले शारीरिक तौर ज्यादा फिट हैं और वे अब भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं।

अभी हाल ही में उन्होंने दिल्ली में बेहद मशहूर और क्रिसमस लंच में भी शिकरत की थी, जिसकी तस्वीर दिल्ली के कुछ अखबारों में छपी थी। हर साल क्रिसमस से पहले इस लंच का आयोजन जाने-माने पीआर गुरू दिलीप चेरियन और उनकी पत्नी देवी चेरियन करती हैं, जिसमें दिल्ली की मशहूर हस्तियां शामिल होती हैं। डॉक्टर जोशी ने 16 दिसंबर को आयोजित इस लंच में हिस्सा लिया था, लेकिन चम्पत राय और आरएसएस के दूसरे नेता चाहते हैं कि डॉक्टर जोशी 22 जनवरी को अयोध्या न पहुंचे।

सवाल है कि राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट आडवाणी और जोशी को अयोध्या आने से क्यों रोकना चाहता है या किसके इशारे पर दोनों नेताओं को आने से रोका जा रहा है? यह कौन सी हिंदू परंपरा है जिसके तहत परिवार के दो बुजुर्गों को इतने बड़े आयोजन में शामिल होने से रोका जा रहा है?

चम्पत राय समेत इस आयोजन के तमाम कर्ताधर्ता क्यों चाहते हैं कि जिन बुजुर्गों ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए देशव्यापी आंदोलन चलाया और बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कराने में अहम भूमिका निभाई हो, वे अब रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल न हों?

आयोजन के कर्ताधर्ता भले ही बुजुर्गों को उनकी उम्र का हवाला देकर अयोध्या पहुंचने से रोक रहे हों, लेकिन असली वजह यह है कि अगर आडवाणी और जोशी वहां आए तो अयोध्या आंदोलन में उनके योगदान की, उनकी रथयात्राओं की चर्चा होगी और उन चर्चाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदान चर्चा दब या ढक जाएगी।

पूरा श्रेय एक व्यक्ति को मिले, इसके लिए अयोध्या आंदोलन के सूत्रधार और शीर्ष नेता रहे बुजुर्गों को अयोध्या आने से रोका जा रहा है। कहने की आवश्यकता नहीं कि संघ परिवार का अयोध्या आंदोलन एक राजनीतिक उपक्रम था और वहां मंदिर निर्माण और उसमें मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन भी एक राजनीतिक उपक्रम है, जिसका धर्म से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अनिल जैन

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  • आप लोगों के दिमाग में किडे भरे हैं और ऐसी बिमारी का कोई इलाज नहि

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