चौतरफा घिरे मुलायम परिवार को अपर्णा का सहारा !

प्रदीप सिंह

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ के कान्हा उपवन गौशाला में जाकर गायों को चारा और गुड़ खिलाया। इस गौशाला का संचालन मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव और बहू अपर्णा यादव का ट्रस्ट संचालित करता है। पचासों एकड़ में फैले इस गौशाला में योगी करीब आधे घंटे रहे। इसके बाद एक बार फिर मुलायम परिवार की छोटी बहू अपर्णा यादव राजनीतिक चर्चा के केंद्र में आ गयीं।

भाजपा और सपा के अंदरखाने इस मुलाकात के राजनीतिक निहितार्थ खोजे जाने लगे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि योगी का गौशाला जाना क्या महज उनका गौ प्रेम है ? या मुलायम परिवार की कोई खास राजनीतिक जरूरत।

योगी और अपर्णा की मुलाकात  

उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद सार्वजनिक तौर पर योगी आदित्यनाथ और अपर्णा यादव की यह पहली नहीं बल्कि दूसरी मुलाकात है। इसके पहले अपर्णा यादव योगी के शपथ लेने के तुरंत बाद स्टेट गेस्ट हाउस जाकर उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंट कर आयीं थीं। उस समय मीडिया और सोशल मीडिया में योगी और अपर्णा के मुलाकात को ‘पहाड़ कनेक्शन’ बताया गया।

वायरल हुई कुछ खबरों में यह कहा गया कि चूंकि दोनों पौढ़ी गढ़वाल के हैं। इसलिए पहले से ही परिचय है। दूसरी खबरों में यह दावा किया गया कि ‘विष्ट’ उपनामधारी अपर्णा और योगी ममेरे भाई-बहन हैं। लेकिन बाद में ये खबरें गलत साबित हुईं।

तब राजनीतिक हलकों में यह चर्चा हुई कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता है। यह मुलाकात महज औपचारिकता है। लेकिन समाजवादी पार्टी और योगी की राजनीति में छत्तीस का आंकड़ा है।

योगी हमेशा सपा सरकार और मुलायम परिवार पर सवाल उठाते रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या देश और प्रदेश की राजनीति बदल जाने के बाद अपर्णा यादव मुलायम परिवार की आपसी सहमति से ऐसा कदम उठा रही हैं या परिवार की राजनीतिक रेखा को पार कर राजनीतिक और व्यक्तिगत संबंध बना रही हैं।

शपथ ग्रहण में पहुंचे मुलायम सिंह 

शपथ ग्रहण समारोह में बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और कांग्रेस ने एक तरह से किनारा कर लिया था। अपने पुत्र रोहित शेखर के राजनीतिक भविष्य की तलाश करते हुए ले देकर कांग्रेसी नारायण दत्त तिवारी पहुंचे। मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र अखिलेश यादव के साथ न सिर्फ मंच पर गए बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कान में कुछ कहा भी। उस वक्त दोनों नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई, यह चर्चा का विषय बना। और उसका रहस्य अभी तक सामने आना बाकी है। हालांकि उस समय शपथ ग्रहण कार्यक्रम में जाना और बातचीत को औपचारिक करार दिया गया। लेकिन राजनीतिक गलियारे में चंद सेकेंडों की कान में हुई बातचीत चर्चा के केंद्र में रही। आज तक इस बातचीत को जानने और समझने में लोगों की उत्सुकता बनी हुई है।

योगी और मुलायम सिंह यादव की राजनीति और व्यक्तित्व को समझने वालों के लिए यह मुलाकात महज औपचारिक राजनीतिक मेल-मिलाप नहीं है। इन मुलाकातों में दूरगामी राजनीतिक संदेश और भविष्य की सुरक्षा की मांग छिपी है?

