आखिर क्यों हो रहा है पूर्व राष्ट्रपति का प्रशस्ति गान?

(पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी गुजर गए। वे भारतीय राजनीति पर बहुत ही गहरी लकीर खींचने वालों में से एक हैं। प्रणब मुखर्जी 1973 में इंदिरा गांधी के कैबिनेट में शामिल किए जाते हैं। 1973 में रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना होती है। 1975 में इमरजेंसी लगायी जाती है, दो साल के बाद पहला गुजराती मोरारजी देसाई देश का प्रधानमंत्री बनता है। लेकिन तीन साल के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटती हैं, प्रणब बाबू मंत्री तो बनते ही हैं 1982 में वित्त मंत्री बनते हैं। यह वह काल था जब धीरूभाई के ‘अंबानी’ बनने की प्रक्रिया गति पकड़ती है। 

लुटियन्स में कुछ पत्रकार आपको मिल जाएंगे जो बताएंगे कि किस तरह बड़े भाई मुकेश अंबानी ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने की व्यूह रचना की। शायद चलते-चलते आपको वह यह भी बता दें कि कैसे उनको समर्थन दिलाने के लिए अंबानी ने मुलायम सिंह को रात के दस बजे लखनऊ से सोते में से ‘सादर’ दिल्ली उठाकर ले आए थे। मुलायम सिंह दिल्ली आने को इतने आतुर थे कि हड़बड़ी में चप्पल भी पहनना भूल गए। 

इसके बाद जब वह अंबानी के साथ प्रणब मुखर्जी के बंगले पर योजना बना रहे थे तो उनके लिए कनॉट प्लेस की बंद दुकानों में नया स्लीपर खोजा जा रहा था! प्रणब मुखर्जी वह शख्स थे जिसने अंबानी के लिए पूरे देश को लुटा दिया। प्रणब दा के चार खंडों में लिखी गई आत्मकथा में कहीं इस बात का जिक्र नहीं मिलेगा। इसलिए कहा भी जाता है कि जितना वह इस आत्मकथा में कह गए, उससे कई गुना ज्यादा राज वह दबा गए हैं। आज सब लोग प्रशस्ति गा रहे हैं। प्रशस्ति गान व रूदाली हम भारतीयों का प्रिय गीत है, इसलिए इसे हम सबको अलग-अलग तरह से गाते ही रहना चाहिए। एक छोटा सा लेख लिखा है प्रणब बाबू पर, अगर समय हो तो देखें, लेकिन यह प्रशस्ति गान नहीं है- जितेंद्र कुमार)

बात थोड़ी पुरानी है लेकिन इतनी भी नहीं कि लोगों को याद न हो। वर्ष 2002 में धीरूभाई अंबानी की मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु से चार साल पहले से वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। बीजेपी के ‘प्रथम’ लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी उप प्रधानमंत्री थे। वे प्रोटोकॉल में भले ही नंबर दो थे लेकिन सारे व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए वाजपेयी के सबसे विश्वासपात्र प्रमोद महाजन थे, जो अघोषित रूप से नंबर दो थे।

पिछले तीन वर्षों से हम राजनीतिक व आर्थिक गलियारों में यह सुनते आ रहे थे कि इस बार संभवतः धीरूभाई अंबानी को ‘भारत रत्न’ से नवाज़ा जाएगा। चर्चा इस बात की भी होती थी कि प्रमोद महाजन ने अंबानी को भारतरत्न दिलाने की ‘सुपारी’ ली है, लेकिन न जाने क्यों उस साल भी अंबानी को भारतरत्न से नवाज़ा नहीं जा सका। 2003 में अफ़वाह तो यहां तक उड़ी कि अंबानी को भारतरत्न न दिला पाने के कारण प्रमोद महाजन को ‘बहुत कुछ’ लौटाना पड़ा है!

खैर, 2004 में अंबानी जी की दूसरी पुण्यतिथि पर एक जमावड़ा था। मोरारी बापू ‘राष्ट्र के नाम’ संदेश दे रहे थे। ‘हू इज़ हू’ में शायद एक-आध व्यक्ति ही होंगे जो वहां उपस्थित नहीं थे। हां, कल दिवंगत हुए प्रणब मुखर्जी वहां जरूर थे। छोटे भाई अनिल अंबानी ने माइक संभाल रखा था।

उन्होंने अपने पिता धीरूभाई अंबानी और प्रणब मुखर्जी की प्रगाढ़ता का वर्णन कुछ इन शब्दों में कियाः

जब से मैंने होश सम्भाला है, मुझे अपने बाबूजी का कोई ऐसा जन्मदिन याद नहीं है जिसमें प्रणब बाबू के शामिल हुए बगैर पिताजी ने केक काटा हो। एक बार तो ऐसा हुआ कि संसद का सत्र चल रहा था जिसमें प्रणब बाबू का रहना जरूरी था। हम अपने घर में प्रणब बाबू का इंतजार कर रहे थे। सारे गेस्ट आ गए थे, गेस्ट उकता रहे थे, लेकिन देर होती गयी, होती गयी। कई गेस्ट केक कटने का इंतजार करते-करते अपने घर वापस चले गए। रात के बारह बज गए, कैलेंडर में तारीख बदल गयी, लेकिन प्रणब बाबू का पता नहीं। रात के डेढ़ बजे के करीब प्रणब बाबू आए और तब जाकर केक कटा!

