चीनी घुसपैठ पर पर्दादारी: आखिर क्यों और किससे?

नई दिल्ली। भारतीय सैनिकों की वीरता कथा को भारतीय जनता से छिपाने की कोशिश अगर होती दिखे, तो यह सहज सवाल उठेगा कि आखिर ऐसा क्यों किया गया है और इसके पीछे मकसद क्या है?

इन सवालों पर हम लौटेंगे। लेकिन पहले इस बात का उल्लेख कर लें कि आखिर हुआ क्या है?

• मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जून 2020 में गलवान घाटी में हुई मुठभेड़ के बाद 2021 और 2022 में भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की सेना ने हमले किए।

• यह जानकारी भारतीय सेना के बहादुरी पुरस्कारों के कुछ वीडियो में सामने आई है, जिन्हें सेना ने खुद यूट्यूब पर डाला।

• लेकिन जल्द ही उन वीडियो को यूट्यूब से हटा लिया गया।

• मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हाल ही में भारतीय सेना की पश्चिमी कमांड और सेंट्रल कमांड ने अपने अपने अलंकरण समारोहों का आयोजन किया। समारोहों में दोनों कमांड के सैनिकों को बहादुरी पुरस्कार दिए गए। इस तरह के समारोहों में पुरस्कार देते समय संबंधित घटनाका विवरण दिया जाता है। यह बताया जाता है कि किसी सैनिक को कहां दिखाई गई वीरता के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है।

• उन दोनों समारोहों में पढ़े गए विवरणों से यह बात सामने आई कि गलवान की घटना के बाद भी चीन की सेना (पीएलए) ने कम-से-कम दो बार हमले किए।

• दरअसल, अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक 2021 और 2022 में एलएसी पर दोनों सेनाएं कई बार एक दूसरे के सामने आईं।

• अखबार के मुताबिक पश्चिमी कमांड ने यूट्यूब पर जब तक एक वीडियो नहीं डाला, तब तक उन घटनाओं की कोई जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थी।

• अखबार ने यह भी कहा है कि जब वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा होने लगी, तो सेना ने उसे यूट्यूब से हटवा दिया।

• एक अन्य अखबार के मुताबिक सात जनवरी 2022 को एलएसी पर भारतीय सेना की एक चौकी पर पीएलए के कुछ सिपाहियों ने हमला कर दिया। चौकी पर तैनात सिख लाइट इन्फैंट्री की आठवीं बटालियन के सिपाही रमन सिंह ने चीनी सिपाहियों को रोका, जिसके बाद उनके बीच हाथापाई हुई।

• इसी रिपोर्ट के मुताबिक 27 नवंबर 2022 को पीएलए के 50 सैनिकों ने एलएसी पार करने की और भारतीय सेना की एक चौकी पर कब्जा करने की कोशिश की। जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 19वीं बटालियन के नायब सूबेदार बलदेव सिंह के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी ने इन चीनी सैनिकों का मुकाबला किया। इस मुठभेड़ में 15 चीनी सैनिक घायल हुए। दोनों सेनाओं के बीच यह गतिरोध दो दिनों तक चला।

• इस घटना में बलदेव सिंह घायल भी हो गए। इस बहादुरी के लिए उन्हें सेना का वीरता पुरस्कार दिया गया। बटालियन के कमांडिंग अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल पुश्मीत सिंह को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

अखबारी रिपोर्टों के मुताबिक इन सभी अभियानों की जब सोशल मीडिया पर चर्चा होने लगी, तो पश्चिमी कमांड ने इस वीडियो को यूट्यूब से हटा लिया। सेना ने इस बारे में कोई बयान जारी नहीं किया है, इसलिए यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये वीडियो क्यों डाले गए और बाद में हटा क्यों दिए गए।

 अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसा उन घटनाओं को चर्चा में आने से रोकने के लिए किया गया। यानी इन मुठभेड़ों की खबर को भारतीय जनता से छिपाया गया। क्यों?

– और ऐसा किसके आदेश पर किया गया?

 इतनी बड़ी घटनाओं को देश की जनता- यहां तक कि विपक्षी दलों से भी छिपाने के पीछे उद्देश्य क्या है?

