महिला आरक्षण बिल यानि शकुनी का नया पांसा

अंततः वोट कबाड़ने और सत्ता में बने रह कर अपनों को रेवड़ियां बांटने के लिये आखरी पांसा भी फेंक दिया गया है।

मनुस्मृति को देश के संविधान से ऊपर मानने वाली, संविधान सभा में हिंदू महिलाओं को अधिकार देने वाले हिंदू कोड बिल के खिलाफ हंगामा करते हुये उसे पारित होने से रोकने वाली महिला विरोधी पलटन से जुड़ी भाजपा ने हिंदुत्व, सनातन, पाकिस्तान, श्रीलंका को दिया गया एक छोटा सा द्वीप जैसे तमाम मुद्दों को उठाने के बाद अंततः महिला आरक्षण के विधेयक को  ‘नारी शक्ति को वंदन अधिनियम’ के नाम से एक पांसे की तरह उछाल दिया है।

कई सारी बंदिशों और पूर्व तैयारी के प्रावधानों के साथ इस विधेयक को पारित करवाने के बाद भाजपा अपनी सारी मीडिया, सोशल मीडिया और भक्त-भक्तिनों की टीमों के साथ अपनी महिला अन्यायी छवि पर ‘विधेयक डिस्टेंपर’ लगाने में जुट गई है।

इस विधेयक के खिलाफ कोई नहीं है और महिलाओं को समानता देने की मांग करने वाला कभी उन्हें आरक्षण देने के खिलाफ हो भी नहीं हो सकता। इसकी नियमावली भी बाद में बनायी जा सकती है लेकिन सवाल यह है कि इतने सालों तक सरकार में रही और अपने हर संसद अधिवेशन में महिला विरोधी कोई न कोई कदम उठाने वाली भाजपा को आज अचानक क्यों इस देश की महिलाओं के पक्ष में निर्णय लेने का ख्याल आ गया? इसीलिए न कि अब लोकसभा और कई बडे़ राज्यों के चुनाव सिर पर हैं!

असली बात यह है कि जनवादी महिला समिति या एडवा सहित देश के कई महिला संगठन इस विधेयक को पारित करने और देश की महिलाओं को विधायिकाओं में अधिकार देने की कई सालों से मांग कर रहे थे। दिल्ली और देश के कई शहरों, कस्बों और इलाकों में इस की मांग करते हुये प्रदर्शन हुए, सेमिनार हुए, महिलाओं की बैठकें हुईं। पूर्व की कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार भी कोई दूध की धुली नहीं थी।

लेकिन उस वक्त जब यह विधेयक राज्य सभा में पारित हुआ था तब लोकसभा में इस विधेयक को पारित करने में अड़ंगे लगाने वाली भाजपा और उसके पुरूषवादी सोच के नेता अब क्यों इस विधेयक को पारित करने का दिखावा कर रहे हैं? जाहिर है उनकी नजर महिलाओं को उनके नागरिक अधिकार देने पर नहीं बल्कि, जैसे भी हो वैसे, अगले दो चुनाव जीतने पर है।

वैसे किसी भी समाज या देश में बदलाव तभी होते हैं जब आम जनता उनके पक्ष में आवाज बुलंद करती है। इस देश के मजबूत प्रगतिशील और महिला आंदोलनों का ही परिणाम था कि देश की प्रजातांत्रिक परंपराओं और धर्मनिपेक्षता की रक्षा करने के लिये संशोधनों का अवसर देने वाले संविधान में संशोधन होते रहे और कानून बनते रहे।

राष्ट्रीय महिला आयोग बना और हर राज्य में भी महिला आयोग बने। देश में कामगार महिलाओं की दशा पर  सरकार द्वारा एक अध्ययन किया, महिलाओं के पक्ष में कानून बनाने की कोशिश की गई। दहेज हिंसा को परिभाषित करते हुये 498 ए जैसा कानून बना, देश में घरेलू हिंसा को रोकने के लिये अलग कानून बनाया गया। कार्यस्थल पर यौन हिंसा के खिलाफ कानून बना, यौन हिंसा की परिभाषा विस्तृत की गई और इस देश की महिलाओं को कानूनी ताकत दी गई, पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद इन्हीं महिला आंदोलनों का परिणाम था कि साधारण चुनी गई महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया और अब कई पंचायतों में महिलायें आधे से भी अधिक चुनी गई हैं।

