Monday, September 25, 2023

ज़ाहिद खान

‘ज़ब्तशुदा साहित्य’ पर उत्तर प्रदेश पत्रिका का एक अभिनव विशेषांक

साल 2022 में हमने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया। 15 अगस्त, 2021 से शुरू हुए देशव्यापी आयोजन, इस साल जाकर अपने समापन पर पहुंचे हैं। इस दरमियान तमाम देश भर के पत्र-पत्रिकाओं ने आज़ादी के आंदोलन और हमारे स्वतंत्रता...

जन्मदिवस पर विशेष: अपने जीते जी गाथा पुरुष बन गए हबीब तनवीर

बीसवीं सदी के चौथे दशक में मुल्क के अंदर तरक़्क़ी-पसंद तहरीक अपने उरूज पर थी। इप्टा के नाटक अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता और सरोकारों के चलते पूरे मुल्क में मक़बूल हो रहे थे। इप्टा से जुड़े हुये अदाकर-निर्देशकों ने हिंदोस्तान...

स्मृति शेष: बी वी कारंत-दक्षिण और उत्तर रंगमंच को जोड़ने वाले सेतु

भारतीय रंगमंच में बी.वी. कारंत की पहचान असाधारण रंगकर्मी और रंगमंच प्रशिक्षण देने वाले विद्वान अध्यापक की है। उन्हें लोग प्यार से बाबा कारंत नाम से पुकारते थे। रंग शिविरों के माध्यम से उन्होंने न सिर्फ़ देश भर में...

जन्मदिवस पर विशेष: शैलेंद्र के गीत कैसे बने जन आंदोलनों के नारे?

जन गीतकार एक ऐसा ख़िताब है, जो हिन्दी में बहुत कम गीतकारों को नसीब हुआ है। जब तक गीत जनता के जज़्बात से न जुड़ें, उन्हें वे अपने दिल की आवाज़ न लगें, यह मंज़िल आना बेहद मुश्किल है।...

जन्मदिवस पर विशेष: सांप्रदायिक राज्य अपने ही सहधर्मियों को ले डूबेगा- फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी हालांकि अपनी ग़ज़लों और मानीख़ेज़ शे’र के लिए जाने जाते हैं, मगर उन्होंने नज़्में भी लिखी। और यह नज़्में, ग़ज़लों की तरह खू़ब मक़बूल हुईं। ‘आधी रात’, ‘परछाइयां’ और ‘रक्से शबाब’ वे नज़्में हैं, जिन्हें जिगर मुरादाबादी,...

स्मृति दिवस:  क्या इब्राहिम अल्काज़ी के बिना आधुनिक रंगमंच का तसव्वुर किया जा सकता है?

इब्राहिम अल्काज़ी रंगमंच की दिग्गज शख़्सियत थे। उनके बिना आधुनिक भारतीय रंगमंच का तसव्वुर नहीं किया जा सकता। उन्होंने देश की आज़ादी के बाद भारतीय रंगमंच को एक नई दिशा प्रदान की। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यानी ‘नेशनल स्कूल ऑफ़...

दो बीघा ज़मीन: बिमल रॉय की ऑल टाइम क्लासिक फ़िल्म के सात दशक

भारतीय सिनेमा में बिमल रॉय का शुमार बा-कमाल निर्देशकों में होता है। उन्होंने न सिर्फ़ टिकिट खिड़की पर कामयाब फ़िल्में बनाईं, बल्कि उनकी फ़िल्मों में एक मक़सद भी हैं, जो फ़िल्मी मेलोड्रामा और गीत-संगीत के बीच कहीं ओझल नहीं...

एमएस सथ्यू की फिल्म ‘गर्म हवा’ छह दशक बाद भी क्यों बनी हुई है प्रासंगिक?

हिंदी सिनेमा में बहुत कम ऐसे निर्देशक रहे हैं, जिन्होंने अपनी सिर्फ़ एक फ़िल्म से फ़िल्मी दुनिया में ऐसी गहरी छाप छोड़ी कि आज भी उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। निर्देशक मैसूर श्रीनिवास सथ्यू यानी एमएस सथ्यू ऐसा...

पुस्तक समीक्षा: ताकि इतिहास अपने वास्तविक रूप में आए और झूठ बेपर्दा हो

आधुनिक भारत के निर्माण में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका निर्विवाद रूप से सबसे अहम थी, इससे भला कौन इंकार कर सकता है। समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की स्थापना से लेकर एक शक्तिशाली संसद और स्वतंत्र न्यायपालिका उन्हीं की कोशिशों से...

स्मृति दिवस: नेहरू की नजर में राजनीति और धर्म का गठबंधन सबसे ज़्यादा ख़तरनाक

पंडित जवाहर लाल नेहरू का भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय योगदान है। परतंत्र भारत में पंडित नेहरू की अहमियत जहां देश को आज़ाद कराने के लिए किए गए उनके अथक प्रयासों के चलते है, तो स्वतंत्र भारत में प्रधानमंत्री के...

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