Tag: manuvadi
-
‘दलित साहित्य’ ही कहना क्यों जरूरी?
बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में दलित समाज की वेदना और उत्पीड़न को दलित साहित्य के माध्यम से दुनिया के समक्ष लाने का महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। पिछली सदी के सातवें दशक में ‘दलित साहित्य’ का हिंदी पट्टी में शुरुआती लेखन आरंभ हुआ था तथापि स्वामी अछूतानंद ‘हरिहर’ एवं कुछ गैर दलितों द्वारा भी दलित जीवन…