माना कि इन तमाम कानूनों में कई खामियां हैं लेकिन फिर इन खामियों को दूर करने के लिये आवाज उठाई जा रही है। कुल मिलाकर इसलिये आज नहीं तो कल महिला आरक्षण का यह विधेयक पारित होना ही था। इसलिये जो भाजपा हर साल हजारों महिलाओं की जान लेने वाले दहेज अपराध को रोकने के लिये बने 498 ए को कमजोर करने काम कर रही हो उस भाजपा से हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह इस कानून को बनायेगी और महिलाओं को विधायिकाओं में पहुंचने का रास्ता साफ करेगी।

इसके अलावा इस विधेयक को पारित करके अपनी पीठ थपथपाने की कवायद करने वाली भाजपा के द्वारा पेश और लोकसभा में पारित इस विधेयक में और पूर्व में पारित विधेयकों में अंतर यही है कि पहले के विधेयक पारित होते ही लागू हुये थे और इसमें पहले से ही 2029 तक की सीमा लगा दी गई है। यानि दो चुनावों को निपटाने के बाद। अब यह भी कहा जा रहा है कि परिसीमन और जनगणना, विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों को तय करने के बाद यह कानून कार्यान्वित किया जायेगा। जनगणना कब होगी?

2021 की जनगणना कोरोना का कारण बताकर टाल दी गई लेकिन घोषणा करने के बावजूद 2023 के खत्म होने तक उसकी प्रक्रिया भी शुरू नहीं की गई है तो फिर यह आशा कैसे की जा सकती है कि अगली वाली 2031 में होने वाली जनगणना के आंकडें समय पर प्रकाशित होकर इस विधेयक के क्रियान्वयन की शर्तों को पूरा किया जायेगा। और फिर उसके बाद होने वाले परिसीमन के पहले तो इस विधेयक का क्रियान्वयन होने से रहा। क्या पता असरानी के उस विनोदी विज्ञापन की तरह ‘‘सारे घर की बदल डालूंगा’’ वाले मोड में चल रहे मोदी संसद भवन बदलने के बाद जनगणना का साल भी बदल दें?  

दूसरी बात यह है कि जिस भाजपा के मंत्री, सांसद, विधायकों के ऊपर बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण, हत्या के आरोप हों उनसे क्या इस देश की महिलायें अपेक्षा कर सकती हैं कि इस विधेयक का वाकई में यह पार्टी या उसके नेतृत्व में बनी सरकार क्रियान्वयन करेगी?  क्या यह विडंबना नहीं है कि महिला पहलवानों का यौन शोषण करने वाला सांसद और मंत्री बृजभूषण सिंह महिला आरक्षण विधेयक के पक्ष में हाथ उठाता है।

वह भाजपा और उसके नेता जो हरियाणा की महिला कोच को, जिसने भाजपा की हरियाणा सरकार के खेल मंत्री संदीप सिंह के खिलाफ शिकायत की थी उस कोच को ही निलंबित कर देते हैं, वह भाजपा जो गुजरात में बिल्किस बानो के बलात्कारियों उसकी तीन साल की बच्ची की कंस की तरह से हत्या करने वाले और बिल्किस की छोटी बहन और मां सहित 11 महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले अपराधियों को जेल में अच्छे व्यवहार का सर्टिफिकेट देकर जेल से रिहा करने की सिफारिश करती है और जेल से रिहा होने के बाद उन बलात्कारियों का सार्वजनिक सम्मान करती है।

