“25 वाला आटा 150 रुपये प्रति किलो पहुंच जाएगा, तब आप क्या करेंगे?”

“जिस मुजारा आंदोलन का अंत पंजाब में 1953 में हुआ था आज वैसा ही आंदोलन नए रूप में कृषि कानूनों के जरिए आया है। यहां शामिल हुए सभी किसान अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। किसान पूरी दुनिया के अन्नदाता हैं, हम उनके साथ धक्के शाही बर्दाश्त नही करेंगे। हम भगत सिंह के सपनों का देश देखने जा रहे हैं।”

यह कहना है पंजाब से आई थिएटर और ड्रामा स्टडीज की PHD स्कॉलर डॉ. वीरा विनोद का। 35 वर्षीय वीरा लगभग पिछले एक महीने से दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसानों के साथ मौजूद हैं। सिंघु बॉर्डर पर वीरा ऐसी अकेली महिला नहीं हैं, वह यहां अपने जैसी कई और PHD स्कॉलर्स के साथ आई हैं। खास बात यह है कि इन महिलाओं के साथ उनका परिवार भी इस आंदोलन में शामिल होने आया है। इनमें 5 पांच साल की राव्या भी शामिल हैं, जो अपने माता-पिता के साथ किसानों को अपना समर्थन देने पहुंची हैं।

डॉ. वीरा।

इस पूरे आंदोलन में महिलाओं के अहम् किरदार को नकारा नहीं जा सकता। यहां महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ देती नज़र आ रही हैं। इस आंदोलन में ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं जिन्होंने शायद इससे पहले अपने घरों से कदम तक बाहर नहीं निकाले होंगे। हरियाणा के यमुना नगर से आया अमरजीत का परिवार भी ऐसी ही एक मिसाल पेश करता है। घर पर ताला लगा 44 वर्षीय अमरजीत अपने परिवार की 5 अन्य महिलाओं और दूसरे परिवार वालों के साथ सिंघु बॉर्डर पर डटी हुई हैं। इनमें बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं।

किसानों को हो रही परेशानियों के लिए अमरजीत ने एनडीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया। इसी के साथ उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को भी लपेटे में ले लिया। अमरजीत कहती हैं कि “हमारी कोई नही सुन रहा। हम सब यहां बहुत परेशान हैं। न मोदी सुन रहा है और न ही खट्टर। दुष्यंत भी किसान हैं, इसलिए पहले हमें उनसे उम्मीदें थीं लेकिन अब वो भी ऐसे ही निकल गए। जो वादे दुष्यंत ने हमसे किए थे, उनका अब क्या?”

जब कड़कड़ाती ठण्ड में लोगों का अपने घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में हज़ारों किसान अपने परिवारों के साथ दिल्ली के अलग-अलग सीमाओं पर डटे हैं। तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों की मांग किसी से छुपी नहीं है। यह पूरा आंदोलन कृषि और किसानों से जुड़ा है लेकिन इसमें किसानों के अलावा भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो खेती से ताल्लुक न रखते हुए भी किसानों को अपना समर्थन देने के लिए यहाँ पहुंचे हुए हैं।

अमरजीत।

31 नवम्बर से सिंघु बॉर्डर पर जमकर बैठे पंजाब से आए हरबंस सिंह भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं, जो किसान नही हैं लेकिन किसानों को अपना समर्थन देने से पीछे नहीं हटे। बता दें कि 65 वर्षीय हरबंस एक दुर्घटना में अपना एक हाथ गवां बैठे थे, लेकिन उन्होंने अपना हौसला कभी नही खोया। हरबंस की मानें तो इन तीनों कृषि कानूनों से किसान को ही नहीं बल्कि आम आदमी को भी नुक्सान है। वो कहते हैं कि, “ये कानून किसानों के लिए हैं लेकिन जब ये कानून किसानों को ही मंज़ूर नहीं हैं, तो किस काम के हैं ये कानून? कॉर्पोरेट के आ जाने से सभी का नुक्सान है। अभी आटा 25 से 30 रूपए प्रति किलो मिलता है लेकिन तब यही आटा 150 रूपए प्रति किलो तक पहुँच जाएगा। तब आप क्या करेंगे?”

हरबंश सिंह।

तो वहीं इस शांतिपूर्ण आंदोलन को कुछ असामाजिक तत्व बदनाम करने का भी प्रयास कर रहे हैं। भले ही किसान कह रहे हैं कि उन्हें यहां किसी तरह की दिक्कत नहीं है लेकिन कहीं न कहीं उनके मन में इस बात को लेकर एक डर जरुर है। पंजाब के जलंधर से आए 52 वर्षीय राणा बताते हैं कि “किसान अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करके रखते हैं। यहां कुछ लोग फ्री में शराब बांटकर इस आंदोलन को बदनाम करना चाहते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए लगभग 100 से भी अधिक वालंटियर्स टॉर्च और डंडा हाथ में लिए पूरी रात किसानों के खेमे की निगरानी करते हैं।” बता दें कि सुरक्षा के ये इंतजाम ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के बैनर तले किए जा रहे हैं। इसके लिए हरे रंग की जैकेट वालंटियर्स को दी गई है, जिसे पहनकर वे बारी-बारी रात में निगरानी करते हैं।

राणा और उनके भाई।

पंजाब से आए 75 वर्षीय दिलेर सिंह 26 नवम्बर से सिंघु बॉर्डर पर मौजूद हैं, जो अपने परिवार को छोड़ यहां कृषि कानूनों की लड़ाई में शामिल होने के लिए दिल्ली चले आए। घर पर बैठी उनकी पत्नी से भी रहा न गया और वो भी उनका साथ देने 10 दिन पहले दिल्ली चली आईं। इन दोनों का कहना है कि चाहे उनकी जान कुर्बान हो जाए लेकिन वो अपनी मांगों से पीछे नहीं हटेंगे और न ही अपनी जगह से हिलेंगे। उनका यह भी कहना है कि वो दिल्ली आने से पहले ही वे साल भर के राशन का इंतजाम करके आए थे।

दिलेर सिंह और उनकी पत्नी।

जाहिर है हजारों की तादाद में सीमाओं पर बैठे इन किसानों को वैसी सुविधा तो नहीं मिल रही होंगी जो इन्हें इनके घरों में रहते हुए मिलती। लेकिन किसानों का कहना है कि जगह-जगह लंगर और अन्य जरुरत का सामान मिलने से इन्हें घर की कमी नहीं खल रही है। यहां रहने-सहने से लेकर दैनिक उपयोग में आने वाली छोटी से छोटी चीज भी फ्री में उन्हें उपलब्ध हो रही हैं। किसानों की मानें तो इस आंदोलन में अरदास भी है, नमाज भी है और पूजा-आराधना भी।

(पत्रकार कीर्ति राजोरा की रिपोर्ट।)

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