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  • यथार्थ और कल्पना के बीच झूलती रही “सुपर 30”

    यथार्थ और कल्पना के बीच झूलती रही “सुपर 30”

    ‘सुपर 30’ देखकर एक बात यह समझ में आती है कि लॉजिक सिर्फ मैथमेटिक्स में ही नहीं होता, किस्सा-कहानी सुनाने के लिए भी तर्क चाहिए। रीज़निंग को जीवन में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठापित करने वाली यह फिल्म उसी में जगह-जगह मात खाती है। अभिनेता के चयन पर पहले भी खूब चर्चा हो चुकी है। बिहारी…