जिस भाजपा के नेता, विधायक यहां तक कि महिला सांसद तक कठुआ और उन्नाव में हुये घृणित बलात्कार और हत्या तक के प्रकरणों में आरोपी ही नहीं वरन् अपराधियों तक के समर्थन में न केवल जुलूस निकालते हैं वरन् सार्वजनिक रूप से बयान देते हैं। उन्नाव के घृणित बलात्कार और हत्या के प्रकरण में तो भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर आरोपी ही नहीं अपराधी भी साबित हो जाता है। लेकिन आज तक इन तमाम नेताओं को भाजपा पार्टी से निलंबित नहीं करती।

इतना ही नहीं ये नेता उन मासूमों और उनके परिवारजनों को ही उन घृणित घटनाओं के लिये जिम्मेदार बता देते हैं। मध्य प्रदेश में लगातार हुईं घटनायें भी इसी का सबूत देती हैं। अभी हाल में सागर के पास के गांव में एक युवती और उसकी मां के साथ हुई घटना इसका सबूत है कि स्थानीय हत्यारे दबंग भाजपा नेता और उसके मंत्री इसके लिये उस युवती और उसकी मां को चरित्रहीन और भाई जिसकी हत्या कर दी गई उसे चोर बता रहे हैं।

वर्तमान महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के महिला विरोधी बयानों का तो पूरा एक ग्रंथ लिखा जा सकता है। ये जब मानव संसाधन मंत्री थीं तब देश भर के विश्वविद्यालयों में चल रहे महिला अध्ययन केंद्रों को दिया जाने वाला अनुदान बंद कर दिया गया था और अंततः उनका काम खत्म कर दिया गया था। इन महिला एवं बाल विकास मंत्री के विभाग के अंतर्गत आने वाले महिला आयोग के उन राज्यों में पिछले कई सालों से अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है जहां पर भाजपा की सरकार है।

दूसरी तरफ राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा अपने महिला विरोधी भाजपा के पक्ष में राजनीतिक बयानबाजी के लिये प्रसिद्ध है। क्या ऐसी महिला नेत्रियों वाली भाजपा देश की महिलाओं को उनके वाजिब अधिकार देगी?

वह भाजपा इस देश की महिलाओं को उनके अधिकार क्या देगी जो एन.आर.सी और सी.ए.ए के विरोध में लंबे समय तक देश भर में आंदोलन का नेतृत्व कर रही महिलाओं को अपशब्दों और गाली गलौज की भाषा में संबोधित करती हो।

असल बात तो यह है कि भाजपा और उसके विचारधारात्मक स्रोत आरएसएस का इस देश, आजादी के आंदोलन, महिलाओं का समाज सुधार के आंदोलनों में योगदान और देश की रवायत से कोई संबंध ही नहीं है। तभी तो उस संसद में उन्हें डर लगता था जो भगत सिंह के बहरों को सुनाने वाले बमों की साक्षी है। जो देश की आजादी के पहले प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण की साक्षी है। जो न केवल महिलाओं बल्कि इस देश के हर नागरिक को एक भारतीय के नाते अधिकार देने वाले संविधान को बनाने वाले और पारित करने की साक्षी है।

ऐसी भाजपा क्या इस देश की महिलाओं को अधिकार देगी जो कोविड में आम जनता को दिये जाने वाली आर्थिक सहायता से चुरा कर खर्च किये गये अपने पांच सितारा संसद भवन के उद्घाटन में देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू तक को आमंत्रित नहीं करती।

ऐसी भाजपा की सरकार से देश की महिलायें क्या उम्मीद कर सकती हैं कि यह सरकार वास्तव में उन्हें विधायिकाओं में पहुंचने देगी?

नहीं देगी!! बिल्कुल नहीं देगी। जिन महिलाओं और देश के लोकतंत्र तथा समता के समर्थक दलों और संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर अब तक लड़ाई लड़ी है उन्हें ही इसे वास्तविक बनाने की लड़ाई लड़नी और जीतनी होगी।

(संध्या शेली की रिपोर्ट।)

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