बेस्टसेलिंग आइटम बन गया है ‘योगा’

योग को सामान्यतः एक हिन्दू धार्मिक अभ्यास के रूप में देखा जाता है। अन्य धर्म के लोगों ने शुरू में इसका विरोध ‘सूर्य नमस्कार’ शब्द को लेकर किया था। पतंजलि योग सूत्र कहता है कि योग का अर्थ है चित्त की वृत्तियों का दमन, निरोध। किसके चित्त और किसकी वृत्तियाँ? यहाँ तो 48 डिग्री सेल्सियस में लोग चाय की दुकान पर खुले में बैठ कर गप्पें मारते दिख जाएंगे। सर्दियों में सुबह तीन बजे आप लोगों को गंगा स्नान करते देखेंगे। फ्रांस में कुछ वर्ष पहले 38 डिग्री सेल्सियस के तापमान में कई लोग परलोक सिधार गये थे। भारतीय बन्दा तो पैदा ही योग में होता है! उसका जीवन इतने संघर्ष से भरा है कि आधे से अधिक लोग तो यों ही मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से बाहर हो चुके हैं। इस महान देश में जन्म लेने मात्र से ही!

बताते हैं कि योग तनाव दूर करता है। पर तनाव आता कहाँ से है? हमारी भागम-भाग वाली, जड़वादी संस्कृति के कारण। आंकड़े बताते हैं समृद्ध और विकसित देश जापान में ख़ुदकुशी की दर बहुत ज्यादा है। लोग बड़े मेहनती हैं। गौरतलब है कि वहां आत्महत्या करने वालों में से अधिकाँश अधेड़ उम्र के लोग होते हैं, जो अचानक खुद को कॉर्पोरेट जगत में असफल पाते हैं, और बढ़ती उम्र की वजह से, नौकरी से बाहर होने के बाद, खुद को पुनर्स्थापित नहीं कर पाते। तो ऐसे में वास्तविक योग एक ऐसी जीवन शैली ढूंढ निकालने में है, जिसमें तनाव कम से कम हो, अस्वस्थ करने वाली वस्तुएं कम ही रहें, जो हमें इस सिस्टम में अपनी नाकामयाबी के साथ भी जीना सिखायें। नहीं तो हम एक ओर मर्ज़ पैदा करने और दूसरी ओर उसका इलाज़ ढूँढने के दुष्चक्र में फंसे रहेंगे। 

करीब चालीस अरब डॉलर का है योग उद्योग। योग से मिली ऊर्जा का उपयोग पूंजीवादी अच्छी तरह करते हैं। योग से कर्मचारी ज्यादा ऊर्जावान महसूस करेंगे और ज्यादा काम करने में सक्षम होंगे। काम से होने वाले तनाव को भी योग कम करेगा। कम तनाव यानी ज्यादा लगन से काम करने की क्षमता। अमेरिका में ध्यान और योगाभ्यास कॉर्पोरेट संस्कृति का जरूरी हिस्सा बनते जा रहे हैंI यह संस्कृति कहती है कि बड़ी कंपनियों में काम करने वालों का ‘ख्याल’ रखना जरूरी है। उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना बहुत ही जरूरी है। सतही तौर पर देखने पर यह बात ठीक लगती है, पर इसका वास्तविक उद्देश्य तो यही है कि कर्मचारी अच्छी मशीन में तब्दील हो सकें और बगैर किसी गिले-शिकवे के फिट रह कर काम कर सकें। मन शांत रहे उनके, तनाव से दूर रहे, और ‘मोह माया’ से दूर बस अपने काम पर एकाग्रचित्त रहें।

भोग के लिए भी योग का इस्तेमाल हो रहा है। योग के जरिये सेक्स का ज्यादा आनंद उठायें, अपने पार्टनर को ज्यादा खुश रखें, इस तरह के फायदे योग को ज्यादा लुभावना बनाते हैं। योग को सेक्स के साथ जोड़कर उसे एक बढ़िया बिकाऊ बेस्टसेलर सामान में तब्दील कर दिया गया है और यह खास किस्म की दुकान खूब चल निकली है। ओशो इस कला में माहिर थे और ‘सम्भोग से समाधि तक’ नाम की पुस्तक लिख कर उन्होंने योग और भोग की मिली जुली रेसिपी पेश करके दुनिया में एक विस्फोट-सा किया था। लोग टूट पड़े थे उस किताब पर।

