ग्राउंड रिपोर्ट : आखिरकार किस बात की सजा मुसहर टोली के दो मासूमों को मिली, कौन है असली गुनहगार?

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बरौंधा, मिर्जापुर। “साहेब, चाऊर (चावल) धोय के (पानी से धोकर) चूरे बदे भगोना में (चूल्हे पर पकने के लिए) रखे भर में हमार दूनों लईका गायब होई गयन। खोजबीन के बाद कुछों नाहीं पता चला। दूसरे दिन मिलल त हमरे दूनों लाल (बेटे) क लशिया मिलल हो साहेब”

इतना बताते हुए गुड्डी देवी दहाड़े मारकर रोने लगती है। वह बार-बार एक ही रट लगाए जाती हैं, “हमार दूनों करेजवा (बेटा), का केहूं क बिगाड़ें रहलन? 

पुलिस लशियों नाहीं देहलश, फूक-ताप देहलश, के हूं हमहन क ना हीं सुनते……! मुसहर हई केसे लड़ब-झगड़ब, केसे कहब, कहां जाई जे हमार सुनी ले, हे साहेब? 

गुड्डी देवी के सवाल निरुत्तर कर देने वाले होते हैं। उनकी वेदना, दर्द और तड़प असहनीय होते हैं। एक मां के आंखों के सामने से देखते ही देखते कुछ क्षणों में उनके दो मासूमों का गायब हो जाना और दूसरे दिन काफी खोजबीन करने के बाद घर के सामने तालाब में लाश मिलना अचरज भरा हुआ लगता है। पुलिस कहती हैं बच्चों की तालाब में डूबने से मौत हुई है, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी सांस थमने की बात कही गई है। लेकिन दोनों मासूम बच्चों के माता-पिता इसे स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। दोनों अपना तर्क रखते हुए इसे नियति का खेल तो कदापि नहीं मानते। अलबत्ता बच्चों की हत्या किए जाने का खुला आरोप लगाते हैं। भला इन मासूम बच्चों से किसी की क्या अदावत हो सकती है? के सवाल पर तपाक से बोलते हैं, “हौ न साहेब, ई जमीन, ई झोपड़ी अऊर हम सबे। हम सबे के उजाड़े-भगावे बदे ई सब करल धरल हौ।”

यह है पूरा मामला 

उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन पांच किलोमीटर दूर कटरा कोतवाली क्षेत्र का बरौंधा कचार मोहल्ला है। इसी मोहल्ले के एक छोर पर मुसहर (आदिवासी) बिरादरी के कुछ लोग झोपड़ी डाल कर रहते आए हैं। भले ही कहा जाता हो कि मुसहर बस्तियों में कभी नियति का नाम रही ‘भुखमरी’ अब इतिहास की बात है। कभी पेट भरने के लिए ‘मूस’ (चूहा) पकड़ने और घर के नाम पर टूटी मड़ई में रहने को मजबूर मुसहर भी सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं से त्योहार के उल्लास में सराबोर नजर आते हैं, लेकिन यह कहना इसलिए भी ग़लत है कि अभी भी काफी तादाद में मुसहर (आदिवासी) समाज के लोग सरकारी योजनाओं से दूर बने हुए हैं। यहां तक कि आज भी ‘अमृतकाल’ के दौर में आवास जैसी बुनियादी जरुरतों से दूर बने हुए घास-फूस के बने मड़हे में जीवन बिताने को अभिशप्त हैं। खुद की जमीन न होने से कभी गांवों-जंगलों से खदेड़े जाते हैं तो कभी गांव-मोहल्लों के अंतिम छोर पर रहने से भी वंचित किया जाता है। हंसते मुस्कुराते हुए त्योहार मनाना तो आज भी इनके लिए सपना बना हुआ है। मिर्ज़ापुर के बरौंधा कचार मोहल्ले में रहने वाले प्रमोद आदिवासी का परिवार भी इसी का अपवाद है। 

