आखिर कब तक जेलेंस्की चढ़े रहेंगे अमेरिकी चने की झाड़ पर?

मौजूदा दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष बने बैठे लोगों में ज्यादातर विदूषक, क्रूर, तिकड़मबाज, झूठे, जुमलेबाज, अलोकतांत्रिक, जनविरोधी, असहिष्णु, अमानवीय,अविवेकी,बर्बर,फासिस्ट, विलासी मानसिकता के हैं। इनको अपने देश की आम जनता, गरीबों, किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों, बेरोजगारों आदि के जीवन की बेहतरी से कुछ लेना-देना नहीं है, उल्टा वे ऐसी दुर्नीतियों को कार्यान्वित कर रहे हैं जिससे उक्त वर्णित आमजन का जीवन संकट में पड़ गया है। इसमें बहुत सारे देशों के ‘कर्णधारों’ का नाम गिनाया जा सकता है,लेकिन यूक्रेन के वर्तमान शासक व्लादिमीर जेलेंस्की इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर हैं। 

पिछले महीने जेलेंस्की की इस जिद कि वह इस दुनिया को सदा युद्ध की विभीषिका में झोंकने को उद्यत संयुक्त राज्य अमरीका के युद्धक संगठन नाटो में सम्मिलित होकर रहेगा, ने यूक्रेन और रूस को भयंकर युद्ध की आग में झोंक दिया है। 24 फरवरी से शुरू हुए इस युद्ध में विगत 30 दिनों में दोनों पक्षों के निरपराध व बेकसूर, सैन्य व असैन्य नागरिकों को अपने अमूल्य जीवन से हाथ धोना पड़ा है,क्योंकि युद्ध में वास्तविक जनहानि होने की सही संख्या का सही आंकड़ा विभिन्न कारणों से जनसामान्य को कभी भी नहीं बताया जाता है। फिर भी रूस के एक आधिकारिक प्रवक्ता के अनुसार यूक्रेन से हुए युद्ध में उसने अपने बड़े अफसरों समेत 9861सैनिकों को खो दिया है,इसके अलावा उसके 16153 सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए हैं। वैसे यूक्रेन के अनुसार वह रूस के 15300 सैनिकों को मौत के घाट उतार चुका है। 

उधर यूक्रेन में सबसे ज्यादा जानमाल का नुक़सान उसके समुद्र तटीय शहर मरियुपोल शहर में हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ, बीबीसी आदि तमाम विश्वस्त मीडिया संस्थानों की तरफ से जारी रिपोर्टों के अनुसार 4 लाख से कुछ अधिक आबादी वाले इस शहर में 1000 से ज्यादा बिल्डिंग्स ध्वस्त हो चुकी हैं। और 3000 से भी ज्यादे लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे बड़े दु:ख की बात यह है कि इस भीषण युद्ध से इस शहर के 177 नौनिहालों की अब तक मौत हो चुकी है,155 बच्चे गंभीर रूप से घायल हैं। 35 लाख से भी ज्यादा लोग अपने वतन को छोड़कर पोलैंड,हंगरी जैसे पड़ोसी देशों में शरण लेने को बाध्य हुए हैं। 65 लाख से भी ज्यादा लोग अपने देश यूक्रेन में ही रूसी बमबारी से बेघर होकर शरणार्थी बनकर रह गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार इस युद्ध में मृतकों की संख्या दोनों पक्षों द्वारा दिए जा रहे आंकड़ों से भी बहुत ज्यादा होने की आशंका है। युद्ध से लगभग पूरी तरह से तबाह हो चुके पूरे यूक्रेन में विस्थापितों की संख्या करोड़ों से ऊपर पहुंच चुकी है। अभी पिछले दिनों रूस ने यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की से आत्मसमर्पण करने की पेशकश की थी,लेकिन किसी अज्ञात स्थान पर छुपकर सुरक्षित बैठे यूक्रेनी राष्ट्रपति ने यह कहते हुए कि ‘उसका देश अंतिम दम तक युद्ध करेगा। ‘ आत्मसमर्पण करने से इंकार कर दिया।

यक्ष प्रश्न यह है कि हास्य फिल्मों के एक कलाकार की पृष्ठभूमि से राजनीति में आए यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की का युद्ध जारी रखने का अब उद्देश्य क्या रह गया है? अमेरिका नीत नाटो ने उसे अब अपना सदस्य बनाने से भी मना कर दिया है। अब वह एक निस्तेज यूरोपियन यूनियन का सदस्य मात्र रह गया है। नाटो और नाटो के मुख्य अगुआ कथित महाबली अमेरिका को अफगानिस्तान में कुछ हजार इस्लामी आतंकवादियों से डरकर भागते हुए सारी दुनिया देख चुकी है। वही अमेरिका और उसके कुछ नाटो के सदस्य देशों से चोरी-छिपे मिले हथियारों के बल पर यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की रूस जैसे परमाणु हथियारों से संपन्न महाबली देश से अंतिम दम तक युद्ध करने की जिद पर अड़ा हुआ है। और इस कड़ी में उसने यूक्रेन के आम नागरिकों,औरतों और बच्चों को बलि का बकरा बना दिया है। वहां से सोशल मीडिया पर नौनिहालों की दिल दहला देने वाली तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं। आखिर यह कब तक चलता रहेगा।

