सुदृढ़ लोकतंत्र के लिए शैडो प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल ज़रूरी

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राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता बनाए गए हैं। 18वीं लोकसभा का पहला सेशन भी शुरू हो गया है वे उस कमिटी का हिस्सा बन गए हैं जो सीबीआई के डायरेक्टर, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर, मुख्य सूचना आयुक्त, ‘लोकपाल’ या लोकायुक्त, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के चेयरपर्सन और सदस्य और भारतीय निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करती है। इन सारी नियुक्तियों में राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उसी टेबल पर बैठेंगे, जहां प्रधानमंत्री मोदी बैठेंगे और पहली बार ऐसा होगा, जब इन फैसलों में प्रधानमंत्री मोदी को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी से भी उनकी सहमति लेनी होगी।

राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष होने के बाद वह सरकार के आर्थिक फैसलों की लगातार समीक्षा कर पाएंगे और सरकार के फैसलों पर अपनी टिप्पणी भी कर सकेंगे। राहुल गांधी उस ‘लोक लेखा’ समिति के भी प्रमुख बन जाएंगे, जो सरकार के सारे खर्चों की जांच करती है। और उनकी समीक्षा करने के बाद टिप्पणी भी करती है। उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होगा।

ऐसे में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने देश में ‘शैडो कैबिनेट’ बनाने की मांग की है, अगर ऐसा होता है तो राहुल गांधी इस कैबिनेट के ‘शैडो प्रधानमंत्री’ कहलाएंगे। वैसे तो शैडो कैबिनेट का कॉन्सेप्ट ब्रिटेन का है, लेकिन भारत में इसकी मांग नई नहीं है। साल 2022 में तेलंगाना कांग्रेस की ओर से राज्य में शैडो कैबिनेट बनाने की मांग की गई थी।

जैसा की नाम से भी प्रतीत होता है, शैडो कैबिनेट एक समानांतर कैबिनेट होता है जिसके पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं होती है। शैडो कैबिनेट का काम होता है, सरकार के कामकाज पर नजर बनाए रखना और जहां भी कोई कमी या गड़बड़ी नजर आए उसे उजागर करना, उसके लिए आवाज उठाना। करीब-करीब वही काम जो विपक्ष का होता है लेकिन थोड़ा व्यवस्थित रूप में यानी सबकी स्पष्ट जिम्मेदार इस व्यवस्था में कोई ‘शैडो रक्षा मंत्री’ हो सकता है जो रक्षा मंत्रालय के कामकाज को देखे, कोई ‘शैडो वित्त मंत्री’ हो सकता है जो वित्त मंत्री के कामकाज की निगरानी करें।

एक सुदृढ़ और मज़बूत लोकतंत्र के लिए अगर ऐसी व्यवस्था प्रतिपक्ष नेता करते हैं तो इससे जनता का पक्ष प्रबल होगा और अब तक हो रही तमाम असंवैधानिक कार्रवाई को रोका जा सकेगा। अभी तक सिर्फ प्रतिपक्ष का नेता ही इन गतिविधियों पर नज़र रखता है जब यह जिम्मेदारी अलग-अलग लोगों को सौंपी जाएगी तो निश्चित ही इस कार्य में गति आएगी और मनमानियां नहीं हो सकेगी।

आज़ाद भारत में पहली बार होने जा रही इस अभिनव प्रणाली का स्वागत होना चाहिए। इंडिया गठबंधन मिलकर यदि यह निगरानी करता है तो सोने में सुहागा होगा। इससे यह गठबंधन मज़बूती के साथ खड़ा भी रहेगा और सभी दलों को महत्व भी मिलेगा। हम सब जानते हैं पिछले दस वर्षों के शासन में विपक्षी नेता ना होने के कारण देश की अर्थव्यवस्था, तमाम स्वायत्त संस्थाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण महकमे अपना अस्तित्व खो चुके थे। उम्मीद है 18वीं संसद के पक्ष-विपक्ष दोनों मिलकर देश में पुनः मज़बूत लोकतांत्रिक व्यवस्था को अमलीजामा पहनाएंगे।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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