7 जून 2024 को सुबह मिर्ज़ापुर के कटरा कोतवाली अंतर्गत बरौंधा कचार स्थित एक तालाब में दो सगे मासूम भाइयों का शव उतराया हुआ मिलता है। उस तालाब में अक्सर भैंस सहित अन्य मवेशियों को देखा जाता है। ऐसे में दो बच्चों की लाश मिलने की खबर से मौके पर काफी संख्या में लोग एकत्र हो जाते हैं। सूचना मिलते ही एएसपी नगर नितेश कुमार सिंह, सीओ नगर मनोज गुप्ता भी लाव लश्कर के साथ घटनास्थल पर पहुंच जाते हैं। आनन-फानन में स्थानीय लोगों की मदद से दोनों मासूमों के शव को तालाब से बाहर निकलवाया जाता है। मृतक मासूमों के पिता हत्याकर शव तालाब में फेंकने का आरोप लगाते हुए बिलखने लगते हैं। वहीं पुलिस बालकों के तालाब में डूबने से मौत की आशंका जताती है। इस मामले में कटरा कोतवाल अजय कुमार सेठ का कहना रहा है कि “एक दिन पूर्व यानि 6 जून की सुबह दोनों भाई घर से लापता हुए थे। दूसरे दिन 7 जून को उनका शव उनके घर के बगल में स्थित तालाब में उतराया हुआ मिला है। इसलिए आशंका जताई जा रही है कि दोनों बालकों की तालाब में गिरने के कारण डूबने से मौत हुई है।”

पूरे मामले की पड़ताल करने के लिए सर्वप्रथम “जनचौक” की टीम ने मौके का मौका मुआयना किया तो कई ऐसे तथ्य उभरकर सामने आएं जो मुसहर टोली के दो मासूमों की मौत की गुत्थी को उलझाए हुए थे, जिसपर पीड़ित परिवार के लोग भी बार-बार सवाल खड़े कर रहे थे।

उन्हें जानने समझने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि दोनों मासूम बच्चों का परिवार कौन है और करते क्या हैं?

मां और चाचा के हटते ही ग़ायब हुए बच्चे

बरौंधा कचार स्थित राइस मिल के सामने रहने वाले प्रमोद आदिवासी पुत्र स्वर्गीय झन्नालाल अपनी माता कल्लो देवी, पत्नी गुड्डी, छोटे भाई अर्जुन व दो बेटियां क्रमशः कंचन 10, प्रिति 7, तीन बेटों गोलू 5, एवं रोहित 3, मोहित डेढ़ वर्ष के साथ मेहनत मजदूरी कर कई पुस्तों से रहते आए हैं। प्रमोद के मुताबिक वह और उनका परिवार बाप-दादा के जमाने से बरौंधा कचार में रहते आए हैं। प्रमोद के बड़े भाई रमेश भीरपुर, प्रयागराज में दातून बेंच कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। जबकि प्रमोद मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन पर पल्लोदारी का काम करता है। पत्नी गुड्डी कुछ घरों में चौका बर्तन करती है तब जाकर किसी प्रकार परिवार का पेट पलता है। सब कुछ हंसी खुशी से चल रहा था।

हर दिन की तरह 6 जून 2024 को सुबह 5.50 का समय हो रहा प्रमोद रेलवे स्टेशन की ओर निकल गया था। प्रमोद की पत्नी गुड्डी थाली में चावल बिनने (साफ करने) के बाद उसे पानी से धोकर अपने रसोई की ओर चलीं गईं थीं, ज़हां पतीली में गर्म हो रहे पानी में चावल को डालकर वह रसोई घर (मड़हे) से बाहर आ गई थी। सहसा उसे दोनों बच्चों रोहित और मोहित का ख्याल आया तो उन्हें ढ़ूढ़ने लगी थी, लेकिन दोनों कहीं भी नजर नहीं आए। यह सोचकर कि कहीं छोटा देवर दोनों बच्चों को लेकर न गया हो, सोच ही रही थी कि तभी बकरियों के साथ उसका देवर अर्जुन भी आ जाता है। दोनों बच्चों के बारे में पूछे जाने पर वह भी हैरानी भरी नजरों से कहता है, “अभी यही तो दोनों खेल रहे थे, फिर इतनी जल्दी कहां चले गए? अभी दोनों ठीक से चल भी नहीं पाते भला कैसे कहां चले जाएंगे?”