दुनियाभर के राजनीति के मजे हुए प्रबुद्ध वर्ग तथा बुद्धिजीवियों का यह कहना है कि आज अगर व्लादिमीर जेलेंस्की की जगह कोई राजनैतिक रूप से परिपक्व, सुलझा, बुद्धिमान तथा विवेकशील व्यक्ति यूक्रेन का राष्ट्रपति रहता तो वह बहुत पहले ही रूस से समझौता करके अपने देश के लोगों को इस वीभत्स, हृदयविदारक रक्तपात से बचा लिया होता। सवाल यह है कि आखिर अब खुद किसी अज्ञात स्थान पर बंकर में छिपे व्लादिमीर जेलेंस्की की अंतिम दम तक युद्ध जारी रखने का उद्देश्य क्या है ? अमेरिका तथा उसके दुमछल्ले नाटो के अन्य सदस्यों को भी यह बात कब समझ में आएगी कि यूक्रेन को दिए जाने वाले युद्धक सामानों से रूस की सेना को कम लेकिन यूक्रेन की निरपराध आम जनता, नन्हें बच्चे और औरतों को ज्यादा नुकसान हो रहा है। 

इसके ठीक विपरीत कथित महाबली अमेरिका और उसके गुर्गे देश स्वयं और उनके देश की जनता यूक्रेन से हजारों किलोमीटर दूर बिल्कुल सुरक्षित जगह पर आराम से बैठे हुए हैं। सबसे बड़े दु:ख की बात यह है कि अमेरिका जैसे देश की गोद में बैठे संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी वैश्विक संस्थाओं का विवेक कब जागेगा ? यह मोटी सी बात उन्हें कब समझ में आएगी कि नाटो के सदस्य बने देशों को अब समझाया जाना चाहिए कि उनके यूक्रेन को चोरी-छिपे दिए गए छोटे-मोटे हथियारों से युद्ध रूपी आग में घी डालने जैसा कुकृत्य है। इससे यूक्रेन के राष्ट्रपति को यह गलतफहमी हो रही है कि वह सैन्य महाबली रूस को इन टुटपुंजिए देशों द्वारा दिए गए हथियारों के बल पर हरा देगा। इससे बड़ी अदूरदर्शिता और मूर्खता की मिसाल शायद ही कहीं अन्यत्र मिले। अब संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी नकारा वैश्विक संस्थाओं के अस्तित्व पर विचार करने का समय आ गया है। क्या संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रशासकों का अमेरिका को समझाने का पावन कर्तव्य नहीं बनता है? 

प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में मानवता के भीषण सर्वनाश व आमजन के संहार के बाद भी पिछले 70 सालों से अमेरिका जैसे रक्त पिपासु देशों के कर्णधारों की रक्त पीने की जिजीविषा अभी तक शांत नहीं हो पा रही है। वास्तविकता यह है कि यूक्रेन-रूस युद्ध का वास्तविक सूत्रधार और खलनायक अमेरिका और उसके पिछलग्गू देश हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध में मरने वाले निरपराध लोगों का वास्तविक युद्ध अपराधी रूस नहीं,अपितु अमेरिका है।

अमेरिका पर युद्ध अपराध को प्रेरित करने और युद्ध भड़काने की परिस्थितियों को पैदा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाकर उसे दंडित किया जाना चाहिए । वैसे तो संपूर्ण मानवीय इतिहास ही युद्ध और रक्तपात से सना हुआ है,लेकिन वर्ष 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध और वर्ष 1939 में शुरू हुए द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर आज यूक्रेन-रूस युद्ध तक में पूरे 107 सालों के एक बहुत बड़े कालखंड में मानवता की बहुत हत्या हो चुकी है। मानवता कराह रही है,आर्तक्रंदन कर रही है। अब मानवता की हत्या करने वाले इस महाविनाशक युद्ध को बंद कराने के लिए हर हाल में पूर्ण ईमानदारी,संजीदगी तथा प्रतिबद्धता से कोशिश होनी ही चाहिए। 

(निर्मल कुमार शर्मा लेखक और टिप्पणीकार हैं।)

निर्मल कुमार शर्मा
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निर्मल कुमार शर्मा