जस्टिस फॉर जज-6: किस डर से अयोध्या फैसले में इसे लिखने वाले जज का नाम नहीं है गोगोई साहब?

‘जस्टिस फॉर जज’ में जस्टिस रंजन गोगोई ने अयोध्या सहित तमाम मुद्दों पर सफाई दी है पर यह नहीं बताया है कि फैसला किसने लिखा है किस डर से इस बात को छुपा लिया गया है। क्या इसीलिए फैसला सुनाने के बाद 5 स्टार होटल ताज मानसिंह में फैसले में शामिल जजों को गोगोई साहब ने उम्दा वाईन पिलायी थी और चाईनीज भोजन कराया था? जस्टिस फॉर जज में अयोध्या विवाद पर सुनवाई करने वाले पैनल के जजों के साथ दिल्ली के फाइव स्टार होटल में डिनर के वक्त की एक तस्वीर है। इस तस्वीर को उन्होंने कैप्शन दिया है ‘सेलिब्रेटिंग द लैंडमार्क अयोध्या वर्डिक्ट।’

5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया। साथ ही मस्जिद के लिए अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने के लिए कहा गया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने 1045 पन्नों में अपना फैसला सुनाया है। हालांकि, यह फैसला किसने लिखा है, इसका खुलासा नहीं किया गया।

आमतौर पर किसी भी फैसले में पीठ की तरफ से उसे लिखने वाले जज के नाम का जिक्र होता है। लेकिन इस बार उच्चतम न्यायालय ने परंपरा तोड़ते हुए फैसला लिखने वाले जज का नाम नहीं दिया। आमतौर पर ऐसा नहीं होता। अयोध्या मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ ने किया। इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे। इससे पहले मौजूदा समय के फैसलों में ऐसा कोई वाकया नहीं रहा, जब सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले में जजमेंट के लेखक का नाम न दिया गया हो। सोशल मीडिया पर भी लोग इस पर आश्चर्य जता रहे हैं।

जस्टिस गोगोई ने सफाई दी है कि वह सीजेआई के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री से एक बार भी नहीं मिले थे। अयोध्या फैसले के बदले सांसद पद के आरोपों पर उन्होंने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी लेने वाले अब एक्टिविस्ट जज हो गए हैं। जब प्रधानमंत्री राफेल फैसले से पहले सुप्रीम कोर्ट गए थे, तब लोगों ने दावा किया था कि दाल में कुछ काला है। उन्होंने कहा कि दाल तो काली ही होती है, नहीं तो क्या दाल है। वह (प्रधानमंत्री) 26 नवंबर को संविधान दिवस पर आए थे। मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत है। ऐसे जज भी थे जिन्होंने प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी ली थी और अब वे एक्टिविस्ट जज हैं। गोगोई साहब ने नहीं बताया कि वे कौन या कौन-कौन जज थे?

भारतीय जनता पार्टी को गोगोई का सबसे बेशकीमती तोहफा नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) का अपडेट है, जिसने सरकार को राष्ट्रीय नीति का रोडमैप तैयार करने का अवसर दिया। अक्टूबर 2013 से अक्टूबर 2019 तक गोगोई ने एनआरसी से संबंधित कई मामलों की सुनवाई की थी। उनके जरिए उन्होंने एक खाका तैयार किया जिससे राज्य में “विदेशी” समझे जाने वालों की शिनाख्त हो सके और उन्हें वापस भेजा जा सके। इसके लिए उन्होंने जो तरीका सुझाया उसके मुताबिक बेरहम और जबरदस्त तकनीकी किस्म की मूल्यांकन प्रक्रिया से गुजरने के बाद, जिस में गड़बड़ी होना लाज़िमी था, लाखों लोगों की भारत की नागरिकता छीनना था ।साफ है कि असम के मूल निवासी गोगोई की एनआरसी को लेकर गहरी भावनाएं हैं। ऐसा ही उन्होंने सार्वजनिक बयान भी दिया है ।

न्यायमूर्ति गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने असम में एनआरसी सत्यापन प्रक्रिया चलाई। अगस्त 2019 में प्रकाशित अंतिम एनआरसी सूची में लगभग 2 मिलियन व्यक्तियों को बाहर रखा गया था। ऐसी कई रिपोर्टें हैं जो बताती हैं कि कैसे 1971 के दशकों पुराने दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता साबित करने की इस प्रक्रिया ने लोगों, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनका संस्मरण नागरिकता के संबंध में लाखों लोगों की चिंताओं को यह कहकर तुच्छ बताता है:एनआरसी से किसी नाम का बहिष्कार सड़क का अंत नहीं है। इस तरह का बहिष्कार एक अच्छी तरह से निर्धारित न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है, यानी फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के समक्ष चुनौती”।

2019 में, असम में हिरासत केंद्रों में मानवीय स्थिति की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, पीठ का नेतृत्व कर रहे गोगोई ने राज्य सरकार को बंदियों को निर्वासित नहीं करने के लिए फटकार लगाई थी। बाद में, मामले में याचिकाकर्ता हर्ष मंदर ने पक्षपात की आशंका का हवाला देते हुए गोगोई को मामले से अलग करने का अनुरोध किया और कहा कि उनकी याचिका को बंदी के निर्वासन का आदेश देने के लिए बेंच द्वारा परिवर्तित किया जा रहा था। गोगोई ने न केवल याचिकाकर्ता के पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया बल्कि याचिकाकर्ता के रूप में हर्ष मांडे को हटा दिया और सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति को याचिकाकर्ता के रूप में प्रतिस्थापित किया।

जबकि गोगोई बार-बार अपने संस्मरण में दावा करते हैं कि एनआरसी एक कानूनी आवश्यकता है, उन्होंने आलोचकों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया कि उनकी पीठ ने इस प्रक्रिया को तेज क्यों किया, जबकि नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए की संवैधानिकता – एनआरसी के लिए कानूनी आधार – विषय है। लंबित याचिका का मामला। CJI के रूप में, गोगोई ने पहले इस संवैधानिक मुद्दे को तय करने के लिए एक बेंच का गठन नहीं किया। 13 अगस्त, 2019 को, उनकी पीठ ने दर्ज किया कि अंतिम एनआरसी सूची धारा 6 ए की वैधता पर संविधान पीठ के फैसले के परिणाम के अधीन होगी।

इसके अलावा अनुच्छेद 370,कश्मीर में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को ,सीबीआई के तत्कालीन चीफ आलोक वर्मा के मामले,सबरीमाला विवाद जैसे कई अन्य मामले हैं जिनमें जस्टिस गोगोई की भूमिका पर सवाल हैं और उनकी किताब इसका कोई वैध जवाब देती हुई नहीं दिखती। गोगोई अपने प्रति कितने ईमानदार हैं यह केवल एक तथ्य से समझा जा सकता है कि चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस में मास्टर ऑफ़ रोस्टर पर सवाल उठाने में शामिल जस्टिस गोगोई ने चीफ जस्टिस बन जाने के बाद उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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