दरअसल, गुड्डी देवी चावल पकाने के लिए चूल्हे पर गर्म पानी का पात्र रखकर झोपड़ी के बाहर बैठकर चावल साफ कर रही थी, बगल में उसका देवर अर्जुन भी बैठा हुआ था जबकि उसके दोनों छोटे बेटे क्रमशः मोहित और रोहित उन्हीं के सामने खेल रहे थे। चावल बीनने के बाद गुड्डी उसे चूल्हे पर पकने के लिए रखने चली गई थी तो उसका देवर बाहर चर रही बकरियों को पकड़ने के लिए जो घर से बमुश्किल बीस कदमों की दूरी पर स्थित मंदिर के समीप पहुंच गई थीं। मंदिर पर बकरियों के चले जाने पर लोग भला बुरा कहने लगते थे इसी भय से अर्जुन बकरियों को उधर से हांकने के लिए चला गया था। इस बीच तकरीबन 8 से 10 मिनट का समय लगा होगा और इतने में दोनों बच्चे गायब हो जाते हैं। पहले बच्चों की मां और उनके चाचा ने आसपास में ढूंढा फिर घरों को खंगाला, इतने पर भी पता नहीं चल पाया तो फ़ौरन प्रमोद को दोनों बच्चों के गायब होने की खबर दी। बच्चों के गायब होने की खबर मिलते ही प्रमोद भी बदहवास हालत में भागा दौड़ा आ गया था। काफ़ी खोजबीन के बाद भी कोई पता नहीं चलने पर आशंका वश उस तालाब में भी उतर कर बच्चों को तलाशा गया कि शायद आगे बढ़ते हुए वह तालाब में आकर डूब गए हो, लेकिन तालाब में भी कोई पता नहीं चला। तब तक खोजबीन करते हुए दोपहर हो गई थी। 

पुलिस का टरकाऊ रवैया 

थकहार कर पुलिस को सूचना देने के वास्ते वह (प्रमोद) बरौंधा कचार पुलिस चौकी पहुंचा जहां पुलिस से बच्चों के अचानक से गायब हो जाने की शिकायत की तो वहां मौजूद सिपाही ने कहा कि “यहां मामला दर्ज नहीं होगा इसके लिए तुम्हें कटरा कोतवाली जाना होगा वहीं जाकर मामला दर्ज कराओ।” आरोप है कि इसके बाद प्रमोद की पत्नी गुड्डी जब कटरा कोतवाली गई तो वहां एक महिला कांस्टेबल ने उसे यह कहते हुए वापस भेज दिया कि “साहब नहीं है अभी जाओ शाम को आना।”

“जनचौक” को आपबीती सुनाते हुए प्रमोद बताते हैं कि “कटरा कोतवाली थाने पर जाने के बाद भी कोई मदद नहीं मिलने पर हम पत्नी को साथ लेकर बदहवास हाल में जिलाधिकारी के यहां पहुंचे। जहां मौजूद एक कर्मचारी को अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने फौरन पुलिस को फोन किया। इसके बाद पुलिस आकर बच्चों को खोजने में जुटती है। लेकिन देर रात तक कोई भी पता नहीं चलता है। ऐसे तैसे दिन बीतता है रात भी बीत जाती है, लेकिन दोनों मासूम बच्चों का कोई भी सुराग नहीं मिलता है। बच्चों के गायब होने की खबर मिलने पर प्रमोद के बड़े भाई रमेश आदिवासी तथा उनकी माता कल्लो देवी जो उसी दिन सुबह भीरपुर बड़े बेटे के पास गई थी बदहवासी में भागते हुए बरौंधा कचार आ जाती हैं। उनके कुछ और नात रिश्तेदार भी बच्चों के गायब होने की खबर पाकर जुट जाते हैं। जैसे-तैसे सुबह होती है तो बच्चों की फिर से खोजबीन शुरू होती है मुसहर परिवार की महिलाओं का खासकर गुड्डी देवी का बच्चों के वियोग में रो-रोकर बुराहाल हो उठा था। वह दहाड़े मारकर रोएं जा रही थी। कि तभी अचानक प्रमोद के बड़े भाई रमेश की सहसा नज़र घर के समीप तालाब में तैरते हरे जलीय शैवाल घांस-फूस के बीच में दोनों बच्चे उतराए हुए थे, जिन्हें देखकर रमेश चीख पड़ा था। आनन-फानन में दोनों बच्चों की लाश को तालाब से बाहर निकाला गया। तब तक मौके पर काफी संख्या में आसपास के लोग तथा उधर से गुजरने वाले लोग भी जुट गए थे। बच्चों की लाश मिलने की खबर पर कटरा कोतवाली पुलिस भी पहुंच गई थी और दोनों बच्चों के शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था।

