नई दिल्ली। बिहार विधानसभा ने गुरुवार को सर्वसम्मति से बिहार आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। संशोधन विधेयक आज दिन में उच्च सदन में पेश किया जाएगा।
सरकार ने यह भी बताया कि चूंकि अन्य 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) कोटा अलग अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रभावी है, और वर्तमान बिल का हिस्सा नहीं है, कुल कोटा सीमा अब प्रभावी रूप से 75 प्रतिशत तक होगी। और अब 25 फीसदी अनारक्षित है।
नए प्रस्ताव के मुताबिक, ओबीसी को 18 फीसदी, ईबीसी को 25 फीसदी, अनुसूचित जाति को 20 फीसदी और अनुसूचित जनजाति को 2 फीसदी कोटा मिलेगा।
पहले, ओबीसी को 12 प्रतिशत और ईबीसी को 18 प्रतिशत कोटा था, जबकि अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति को 1 प्रतिशत कोटा था। सामान्य वर्ग के गरीबों और महिलाओं में से प्रत्येक का प्रतिशत 3 प्रतिशत था।
चूंकि बिहार में 2 प्रतिशत से कम एसटी आबादी है, इसलिए इसका कोटा घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया गया है, और चूंकि महिलाओं के पास नौकरियों में 35 प्रतिशत कोटा है, इसलिए उनके लिए 3 प्रतिशत कोटा खत्म कर दिया गया है।
इसी तरह, चूंकि सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा है, इसलिए मौजूदा बिल में इसका प्रावधान नहीं किया गया है।
बिहार सरकार ने मौजूदा आरक्षण सीमा बढ़ाने का फैसला मंगलवार को सदन में बिहार आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों को पेश करने के बाद लिया। नए जातिगत सर्वे के मुताबिक, बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है। इनमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है। यानी ओबीसी की कुल आबादी 63% है। अनुसूचित जाति की आबादी 19% और जनजाति 1.68% है। जबकि, सामान्य वर्ग 15.52% है।
विभिन्न राज्यों में आरक्षण का प्रतिशत
बिहार आरक्षण सीमा को बढ़ाने वाला पहला राज्य नहीं है। तमिलनाडु में 1993 से 69 प्रतिशत आरक्षण है। कर्नाटक में 56 प्रतिशत, झारखंड में 77 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 62 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ सरकार ने भी 2019 में आरक्षण की अधिकतम सीमा को बढ़ाकर 82 प्रतिशत करने का फैसला किया था। हालांकि, हाई कोर्ट ने आरक्षण के इस फैसले पर रोक लगा दी थी।
(जनचौक की रिपोर्ट)