क्या कभी सभ्य समाज तक पहुंच पाएंगी छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की दर्द भरी कहानियां ?

छत्तीसगढ़ के सारकेगुड़ा गांव में न्यायिक आयोग की रिपोर्ट आने के बाद अपराधियों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग को लेकर अनशन पर बैठा था

मुख्यमंत्री के सलाहकार ने कार्रवाई करने का आश्वासन दिया

थाने से अपना अनशन समाप्त कर सारकेगुड़ा गांव वापस आया

यह वही गांव है जहां 7 साल पहले 17 निर्दोष आदिवासियों को पुलिस ने चारों तरफ से घेरकर गोलियों से भून दिया था

आज दोपहर का खाना खिलाने के लिए एक आदिवासी लड़की अपने घर ले गई

लड़की का घर आधा बन चुका है घर के सामने मिट्टी की कच्ची ईंटें पड़ी हुई हैं

मैंने पूछा घर बनाने के लिए यह ईंटें कौन बना रहा है? वह बोली मैं खुद बना रही हूं

अन्य ग्रामीणों के अलावा यह लड़की भी कल से थाने में मेरे साथ थी

मैंने पूछा बेटा तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो गई ?

लड़की ने कहा नहीं बीएससी कर रही थी लेकिन पैसे नहीं थे इसलिए पढ़ाई छोड़ दी

मैंने कहा पढ़ाई फिर से चालू करो पैसे का कहीं ना कहीं से इन्तजाम हो जाएगा हम अपने कुछ मित्रों से मदद के लिये कहेंगे

आज खाना खाते समय लड़की के घर में बैठा था

तो उसने मुझे बताया कि मेरा घर सलवा जुडूम के समय पुलिस ने जला दिया था

बाद में इस गांव के दूसरे घरों को जलाया गया था

लड़की ने बताया मेरे पिताजी का हाथ भी पुलिस ने तोड़ दिया था

इस घटना के कुछ समय बाद पिताजी का देहांत हो गया

दीवार पर एक बच्चे की फोटो लगी थी और उस पर फूलों का हार चढ़ा हुआ था

मैंने पूछा यह किसकी फोटो है ?

लड़की ने बताया यह मेरा छोटा भाई है

उस रात पुलिस ने जब ग्रामीणों पर गोली चलाई तब यह भी मारा गया

मैंने फोटो के नीचे लिखा हुआ नाम पढ़ा मुझे पूरी घटना याद आ गई

मैंने कहा यह तो वही बच्चा है जो गणित में गोल्ड मेडलिस्ट था

वह लड़की बोली, जी हां यह वही है

मैं सोचने लगा पहले निर्दोष पिता को पुलिस ने मारा

फिर पुलिस ने घर जला दिया

फिर छोटे भाई को भी मार दिया

पिछले 7 साल से यह लड़की जांच आयोग की मदद कर रही थी

गांव के आदिवासियों को ले जाकर आयोग के सामने गवाही दिलवा रही थी

अब जांच आयोग ने फैसला दिया है कि मारे गए आदिवासी निर्दोष ग्रामीण थे जिनकी पुलिस ने हत्या करी थी

मैं सोच रहा था आदिवासियों की दुखों से भरी यह कहानियां क्या कभी इस देश के तथाकथित सभ्य समाज के सामने आएंगी?

इस लड़की का साहस, धैर्य और इसके दुख की क्या हमारे समाज के लिये कोई कीमत है?

मैं चाहता हूं कि मेरी बेटियां इस लड़की से मिलें और सीखें कि जिंदगी का मुकाबला कैसे किया जाता है?

(हिमांशु गांधीवादी कार्यकर्ता हैं और आजकल हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।)

हिमांशु कुमार
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हिमांशु कुमार