पिता ने प्रशासन से लगाई सुरक्षा करने की गुहार

बरौंधा कचार के तालाब में दो मासूमों की लाश मिलने के पर पुलिस ने आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे को खंगाला, लेकिन उनको कोई ले जाते हुए दिखाई नहीं दिया है। हालांकि एक गली है जहां पर कैमरा नहीं लगा है। बताया गया है कि कैमरे में कहीं कोई बालकों को ले जाते हुए नहीं दिखा है, लेकिन उन लोगों को आशंका है कि कोई आया और बालकों को तालाब में फेंककर भाग गया। दूसरी ओर तालाब में दो बालकों के शव मिलने की खबर पर डाग स्क्वाड और फारेंसिक टीम भी मौके पर पहुंची थी। दोनों टीमों ने घटना स्थल के साथ ही मृत बालकों के घर को भी खंगाला है। वहां पर मौजूद कुछ स्थानों के जांच के लिए सैंपल भी लिए गए हैं। हालांकि इतने सब के बाद भी अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि दोनों मासूमों की मौत किन परिस्थितियों में हुई है। कुछ ही मिनटों में वह कैसे गायब हो जातें हैं। यह अभी भी अबुझ पहेली बना हुआ है तो वहीं दोनों मासूमों के परिजनों ने खतरे का अंदेशा जताया है। पीड़ित परिवार के लोगों ने 25 जून को जिलाधिकारी मिर्ज़ापुर से मिलकर अपना दुखड़ा सुनाने हुए जानमाल के खतरे की आशंका जताते हुए दोनों बच्चों की रहस्यमई मौत की निष्पक्ष जांच कराने की भी मांग की है।

जमीन के कारण बच्चों को मारने का आरोप

बरौंचा कचार मुसहर बस्ती के रहने वाले प्रमोद आदिवासी “जनचौक” को बताते हैं कि “जिस स्थान पर वह और उनका परिवार झोपड़ी बनाकर रहता है उस जमीन पर कुछ लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं। उस जमीन पर कब्जा करने के लिए कई बार उन लोगों को धमकी भी मिल चुकी है। बोलते है कि यह जमीन छोड़ दो नहीं तो जान से मार दिए जाओगे। आशंका है कि उन्हीं लोगों ने उनके बेटे को मारकर तालाब में फेंक दिया होगा। ताकि हम लोग डर जाएं और यह जमीन छोड़कर कहीं और चले जाएं।”

दो मासूम बच्चों की मौत से बुरी तरह से टूट चुके प्रमोद कुछ पल के लिए रुकते हैं आंखों के आंसुओं और माथे के पसीने को पोंछते हुए पुनः बोलते हैं, “बाप दादाओं के जमाने से हम लोग यहां रहते आएं हैं, पहले यहां कोई आबादी नहीं थी लोग इधर आने से कतराते थे। पीएससी  (39 वीं बटालियन) कंपाउंड के बाद राइस मिल खुलने से चहल-पहल बढ़ी तो आबादी भी बढ़ने लगी। परिवहन विभाग सहित होमगार्ड कमांडेंट आफिस ने यहां के चहल-पहल के साथ-साथ जमीनों को आसमान पर पहुंचाना शुरू किया तो प्लाटरों की भी निगाहें टिक गई है।”

किसने धमकी दी है, किसने जमीन खाली करने की चेतावनी दी है? के सवाल पर गुड्डी मोहल्ले के ही एक जनप्रतिनिधि का नाम लेकर कहती हैं कि “कई बार जमीन खाली कर कहीं और चले जाने को कहा जा चुका है। यहां वह लोग प्लाटिंग करना चाहते हैं हम लोगों को उजाड़ कर” 

वह कहती हैं”हम लोगों को यहां रहते हुए अर्सा गुज़र गए हैं, अब हम जाएं तो जाएं कहां? सरकार हम लोगों को कहीं बसा दे ताकि हम अपना जीवन बसर कर सके।”

आदिवासी वनवासी कल्याण के लिए संघर्षरत कृपाशंकर पनिका कहते हैं “सरकारें आदिवासी, वनवासी समाज के लिए गंभीर नहीं है आज भी यह लोग मारे-मारे फिर रहे हैं। इनमें मुसहर समाज की स्थिति तो और भी बद से बदतर हो गई है। पहले इनके पुश्तैनी पारंपरिक जीविकोपार्जन के साधन रहे पत्तल कारोबार पर आधुनिकता ने चोट क्या पहुंची बल्कि पूरा कारोबार ही छीन कर इन्हें लाचार बना दिया है। रही सही कसर इन्हें बसाने की बजाए उजाड़ कर पूरा किया जा रहा है। आखिरकार यह जंगल में न रहे, गांवों के किनारे न रहे तो जाएं तो जाएं कहां?