ऐसे सवालों का जवाब ढूढ़ने के लिए हमें उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा। भाजपा नेतृत्व ने जब योगी आदित्यनाथ के नाम की घोषणा मुख्यमंत्री के तौर पर की तो एक साथ कई चीजों पर चर्चा शुरू हो गयी। जिसमें योगी का परिवार, जाति, शिक्षा ,गोरखनाथ मंदिर, हिंदू युवा वाहिनी शामिल है।

लेकिन उस समय जो चर्चा के केंद्र में आया वह एक वीडियो है। इस वायरल वीडियो में योगी आदित्यनाथ फूंट-फूट कर रो रहे हैं। लोकसभा का दृश्य साफ है। अध्यक्ष की कुर्सी पर सोमनाथ चटर्जी बैठे हैं। वीडियो में योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि,‘ हमने अपने घर -परिवार को छोड़ा। देश और समाज के लिए संन्यासी बना। लेकिन उत्तर प्रदेश की सरकार और प्रशासन मुझे अपराधी बनाने पर तुली है।’


गोरखपुर का सांप्रदायिक तनाव-2007

यह वाकया सन् 2007 का है। गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था। जिसके बाद हिंदू और मुस्लिम सड़कों पर उतर आए। जिला प्रशासन ने योगी संरक्षित हिंदू युवा वाहिनी की भूमिका पर सवाल उठाए और गोरखपुर में शांति व्यवस्था बनने तक कर्फ्यू लगा दिया। उसी समय योगी आदित्यनाथ ने कर्फ्यू तोड़ते हुए जुलूस निकाला और धरने पर बैठ गए। जिला प्रशासन ने सख्ती बरतते हुए योगी को गिरफ्तार कर लिया। उस समय यह मसला संसद और विधानसभा में भी उठा। योगी समर्थकों का मानना है कि इस मामले में सपा सरकार ने गोरखपुर की जनता और योगी आदित्यनाथ के साथ बुरा बर्ताव किया।

महीनों तक गोरखपुर में तनाव रहा। 2007 में जिला प्रशासन द्वारा अपने साथ किए गए ज्यादती पर योगी संसद में भावुक हो गए। इस घटना के लिए वे केवल जिला प्रशासन को ही जिम्मेदार नहीं मानते बल्कि इसे मुलायम सिंह यादव और आजम खान के इशारे पर किया गया मानते है। उसके बाद से ही योगी और मुलायम परिवार के बीच के आंकड़े 36 के हो गए।

ऐसे में अब जब योगी आदित्यनाथ प्रचंड बहुमत के साथ प्रदेश की सत्ता में हैं। तो मुलायम परिवार में एक डर समा गया है कि कहीं योगी आदित्यनाथ उसका बदला न लें। प्रदेश से अपनी राजनीतिक सत्ता गवां चुके मुलायम परिवार के लिए अब परिवार की हिफाजत प्रमुख है। ऐसे में वे भाजपा और यूपी सरकार से किसी भी तरह की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता नहीं करना चाहते।


भाजपा के इशारे पर मुलायम परिवार

मुलायम सिंह यादव जहां अपर्णा यादव के माध्यम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नजदीकी बनाने में लगे हैं वहीं लंबे समय से यह आम चर्चा है कि सपा महासचिव प्रो. राम गोपाल यादव की अमित शाह से नजदीकी है। इस नजदीकी का कारण राम गोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव का नोएडा अथारिटी के कुख्यात घोटालेबाज इंजीनियर यादव सिंह से रिश्ता है। इस घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है। जिसमें अक्षय यादव की कंपनी भी जांच के दायरे में है।

बीच-बीच में यह खबर चर्चा में आती रहती है कि अमित शाह के कहने पर ही रामगोपाल यादव ने लोकसभा चुनाव 2014 के समय महागठबंधन से किनारा कर लिया।

दूसरी तरफ मुख्यमंत्री बनने के बाद ही योगी आदित्यनाथ प्रदेश सरकार द्वारा किए गए कामों की समीक्षा करने में जुट गए। अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट गोमती रिवर फ्रंट की फाइलों को अपने पास मंगा कर जांच के आदेश दे दिए हैं।

ऐसे में जब परिवार और संगठन दो भागों में बंटा है। अतीत में की गयी गलतियों और ज्यादतियों का बदला लेने की आशंका दिख रही तो समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव परिवार में एक डर बैठना स्वाभाविक है। मुलायम सिंह यादव अपनी दूसरी पत्नी साधना यादव व पुत्र प्रतीक यादव के साथ रह रहे हैं। ऐसे में योगी और अपर्णा की मुलाकात किसी खास राजनीतिक समीकरण का नहीं वरन पारिवारिक हित साधने की कवायद ज्यादा लगती है। अपर्णा यादव मात्र मुलायम सिंह यादव की संदेशवाहक की भूमिका में हैं।

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