प्रणब बाबू अगली पंक्ति में मुकेश अंबानी और कोकिला बेन के बगल में बैठे सिर हिलाते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।

राजीव गांधी की मिस्टर क्लीन की छवि बनी ही थी, तब तक उनके दामन पर कोई छींटे नहीं पड़े थे लेकिन धीरूभाई अंबानी परेशान हो गए। क्योंकि राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में वीपी सिंह वित्त मंत्री थे, हालांकि तब तक राजीव गांधी तक धीरूभाई की पहुंच हो चुकी थी।

वैसे यह बात भी काफी दिलचस्प है कि शुरू के कुछ महीनों में अंबानी की पहुंच राजीव गांधी तक नहीं थी। प्रणब मुखर्जी किनारे कर दिए गए थे। बाद में तो वह संसद के किसी सदन के सदस्य भी नहीं रह गए थे। अंबानी की पहुंच पीएमओ तक नहीं हो पा रही थी, इसको लेकर अंबानी काफी बेचैन थे। किसी न किसी रूप में अंबानी ने उस समय राजीव गांधी के बहुत गहरे मित्र कैप्टन सतीश शर्मा से संपर्क साधा, लेकिन कैप्टन सतीश शर्मा ने समय लेकर राजीव गांधी से मिलवाने से इंकार कर दिया। फिर भी, बात इस पर तय हुई कि जब राजीव गांधी कार्यालय से निकलकर अपने घर की तरफ रवाना होने लगेंगे तो उन्हें चंद मिनटों के लिए प्रधानमंत्री से मिलवा देंगे।

शाम के 8.40 का वक्त तय हुआ। सुरक्षा में लगे कर्मियों को एलर्ट कर दिया गया कि अब प्रधानमंत्री निकलेंगे। इसी बीच सतीश शर्मा अंबानी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में दाखिल हुए। कहा जाता है कि कैप्टन शर्मा और अंबानी के बीच इस बात को लेकर डील हुई थी कि मिलवाने के लिए पांच लाख रुपए मिलेंगे और उसके बाद हर मिनट के लिए एक-एक लाख।

कुल मिलाकर यह, कि अगर बात एक मिनट भी नहीं चलती है तब भी कैप्टन शर्मा को पांच लाख रुपए दिए जाएंगे। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगी सभी गाड़ियां स्टार्ट कर दी गयी थीं, सब एलर्ट थे लेकिन जब धीरूभाई अंबानी राजीव गांधी के कमरे में दाखिल हुए तो बाहर निकलने में उन्हें 42 मिनट का वक्त लग गया।

कहा जाता है कि यही वह मीटिंग थी जिसमें अंबानी ने राजीव गांधी को ‘सेट’ किया था, जिसकी व्यूह रचना प्रणब मुखर्जी ने की थी।

कैप्टन शर्मा उस मीटिंग के बारे में देर रात तक चली किसी पार्टी में ‘ऑफ द रिकार्ड’ कुछ इस तरह बता रहे थे-

चूंकि मैं जानता था कि उन दोनों की बातचीत एक-दो मिनट से ज्यादा नहीं चल सकती है, इसलिए मैं अंबानी से थोड़ा ही पीछे खड़ा था। मैं जानता था कि राजीव गांधी की नजर में अंबानी की कोई खास साख नहीं है। लेकिन ज्यों ही धीरूभाई अंबानी राजीव गांधी से मिले त्यों ही बिना किसी भूमिका के उनसे पूछा- “मैडम ने जो 250 करोड़ रुपये मेरे पास छोड़े हैं, उसका क्या करना है?“

वह अंबानी के साम्राज्य निर्माण का ‘सबसे गौरवशाली’ दौर था।

कहा जाता है कि जब राजीव गांधी और धीरूभाई अंबानी की दोस्ती परवान चढ़ रही थी उसी बीच वीपी सिंह को वित्त मंत्री से हटाने के लिए अंबानी एक हजार करोड़ खर्च करने की बात कई लोगों से कह चुके थे। फिर भी राजीव गांधी, वीपी सिंह को किसी भी रूप में सीधे तौर पर अंबानी को मदद करने के लिए नहीं कह रहे थे।

बावजूद इसके प्रणब मुखर्जी की राजीव गांधी के दरबार में एंट्री नहीं रह गयी थी। प्रणब मुखर्जी को अज्ञातवास में चितरंजन पार्क के अपने आवास में शिफ्ट करना पड़ा था क्योंकि वह किसी सदन के सदस्य नहीं रह गये थे। कहा जाता है कि उनका हाल इतना खराब था कि एक बार उन्होंने लाइमलाइट में आने के लिए अपने दरवाजे पर बम फोड़वा लिया था।

इस घटना के बाद राजीव गांधी ने उनकी सुध ली लेकिन पद फिर भी नहीं मिला। पीवी नरसिंह राव ने बाद में उन्हें प्लानिंग कमीशन का डिप्टी चेयरमैन बनाया।

बहुत पहले, मतलब बहुत ही पहले की बात है जब इंडिया टुडे अपने प्रकाशन का 15वां वर्ष मना रहा था। प्रभु चावला ने इंडिया टुडे के लिए धीरूभाई अंबानी का इंटरव्यू किया था। बहुत से सवालों के अलावा एक सवाल यह थाः

आपके किन-किन बड़े नेताओं के साथ संबंध हैं?
धीरूभाई अंबानी- हमारे सभी दलों के नेताओं के साथ संबंध हैं।
प्रभु चावला- नहीं, नहीं, साफ-साफ बोलिए, मैं पूछ रहा हूं कि किन नेताओं के साथ आपके अच्छे संबंध हैं?
धीरूभाई अंबानी- लेफ्ट पार्टी और वीपी सिंह को छोड़कर मेरे सभी बड़े व महत्वपूर्ण नेताओं के साथ संबंध हैं!

आज प्रणब मुखर्जी नहीं रहे, लेकिन उन्होंने देश का बहुत ज्यादा नुकसान किया है। पता नहीं वह भारतरत्न क्यों थे!

(जितेंद्र कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जितेंद्र कुमार
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