बच्चों के तालाब में डूबने को लेकर उठते, सुलगते सवाल

जिस तालाब में रोहित और मोहित की लाश मिली है वह तालाब सड़क से कुछ कदमों की दूरी पर स्थित है। चार बीघा में फैले उस तालाब में आज से यही कोई चार साल पहले सिंघाड़ा उगाया जाता था, लेकिन घरों आदि का गंदा पानी बहने से सिंघाड़ा उगाया जाना बंद कर दिया गया। जिससे इस तालाब की उपयोगिता भी शून्य होने लगी थी। तालाब में बड़ी बड़ी मछलियां बताई जा रही हैं, जिसमें से बच कर निकलना मुश्किल है, लेकिन उसी तालाब में 24 घंटे तक कैसे बच्चे सुरक्षित रहे हैं यह सभी को हैरान किए हुए है। और तो और तालाब में जहां से बच्चों की लाश उतरायी हुई मिली है, वहीं से कुछ देर पहले बीस पच्चीस की संख्या में भैंस का झुंड में से निकली हैं। ऐसे में इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि जब इतनी संख्या में भैंस तालाब में लोटती हैं तो भला बच्चों की लाश उतरायी कैसे वह तो दबकर रह जाती? परिजनों का आरोप है कि दोनों बच्चों की लाश जब बरामद की गई तो नाक मुंह से ख़ून बह रहा था। तालाब की मछलियों से जरा भी खरोंच नहीं आई, भैंस के झुंड से कोई चोट खरोंच नहीं आई। और तो और घोर आश्चर्य की बात यह कि दोनों बच्चों की लाश भी एक ही स्थान पर मिली थी। जिसे परिवार के लोग पचा नहीं पा रहे हैं। वह सवाल खड़े करते हैं कि भला ऐसा कैसे हो सकता है?

पुलिस ने परंपराओं से भी किया वंचित

दो बच्चों को खोने वाले आदिवासी परिवार के लोगों को पुलिस से सबसे बड़ा झटका उन्हें उनके परंपराओं से वंचित किए जाने से लगा है। पीड़ित परिवार का खुला आरोप रहा है कि गायब होने के बाद तालाब में दूसरे दिन दोनों बच्चों की उतरायी हुई लाश मिलने पर पहुंची पुलिस ने उनके दोनों बच्चों की लाश को पैक कर पोस्टमार्टम के लिए उठा लाई। 7 जून को सायं 5 बजे पोस्टमार्टम होने के बाद हम लोगों ने सोचा कि विधि पूर्वक बच्चों का दाह संस्कार किया जाएगा, लेकिन पुलिस ने लाठी और गाली के बल पर वह भी अधिकार हमसे छीन जबरिया आटों में लाश को लाद सीधे चौबे घाट गंगा नदी के किनारे लाकर आनन-फानन में दोनों बच्चों की चिता को आग के हवाले कर दिया, जबकि छोटे बच्चों को जलाने का विधान नहीं है। मुसहर आदिवासी समाज के लोग शव को मिट्टी में दफनाते हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं “भारत देश विविधताओं परंपराओं वाला देश है। सभी को अपने परंपरागत परंपराओं में जीने बसने का अधिकार है, ऐसे में पुलिस ने मुसहर समाज के बच्चों का पोस्टमार्टम के पश्चात शव को उनके परिजनों को सुपुर्द न कर जबरदस्ती जला दिया जाना कहीं से भी उचित नहीं है। यह उनके अधिकारों का सीधे-सीधे हनन है।

ब्याज पर लेकर दिए रुपए फिर भी नहीं मिला आवास

यूपी सरकार का नारा है “पूरी हुई सबकी आस, मिला पक्का आवास” प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी में लगातार उत्कृष्ट प्रदर्शन का भी दावा है। 15 लाख आवास का निर्माण पूर्ण कर देश में प्रथम होने का सरकार का दावा है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो स्वीकृत आवासों के सापेक्ष 15,35,462 पर कार्य प्रारंभ, जबकि 13,01,675 पूर्ण किए गए हैं। ऐसे में सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना का पात्र लोगों को शत-प्रतिशत चयन कर लाभ दिलाने की बखान करती है वहीं जमीनी हकीकत यह है कि बिना चढ़ावा चढ़ाए और जोर जुगाड़ लगाएं गरीबों को आवास योजना का लाभ मिलना मिलना तो दूर उन्हें सपने में भी आवास नजर नहीं आता है। प्रमोद का दर्द यह है कि तीन आवास (मां, भाई और उसके नाम से) तीन बार आया (जैसा कि उसे बताया गया) लेकिन आज तक एक भी नहीं मिला है। आवास योजना का लाभ लेने के लिए उसने 15 रुपए सैकड़ा पर तीन हजार रुपए ब्याज पर लेकर आज से 6 माह पहले किसी रोहित नाम के व्यक्ति को आवास के लिए दिए थे, लेकिन आज तक उसे आवास नसीब नहीं हुआ है।