योग को लेकर भारत की एक बड़ी ही गलत छवि फैलने का खतरा है। भारत को एक आध्यात्मिक देश के रूप में लोग पहचानते हैं, जबकि सच्चाई यह है अक्सर जब एक आम विदेशी पर्यटक भारत आता है तो उसे कुछ और ही देखने को मिलता है। हर तीर्थ स्थान पर ‘योगा’ के नाम पर विदेशियों को मूड़ने वाले जोगी आपको दिखेंगे जो तथाकथित ध्यान के तरीके सिखा कर उन्हें बेवकूफ बनाते हैं। तीर्थ स्थानों पर ऐसे कई ठग और ठगे गए पर्यटक मिलेंगे। 

योग कोई सरकारी संस्कार नहीं। असंख्य साधकों-मनीषियों ने सदियों के शोध और अभ्यास से इसे स्थापित किया है। सबसे बड़ी बात यह कि योग का कोई अंतिम या रूढ़ रूप नहीं है। वह अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रूपों में विकसित हुआ है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसके प्रसारकों का आग्रह तत्व पर नहीं, रूप और स्टाइल पर है। अभी जो कुछ किया जा रहा है, उसके बाद अपने शुद्ध रूप में योग की अविरल धारा बहती रहेगी, इसमें संदेह है। जिन्होंने वास्तव में इस क्षेत्र में गंभीर काम किया वे आम तौर पर गुमनामी में ही रहे। इनमें से एक थे दक्षिण भारत के योग गुरु आयंगर जिनको शायद ही किसी ने कभी टीवी पर देखा हो। अब वह नहीं रहे पर उनकी योग पर लिखी पुस्तकें ‘लाइट ऑन योग’ और ‘लाइट ऑन प्राणायम’ योग की दुनिया में बहुत ही ऊंचा स्थान रखती हैं। 

योग के बारे में यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जब योगाभ्यास और मानव देह पर उसके अच्छे प्रभावों की बात शुरू हुई, उस समय वातावरण कुछ और ही था। योग के कुछ पहलुओं के बारे में वनों में एकांतवास करने वाले लोगों ने सीखा-सिखाया होगा। वे प्रकृति के सानिध्य में ही जीवन बिताते थे और साथ ही अपने इर्द गिर्द रहने वाले पशु पक्षियों, वनस्पतियों, पेड़ पौधों को गौर से देखते रहे होंगे। आपने गौर किया होगा कि योग में कई आसनों को पशुओं के नाम पर जाना जाता है, उदहारण के लिए, भुजंगासन, मयूरासन, मत्स्यासन, वृक्षासन वगैरह। हिन्दू धर्म के अलावा योग जैन और बौद्ध धर्म का भी एक ख़ास पहलू रहा है।

बौद्ध धर्म के एक शाखा ज़ेन बौद्ध तो पूरी तरह ध्यान या मेडिटेशन पर ही आधारित है। प्रदूषण नहीं था, हवा-पानी स्वच्छ थे और देह इतनी असंवेदनशील नहीं हुई थी। अब तो हर सांस के साथ कितना ज़हर अन्दर जा रहा है, इसका कोई हिसाब ही नहीं। ख़ास कर शहरों में। इस जहरीली हवा में कोई योग-प्राणायाम करे तो फेफड़ों का क्या हाल होगा यह फेफड़े ही जानेंगे। योग पर इतनी तरह के लोग, इतने तरीकों से टूट पड़े हैं कि कुल मिला कर जीवन की समग्र समझ को बचाने के लिए विकसित की गई एक कला धीरे-धीरे एक बेस्टसेलिंग आइटम में तब्दील होती जा रही है। एक अच्छी खासी विधि को हम लोगों ने बाजारू बना डाला है।

(चैतन्य नागर लेखक और पत्रकार हैं आप आजकल प्रयागराज में रहते हैं।)

चैतन्य नागर
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