बलराज साहनी एक जनप्रतिबद्ध कलाकार, हिन्दी-पंजाबी के महत्वपूर्ण लेखक और संस्कृतिकर्मी थे। जिन्होंने अपने कामों से भारतीय लेखन, कला और सिनेमा को एक साथ समृद्ध किया। उनके जैसे कलाकार बिरले ही पैदा होते हैं। अविभाजित भारत के रावलपिंडी में...
मैं फिल्म समीक्षक नहीं हूं, लेकिन फिल्म 'थप्पड़' को लेकर मेरे मन के भीतर कुछ उमड़ घुमड़ रहा है। डायरेक्टर साहब ये क्यों भूल गए कि फिल्म 2020 में रिलीज कर रहे हैं। कुछ कमियां जो मुझे खटकीं, अमृता...
‘छपाक’ इस मायने में साहसिक फिल्म है कि यह हिंदी फिल्मों और समाज में दूर तक छाई हुई उपभोक्तावादी सौंदर्य दृष्टि को किनारे करती है। एक हस्तक्षेपकारी मनुष्य-दृष्टि से काम लेते हुए यह सुन्दरता के प्रति मौजूद रूढ़ समझ...
कला मनुष्य को एक ऐसी दुनिया से साक्षात्कार कराती है,जिसमें वह सबकुछ दिखता है,जो अमूमन दिखायी पड़ने वाली दुनिया में दिखायी नहीं पड़ता।ऐसा शायद इसलिए,क्योंकि कला को जो कोई अंजाम दे रहा होता है,वह उस कला की बारीरिकयों में...
धीरज रखें। इस पंक्ति को पढ़ते ही अधीर न हों। यह मेरे लेख के सबसे कम
महत्वपूर्ण बातों में से एक है। मगर मंत्री जी प्रभाव को देखते हुए मैंने इसे
हेडलाइन में जगह दी है। मैं अपने इस अपराध के...
(मॉब लिंचिंग के मसले पर 49 बुद्धिजीवियों, फिल्मकारों और समाज शास्त्रियों के लिखे खत के जवाब में 60 दूसरे लोगों ने पत्र लिखा है। इसमें प्रसून जोशी, मधुर भंडारकर और कंगना राणावत जैसे फिल्म उद्योग से जुड़े तमाम लोग...
'सुपर 30' देखकर एक बात यह समझ
में आती है कि लॉजिक सिर्फ मैथमेटिक्स में ही नहीं होता, किस्सा-कहानी सुनाने के लिए भी तर्क चाहिए।
रीज़निंग को जीवन में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठापित करने वाली यह फिल्म उसी में
जगह-जगह मात खाती...