आज भी पिछड़ा हुआ है मुसहर समाज

इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश की आजादी के बाद भी मुसहर जाति, समाज में सबसे पिछड़ा हुआ है। देखा जाए तो मुसहर जाति मुख्य रुप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, के अलावा पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा राज्यों में पायी जाती है। उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति सभी राज्यों में कुछ क्षेत्रिय विभिन्नताओं को छोड़कर लगभग समान बताई जाती हैं। भूमिहीन होने के नाते मुसहर टोली के वनों जंगलों से लगाए गांवों-तालाबों के किनारे डेरा (झोपड़ी) बनाकर रहते आए हैं। पूर्वांचल के जिलों गाजीपुर, जौनपुर, चंदौली, बलिया, मऊ, आजमगढ़, सोनभद्र, मिर्ज़ापुर, भदोही, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ इत्यादि में इनकी अच्छी खासी तादाद बताई जाती है। इनका पुश्तैनी धंधा दोना पत्तल का रहा है जिसे यह पेड़ों से तोड़कर तैयार करते थे और दुकानों पर ले जाकर बिक्री कर आते थे जो इनकी जीविका का मुख्य साधन हुआ करता था। बदले में यह पेड़ पौधों का संरक्षण किया करते थे यों कहें कि वनों को हरा भरा बनाए रखने और पर्यावरण संरक्षण में इनका महत्वपूर्ण योगदान हुआ करता था, लेकिन प्लास्टिक युग ने इनके पुश्तैनी कारोबार को न केवल नष्ट कर दिया है बल्कि इनके मुंह से निवाला छीन लिया है।

मुसहर हैं, मौर्य होते तों हमें भी नेता पूछते

गरीब-शोषितों, वंचितों, दलितों, आदिवासियों के हक अधिकार की बात तो सभी करते हैं। खासकर दलितों पिछड़ों की, लेकिन देखा जाए तो एक पखवाड़े बाद भी मुसहर (आदिवासी) प्रमोद के बहते आंसुओं को पोंछने के लिए कोई भी ऐसा व्यक्ति या नेता उनकी झोपड़ी की ओर क़दम नहीं रखा है। जो यह कह सके कि उन्हें मुसहर समाज की भी फ्रिक है। सत्ता पक्ष तो जाने से दूर रहा विपक्षी दलों के उन नेताओं ने भी इनकी ओर झांकने का साहस नहीं जुटाया है, जो जिले में होने वाली हर एक छोटी बड़ी हलचल के बाद मौके पर प्रतिनिधिमंडल/अपनी टीम भेजने के लिए लालायित रहते हैं, ताकि अखबारी सुर्खियों में बने रहते हुए छपास रोग की खुराक भी मिलती रहे।

पिछले दिनों वाराणसी के मिर्जामुराद थाना क्षेत्र के महेश पट्टी गांव में पिछड़े (मौर्य) समाज से आने वाले मुन्नीलाल मौर्य की दिनदहाड़े हुई हत्या पर पूर्व मंत्री एवं जौनपुर सदर के सपा सांसद बाबू सिंह कुशवाहा सहित कई नेताओं की पीड़ित परिवार के बहते हुए आंसुओं को पोंछने की लगी होड़ से संबंधित खबर, वीडियो सोशल मीडिया पर देख दो मासूमों के खोने का दर्द लिए प्रमोद आदिवासी कहते हैं “शाय़द हम गरीब हैं जाति से मुसहर है, वरना हमारी भी साहेब लोग, नेता लोग सुनते। प्रमोद की यह पीड़ा समझने योग्य है, अभी तक उनकी झोपड़ी की ओर कोई झांकने भी नहीं आया है न ही किसी ने उनके दुःख को साझा करने का साहस दिखाया है। ऐसे हालात में दो मासूमों जिनका किसी से कोई रार-तकरार नहीं रहा को खोने का गम लिए प्रमोद भविष्य की आशंकाओं से घिरे आकाश की ओर निहारते हुए कहते हैं “किसको सुनाएं अपनी फरियाद, जो दिला सकें हमें न्याय।” 

(मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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