क्या ऐसा वर्तमान सरकार की “मर्दाना” विदेश नीति के नैरेटिव को बचाने के लिए किया गया है? इस नैरेटिव के तहत “घर में घुस कर मारने” का दावा किया गया था। क्या किसी को यह भय है कि एलएसी की घटनाएं अगर बहुचर्चित हुईं, तो इस दावे में छेद हो जाएगी?

गलवान घाटी की घटना के चार दिन बाद यानी 19 जून 2020 को हुई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “ना कोई घुसा है, ना कोई घुस आया है, ना किसी भारतीय चौकी पर किसी ने कब्जा किया” का बहुचर्चित बयान देकर सबको चौंका दिया था।

चीन ने इसे अपने लिए क्लीन चिट माना और चीनी मीडिया ने उस टिप्पणी को प्रचारित करने का पुरजोर अभियान चलाया। चीन ने संदेश दिया कि उसकी तरफ से ऐसा कुछ नहीं किया गया है, जिसे मान्य व्यवहार का उल्लंघन समझा जाए।

तब से भारत सरकार की तरफ से चीन के खिलाफ अस्पष्ट बातें कही जाती रही हैं। यह कहा गया है कि सीमा पर चीन की गतिविधियों के कारण दोनों देशों के संबंध खराब हुए हैं। लेकिन साथ ही यह संदेश देने की कोशिश हुई है कि भारतीय सीमा का कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह यह कई बार कह चुके हैं कि वर्तमान सरकार के शासनकाल में भारत की एक इंच जमीन पर भी किसी ने कब्जा नहीं किया है।

 पूर्व सेनाध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने तो फरवरी 2021 में यह कह दिया था कि जितनी बार चीनी सेनाएं भारतीय सीमा में घुसी हैं, उससे कहीं अधिक बार भारतीय सैनिकों ने ऐसा किया है।

लेकिन इसी बीच पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन में लद्दाख पुलिस की तरफ से पेश यह रिपोर्ट चर्चित हुई थी कि लद्दाख क्षेत्र में 26 चौकियों पर अब भारतीय सुरक्षा बल नहीं जा सकते, जबकि मई-जून 2020 के पहले तक वे वहां गश्त लगाते थे।

अन्य मीडिया रिपोर्टों में भी सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर सीमा का अतिक्रमण होने की बातें कही जाती रही हैं। इसी बीच यह खबर भी आई कि 1962 के युद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों के लिए बने एक स्मारक को तोड़ना पड़ा, क्योंकि वह क्षेत्र बफर जोन में आ गया।

बफर जोन इसलिए बने, क्योंकि भारतीय सीमा में घुस आई चीनी सेना ने वापस जाने के लिए पांच किलोमीटर तक के क्षेत्र को ऐसा इलाका बनाने की शर्त रखी, जहां दोनों देशों की सेनाएं नहीं जाएंगी। उपरोक्त स्मारक इसी क्षेत्र में मौजूद था।

ताजा खबर को इन्हीं घटनाओं को और खबरों के सिलसिले में देखा जाएगा। ये तमाम खबरें दुर्भाग्यपूर्ण हैं। मुद्दा सिर्फ यह नहीं है कि चीनी सेना ने घुसपैठ की। बड़ा मुद्दा यह है कि इस घुसपैठ पर परदा डालने की कोशिश हुई। जबकि जरूरत इन घटनाओं पर भारतीय जनता को विश्वास में लेकर ऐसी आम सहमति तैयार करने की थी, जिससे चीनी चुनौती का जवाब दिया जा सके।

लेकिन वर्तमान सरकार ने संभवतः यह समझा कि इस प्रक्रिया से उसकी 56 इंची छवि टूट जाएगी। साथ ही सीमा पर ऐसे हालात क्यों पैदा हुए, इस बारे में उससे कई गंभीर सवाल पूछे जाएंगे। संभवतः इस चर्चा में सरकार की नीतियों और रिकॉर्ड पर भी प्रश्न उठाए जाते। इसलिए संभवतः यह सोचा गया कि बात को परदे में रखा जाए।

लेकिन क्या ऐसी सोच राष्ट्र हित में है?

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

सत्येंद्र रंजन
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